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फिर अंतरिक्ष में दस्तक

गगनयान अभियान की आधारशिला है मिशन
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अमेरिका के एक्सियम-4 मिशन में तीन अंतरिक्ष यात्रियों के साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिये भारतीय शुभांशु शुक्ला का रवाना होना, निश्चय ही भारत के लिए अंतरिक्ष में एक मील का पत्थर साबित होगा। यह गर्व की बात है कि स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा के अंतरिक्ष में कदम रखने के 41 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में पहुंचा है। दरअसल, ह्यूस्टन स्थित एक्सियम स्पेस नामक अमेरिकी कंपनी ने यह मिशन नासा व स्पेस एक्स के साथ मिलकर शुरू किया है। इस मिशन में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के साथ पौलेंड, हंगरी व अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री भी हैं। यूं तो अंतरिक्ष यात्रियों में कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स का नाम लिया जाता है, लेकिन वे भारतीय मूल की थीं, भारतीय नहीं। दरअसल, एक्सियम-4 का सफल प्रक्षेपण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे भारत के महत्वाकांक्षी मानव मिशन गगनयान की पहली सीढ़ी माना जा रहा है। इस मिशन के अनुभवों से गगनयान अभियान की सफलता में मदद मिलेगी। दरअसल, गगनयान भारत का पहला स्वदेशी मानव मिशन है, जिसके तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को 2027 में अंतरिक्ष मिशन पर भेजा जाना है। एक्सियम-4 मिशन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हुए समझौते ने गति दी थी। जिसके चलते हम चार दशक बाद किसी दूसरे भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने में सफल हो सके। कई तकनीकी कारणों से इस उड़ान में विलंब हुआ, लेकिन अंतत: अंतरिक्ष यान का सफल प्रक्षेपण संभव हुआ। दरअसल, गगनयान के अलावा इसरो भारत के कई महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों पर तेजी से काम कर रहा है। इसमें वर्ष 2035 तक एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाना और किसी भारतीय को चांद पर भेजना शामिल है। एक्सियम-4 मिशन को इन्हीं महत्वाकांक्षी अभियानों की आधारशिला बताया जा रहा है। एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को जो अनुभव मिलेंगे, उसका लाभ हमारे भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को कामयाब बनाने में मिलेगा, क्योंकि इसरो को अभी तक अंतरिक्ष में मानव मिशन का अनुभव नहीं है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1984 में भारतीय वायुसेना के अधिकारी राकेश शर्मा ने तत्कालीन सोवियत संघ के सैल्यूट-7 अंतरिक्ष स्टेशन पर लगभग आठ दिन बिताए थे। अब इस कड़ी में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का नाम भी जुड़ गया है। जिनका अनुभव निकट भविष्य में होने वाले अंतरिक्ष मिशनों में मददगार साबित होगा। निस्संदेह, पिछले एक दशक में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। चंद्रयान और मंगलयान अभियान की सफलता ने इसरो की क्षमताओं को प्रदर्शित किया है। मोदी सरकार का आत्मनिर्भरता पर जोर स्वदेशी तकनीक और लागत प्रभावी समाधानों के जरिये रहा है। भारत की कोशिश है कि मानवयुक्त उड़ानों के लिये उसे अमेरिका व रूस पर निर्भर न रहना पड़े। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें चीन हमसे आगे है। भारत का महत्वाकांक्षी गगनयान अभियान इसी दिशा में इसरो की पहल है, ताकि भारत भी रूस, अमेरिका व चीन के समकक्ष वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभर सके। इसी कड़ी में भारत 2040 तक किसी भारतीय को चंद्रमा पर भेजने की भी महत्वाकांक्षा रखता है। ये असंभव नहीं है, लेकिन अभी हमें इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। दरअसल, एक्सियम-4 मिशन इसरो के लिये अनुसंधान के दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। आईएसएस पर वैज्ञानिक अध्ययन व अनुसंधान की गतिविधियों में दुनिया के लगभग तीस देश शामिल होंगे। निस्संदेह, भारत को इस स्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहिए। ताकि भविष्य में स्वदेशी मिशनों में ये अनुभव लाभदायक साबित हो सके। उल्लेखनीय है कि शुभांशु शुक्ला समेत एक्सियम-4 की टीम बीज अंकुरण और अंतरिक्ष में पौधे किस तरह उगते हैं, पर भी अध्ययन करेगी। साथ ही यह जानने की कोशिश होगी कि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण शून्य होने पर पौधे कैसे उगते हैं। साथ ही इन पौधों में धरती के पौधों से इतर कई विशेषताएं होंगी। दरअसल, इस मिशन के दौरान साठ से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किये जाने हैं। भारत के वैज्ञानिकों ने सात प्रयोगों का सुझाव दिया है। भारत पहली बार एस्ट्रो-बायोलॉजी के प्रयोग करेगा। जिसमें इसरो व नासा की भी भागीदारी होगी।

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