निर्विवाद रूप से पर्यावरण प्रदूषण देश के सामने एक बड़ा संकट है। लाखों लोगों के जीवन पर इससे संकट के बादल मंडराते हैं। शीत ऋतु की दस्तक के साथ राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण की काली छाया के बीच अक्सर इस संकट के मूल में निकटवर्ती राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं को जिम्मेदार बताने की कवायद हर साल होती है। इस बार भी पंजाब में धान की खरीद शुरू होने के बाद विभिन्न हितधारकों का ध्यान एक मौसमी समस्या पराली जलाने की ओर आकर्षित हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से उस कुप्रथा में लिप्त कुछ किसानों को गिरफ्तार करने के बारे में निर्णय लेने को कहा है, जिसे हर साल अक्तूबर-नवंबर में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बताया जाता है। वैसे न्यायालय ने इस बात को स्वीकार किया है कि ‘हमारे लिये किसान विशेष हैं और हम उनकी बदौलत ही भोजन प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही अपनी खाद्य शृंखला को मजबूत कर रहे हैं।’ लेकिन वहीं दूसरी ओर शीर्ष अदालत ने राज्य से पर्यावरण की सुरक्षा के बारे में कड़ा संदेश देने के लिये दंडात्मक प्रावधान लागू करने का भी आग्रह किया है। निर्विवाद रूप से देश में पंजाब और हरियाणा, जो कि खाद्यान्न उत्पादन में अग्रणी राज्य भी हैं, पराली जलाने से रोकने के लिये विगत में कभी-कभी किसानों को जेल में भी डालते रहे हैं। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि यह कठोर कदम व्यावहारिक धरातल में एक प्रभावी निवारक साबित नहीं हो सका है। हमें इस बात की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में हुई गिरफ्तारियों और भारी जुर्माने ने इस क्षेत्र के कृषक समुदाय के गुस्से को भड़काया ही है। जिसने केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ आवाज उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वैसे एक हकीकत यह भी है कि सत्ताधीशों के लिये किसानों पर आपराधिक मुकदम चलाना राजनीतिक दृष्टि से एक जोखिम भरा कदम माना जाता है।
निस्संदेह, इन राज्यों में किसान अब एक प्रभावशाली वोट बैंक बन चुके हैं। खासकर पंजाब में किसानों की जागरूकता सत्ताधीशों पर दबाव बनाने में कामयाब हो जाती है। सर्वविदित है कि देश के सीमावर्ती राज्य पंजाब में हाल ही में आई बाढ़ के दौरान धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। ऐसे में किसानों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाना संवेदनशीलता की दृष्टि से उचित भी नहीं कहा जा सकता है। इसलिए अधिकारी किसी संभावित आक्रोश से बचने के लिये दंडात्मक कार्रवाई से बचने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में वे कोई सुरक्षित रुख अपना सकते हैं। निस्संदेह, किसी ऐसी सख्त कार्रवाई से पहले ही प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे किसानों की स्थिति और बिगड़ सकती है। ऐसे हालात में किसानों से टकराव की बजाय सहयोग को प्राथमिकता बनाना तार्किक कहा जा सकता है। आर्थिक विकल्प, दंड से बेहतर काम करेगा। दूसरी ओर किसानों को पराली के प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। हम उन्हें सशक्त बनाकर इस संकट का तार्किक समाधान निकाल सकते हैं। सरकार प्रयास करे कि पराली का उपयोग उद्योगों द्वारा जैव ईंधन के रूप में एक उत्पादक विकल्प के तरह किया जाए। हमारे देश के ऊर्जा उत्पादन में बायोमास के उपयोग को बढ़ावा देने से जमीनी स्तर पर बदलाव लाया जा सकता है। पराली आधारित बॉयलरों को अपनाने वाले उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये पूंजीगत सब्सिडी सराहनीय पहल बन सकती है। सर्दियों में भीषण ठंड से बचने के लिये पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ किसानों की भलाई सुनिश्चित करने वाले पर्यावरण अनुकूल कदम उठाना भी जरूरी है। साथ ही पराली का निस्तारण करने वाली मशीनों की खरीद के लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। मशीनों की खरीद में सब्सिडी तथा ग्राम पंचायत स्तर पर सहकारिता के आधार पर इनके उपयोग से भी सार्थक परिणाम मिल सकते हैं। इस दिशा में किसानों को जागरूक करने के लिये अभियान चलाए जाने जरूरी हैं। उन्हें बताया जाना चाहिए कि खेत में पराली जलाने से जहां खेतों की उर्वरता पर प्रतिकूल असर पड़ता है, वहीं इससे उठने वाला धुआं उनके व परिवार के लिये भी घातक है।