डिजिटल चुनौती
इसमें दो राय नहीं कि पिछले एक दशक में प्रौद्योगिकी ने आम भारतीय के जीवन को सहज-सरल बनाने में निर्णायक भूमिका निभायी है। आज तमाम तरह की सुविधाओं को हासिल करने के लिये उसे दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ते। अनेक सेवाएं एक क्लिक के साथ उसकी मुट्ठी में होती हैं। दरअसल, डिजिटल इंडिया की महत्वाकांक्षी पहल नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान वर्ष 2015 में शुरू की गई थी। जिसका मकसद रोजाना व्यवहार में सामने आने वाली जटिलताओं को दूर करके जीवन को आसान बनाना था। निस्संदेह, पिछले एक दशक में इस महत्वाकांक्षी परियोजना ने कई प्रकार से नागरिकों को सशक्त बनाने में निर्णायक भूमिका निभायी है। विशेष रूप से डिजिटल भुगतान आज पूरे देश में अपरिहार्य हो गए हैं। इससे जुड़े आंकड़े पूरी दुनिया को चौंका रहे हैं। इस वर्ष अप्रैल में लगभग 25 लाख करोड़ रुपये के यूपीआई लेन-देन किए गए हैं। इन यूपीआई लेनदेन की संख्या करीब 1,860 थी। वर्ष 2023 में भारत ने वैश्विक रीयल-टाइम लेनदेन का 49 फीसदी हासिल किया। जिसमें 46 करोड़ लोग और 6.5 करोड़ व्यापारी यूपीआई का उपयोग कर रहे थे। निस्संदेह, शासन के विभिन्न क्षेत्रों में भी डिजिटल उपयोग में खासी प्रगति हुई है। जिससे व्यवस्था अधिक पारदर्शी और नागरिकों के हितों के अनुकूल हो गई है। इस डिजिटल क्रांति के चलते स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, बैंकिंग और अन्य सेवाओं तक नागरिकों की पहुंच आसान हुई है। डिजिटल क्रांति से जुड़ी तमाम चुनौतियों के अलावा अभी देश में डिजिटल डिवाइड की समस्या बनी हुई है। जिसे यथाशीघ्र पाटने की जरूरत है। हालांकि, इस दिशा में आशातीत प्रगति भी हुई है, लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ करने के लिये चरणबद्ध प्रयासों की सख्त जरूरत है। यह चुनौती ग्रामीण भारत में अधिक नजर आती है। जहां इंटरनेट सेवाओं और मोबाइलों की पहुंच शहरों के मुकाबले कम है। जाहिर है, जब देश के हर व्यक्ति तक डिजिटल क्रांति का लाभ पूरी तरह नहीं पहुंच पाएगा, इस क्रांति के लक्ष्य अधूरे ही रहेंगे।
निश्चित रूप से देश में स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग आदि सेवाओं में जो व्यापक सुधार आया है, उसका लाभ हर नागरिक तक पहुंचना जरूरी है। वहीं दूसरी ओर देश में डिजिटल डिवाइड की खाई को पाटने की दिशा में मिशन के रूप में प्रयास जारी हैं। लेकिन हाल में हुए कुछ सर्वेक्षणों के निष्कर्ष चिंता बढ़ाने वाले हैं। इसमें शामिल व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण : दूरसंचार, 2025 का उल्लेख करना जरूरी हो जाता है। जिसके अनुसार साल 2025 तक भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली लगभग आधी महिलाओं के पास मोबाइल फोन उपलब्ध नहीं थे। इसके निष्कर्ष एक महीने पहले राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा भी जारी किए गए थे। वहीं इसी तरह एक और आंख खोलने वाली बात शिक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले यूनिफाइड डिस्ट्रिक इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस की वर्ष 2023-24 की रिपोर्ट में भी सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के केवल 57.2 फीसदी स्कूलों में कार्यात्मक कंप्यूटर ही उपलब्ध हैं। वहीं दूसरी ओर 53.9 प्रतिशत स्कूलों में ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। देश के विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भारत नेट परियोजना के तहत कुल 6.55 लाख गांवों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी के लिये लक्षित किया जाना था, लेकिन अभी तक उसमें दो-तिहाई गांवों को कवर किया जाना अभी बाकी है। वहीं दूसरी ओर देश की इस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ने बीएसएनएल की दुर्दशा को भी उजागर किया है, जो एक के बाद एक पुनरुद्धार पैकेज मिलने के बावजूद टेलीकॉम क्षेत्र की निजी कंपनियों के खिलाड़ियों से पीछे है। निस्संदेह, मोदी सरकार के पास डिजिटल इंडिया की प्रगति के लिये अपनी पीठ थपथपाने के लिये कई कारण हैं, लेकिन उसे कमियों और अंतरालों पर ध्यान देने की सलाह दी जाएगी। निश्चित रूप से डिजिटल पारिस्थितिकीय तंत्र के भीतर व्याप्त असमानताओं को दूर किए बिना विकसित भारत के लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। डिजिटल क्रांति को गति देना निश्चित तौर पर राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए।