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महाकुंभ की त्रासदी

हादसों से सबक ले हो भीड़ प्रबंधन
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प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर तड़के हुए हादसे में कुछ श्रद्धालुओं की मौत की घटना निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। यूं तो अतीत में भी प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक व उज्जैन के कुंभों के दौरान भी कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं, लेकिन सवाल है कि क्या हम अतीत के हादसों से कोई सबक ले पाए हैं? यूं तो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा मेला प्रबंधन व सुरक्षा के चाकचौबंद बंदोबस्त के दावे किए गए थे, लेकिन मौनी अमावस्या की घटना ने यह दुखद स्थिति पैदा कर दी है। करोड़ों तीर्थयात्रियों का अचानक किसी धार्मिक आयोजन में पहुंचना निश्चित रूप से शासन व प्रशासन के लिये बड़ी चुनौती बन जाती है। लेकिन इसके बावजूद शासन-प्रशासन की प्राथमिकता दुर्घटना मुक्त आयोजन ही होना चाहिए। दरअसल, ऐसे आयोजनों में तीर्थयात्रियों की जल्दीबाजी और पहले स्नान करने की होड़ अकसर ऐसी भगदड़ पैदा कर देती है। जो बताती है कि हम सार्वजनिक जीवन में ऐसे बड़े आयोजनों में अनुशासित व्यवहार करने से चूक जाते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम इस बात का भी संकेत है कि कुंभ के आयोजनों में पिछले बड़े हादसों के सबक हम पूरी तरह सीख नहीं पाए हैं। हालांकि, शासन-प्रशासन को इस बात का अंदाज था कि इस बार करोड़ों की भीड़ जुटेगी, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं सावधानी में चूक तो हुई है। निस्संदेह, महाकुंभ का आयोजन भारतीय सनातन परंपरा का अटूट हिस्सा रहा है। बिना चिट्ठी व तार देश के कोने-कोने से तीर्थयात्री महाकुंभ में जुटते हैं। कल्पवास में संयमित जीवन से आध्यात्मिक लाभ अर्जित करते हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ यातायात के साधनों की उपलब्धता से ऐसे आयोजनों पर भीड़ का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। मीडिया की सक्रियता ऐसे आयोजन के प्रति अतिरेक आकर्षण पैदा कर देती है, जिससे श्रद्धालुओं का अप्रत्याशित सैलाब कुंभ नगरी की तरफ मुड़ जाता है। निश्चित रूप से समय के साथ आये सामाजिक बदलावों के मद्देनजर शासन-प्रशासन को महाकुंभ के आयोजन में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है।

निश्चित रूप से महाकुंभ के आयोजन से जुड़े तंत्र को उन कारकों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, जिसके चलते इस त्रासदी की छाया प्रयागराज महाकुंभ पर पड़ी। उन तमाम संभावनाओं पर विचार करने की जरूरत है जो कुंभ जैसे बड़े आयोजनों को दुर्घटनाओं से निरापद बनाने में सहायक हो सकती हैं। हालांकि, प्रयागराज महाकुंभ में एआई, ड्रोन व कंप्यूटरों के जरिये व्यापक सु्रक्षा प्रबंधों की निगरानी की जा रही है, लेकिन अभी भी अफवाहों व भगदड़ की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिये और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। तीर्थयात्रियों को भी जागरूक करने की जरूरत है कि वे धैर्य के साथ अपनी स्नान की बारी का इंतजार करें। साथ ही अफवाहों व जल्दीबाजी से बचें। बताया जाता है कि प्रयागराज हादसे में भी कुछ तीर्थयात्रियों द्वारा स्नान में जल्दीबाजी करने तथा अखाड़ा मार्ग पर लगे बैरिकेड्स पर चढ़ने पर मची अफरातफरी को कारण बताया गया। लेकिन इसके बावजूद पुलिस व अधिकारियों की चूक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। निश्चित रूप से वे भीड़ के मिजाज को समय रहते भांप लिया जाता तो शायद हादसे को टाला जा सकता। हालांकि, मृतकों के परिजनों व घायलों को मुआवजा देने की घोषणा की गई है। साथ ही न्यायिक जांच के भी आदेश दिए गए हैं। इसके बावजूद इस बात की गहन जांच जरूरी है कि स्थिति कैसे नियंत्रण से बाहर हो गई। यह एक निर्विवाद सत्य है कि गोपनीयता का पर्दा डालने से केवल अफवाहों व गलत सूचनाओं को ही बढ़ावा मिलता है। बहरहाल, आने वाले समय में श्रद्धालुओं को मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करने की भी जरूरत होगी कि वे अपने आसपास के घाट पर ही स्नान करके समान पुण्य अर्जित कर सकते हैं। यह भी कि संगम के सभी घाट समान रूप से पवित्र हैं। इससे चुनिंदा घाटों पर तीर्थयात्रियों का दबाव नहीं बनेगा। साथ ही श्रद्धालुओं को अनुशासित व्यवहार के लिये प्रेरित किया जाना भी बेहद जरूरी है। ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को टाला जा सके।

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