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खाद का संकट

दुरुपयोग आर्थिकी व खेती के लिये घातक
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देश के कई राज्यों में रासायनिक खादों की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि ने नीति-नियंताओं को चौंकाया है। विशेषकर हरियाणा में यूरिया और डाई-अमोनियम फॉस्फेट यानी डीएपी की खपत में तीव्र वृद्धि ने उर्वरक मंत्रालय की चिंताएं बढ़ा दी हैं। यह तथ्य चौंकाने वाला है कि इस रबी के सीजन में हरियाणा में यूरिया खाद का उपयोग अट्ठारह फीसदी तक बढ़ गया है। जबकि कुछ जिलों में डीएपी की खपत में 184 फीसदी का उछाल देखा गया है। दरअसल, रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग और सब्सिडी वाले उर्वरकों की जरूरत से ज्यादा खपत, असामान्य स्थिति का संकेत दे रही है। जिसके चलते अधिकारियों को शंका है कि सब्सिडी वाले नीम कोटेड यूरिया को बड़ी मात्रा में खरीदकर प्लाइवुड, राल व खनन विस्फोटक जैसे उद्योगों के लिये ले जाया जा रहा है। जिनके लिये तकनीकी-ग्रेड वाला यूरिया खासा महंगा पड़ता है। आशंका जतायी जा रही है कि इन व्यवसाय में लगे कुछ लोग इस मूल्य अंतर का लाभ उठाकर बड़े पैमाने पर सब्सिडी वाली खाद की हेराफेरी कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार ये असामाजिक तत्व करीब दस लाख टन यूरिया का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिसकी कीमत छह हजार करोड़ रुपये बतायी जा रही है। इसकी पड़ताल के लिये केंद्र सरकार ने राज्य के अधिकारियों के साथ संयुक्त अभियान आरंभ किया है। साथ ही दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा रही है। इतना ही नहीं, केंद्रीय उर्वरक विभाग आपूर्ति श्रृंखलाओं की निगरानी और रासायनिक खादों के रिसाव पर अंकुश लगाने के लिये विभिन्न मंत्रालयों के साथ समन्वय कर रहा है। कोशिश है कि किसानों को सब्सिडी पर मिलने वाली खाद के दुरुपयोग पर अंकुश लगाया जा सके। आशंका जतायी जा रही है ऐसी कोशिश पर यदि समय पर अंकुश नहीं लगाया गया तो कालांतर किसानों के लिये खाद की आपूर्ति बाधित हो सकती है। जिसके सामाजिक व राजनीतिक निहितार्थों को समझते हुए केंद्र सरकार के संबंधित विभाग सतर्क प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

यह तथ्य निर्विवाद है कि खेती में अत्यधिक उर्वरकों का उपयोग एक जटिल समस्या बनता जा रहा है। दरअसल, आम किसानों को ठोस जानकारी नहीं मिल पाती कि इसका कितना उपयोग अधिक फसल लेने व भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिये काफी है। आम किसान पैदावार बढ़ाने के लिये बड़ी मात्रा में यूरिया का उपयोग करते हैं। खासकर नई उच्च नाइट्रोजन वाली गेहूं की किस्मों के लिये। वहीं एनपीके यानी सोडियम, फॉस्फोरस व पोटेशियम उर्वरक की खपत में वृद्धि ने यूरिया पर निर्भरता को और अधिक बढ़ा दिया है। जिससे मिट्टी का क्षरण, कीट जोखिम बढ़ने के साथ ही भूजल प्रदूषण में तेजी से वृद्धि हो रही है। निर्विवाद रूप से रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है बल्कि कृषि भूमि की दीर्घकालीन उपादेयता को भी कम कर रहा है। उर्वरकों की खपत में तेजी से वृद्धि देश की आर्थिकी पर प्रतिकूल असर डाल रही है। उर्वरकों के आयात पर देश की बढ़ती निर्भरता वित्तीय संकट को भी बढ़ावा दे रही है। देश वार्षिक रूप से करीब 75 लाख टन यूरिया का आयात करता है। यूरिया की बढ़ती वैश्विक कीमतों ने उर्वरक सब्सिडी को 1.75 ट्रिलियन रुपये से अधिक कर दिया है। यदि इस स्थिति पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो बढ़ती उर्वरक मांग अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डालेगी। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सरकार उर्वरक की बिक्री की निगरानी को सशक्त बनाए । सब्सिडी वाली रासायनिक खाद का दुरुपयोग करने वालों के लिये सख्त दंड की व्यवस्था लागू करने की जरूरत है। इसके अलावा किसानों को भी जागरूक करने की जरूरत है कि खेती में खाद का उपयोग कैसे संतुलित ढंग से किया जाना चाहिए। रासायानिक खाद की बिक्री को अनियंत्रित छोड़ देने से न केवल संकट का असर करदाताओं पर बोझ बढ़ाएगा वरन अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बढ़ने की आशंका है। साथ ही बड़ा संकट इस बात का भी कि खेती में अत्यधिक रासायनिक खाद के उपयोग से हमारे पर्यावरण पर भी घातक प्रभाव होगा। जो कालांतर कृषि की स्थिरता को भी संकट में डाल सकता है।

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