Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

दहेज का दानव

सभ्य समाज के लिये शर्म की बात

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

बेटियों की साक्षरता में वृद्धि और कामकाजी क्षेत्र में लगातार उनकी बढ़ती भूमिका के बावजूद यदि दहेज उत्पीड़न की घटनाओं में वृद्धि होती है, तो यह शर्मनाक स्थिति ही कही जाएगी। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की वह रिपोर्ट चौंकती है कि साल 2023 के दौरान देश में दहेज उत्पीड़न की घटनाओं में 14 फीसदी मामले ज्यादा दर्ज किए गए हैं। इस वर्ष के दौरान दहेज के कारण देशभर में 6,100 महिलाओं की मौत दर्ज की गई है। 21वीं सदी को ज्ञान की सदी कहा जा रहा है और हम रूढ़िवादी सोलहवीं सदी में जी रहे हैं। लड़कियों के साथ यदि परिवार व्यवस्था में भेदभाव होता है और भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है, तो उसके मूल में भी दहेज का अभिशाप ही है। लगातार खर्चीली होती उच्च शिक्षा व्यवस्था में बेटियों की शिक्षा पर बड़ा खर्च करने के बाद यदि मां-बाप को दहेज देना पड़ता है तो यह शर्मनाक स्थिति है। हालांकि, पिछले कुछ समय से पारिवारिक विवाद व अन्य कारकों को दहेज का मामला बनाने के कुछ मामले अदालतों की चिंता का भी विषय रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद समाज में दहेज के लिये उत्पीड़न की घटनाएं कटु सत्य है। यह भी एनसीआरबी की रिपोर्ट का यथार्थ है कि देश में हर रोज दहेज के लिये हत्याएं दर्ज हो रही हैं। बेटियों को पढ़ाने तथा सरकारों द्वारा उनके सशक्तीकरण के तमाम प्रयासों के बावजूद दहेज का दानव यदि अट्टहास कर रहा है तो यह हमारे समाज की असफलता ही कही जाएगी।

निस्संदेह, हमारे समाज में सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। एक समय नारा लगाया जाता था कि दुल्हन ही दहेज है। इस नारे को हकीकत बनाने की जरूरत है। कहीं न कहीं इस संकट के मूल में पितृसत्तात्मक सोच भी जिम्मेदार है। जिसमें स्त्रियों को वाजिब हक न देकर उन्हें कमतर आंका जाता है। इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि दहेज प्रथा उन्मूलन के लिये सख्त कानून होने के बावजूद इस कुप्रथा पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है। आखिर क्यों दहेज निषेध अधिनियम के अंतर्गत मामले लगातार बढ़ रहे हैं। समाज में साक्षरता वृद्धि और जागरूकता अभियानों के बावजूद स्थिति जस की तस है। विडंबना यह है कि दहेज उत्पीड़न के ज्यादातर मामले बड़े हिंदी प्रदेशों में सामने आए हैं। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में और फिर बिहार दूसरे नंबर पर है। ये हजारों मामले समाज में स्त्रियों की विडंबनापूर्ण स्थिति को ही दर्शाते हैं। समाज में उपभोक्तावादी सोच के चलते भी दहेज की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है। हमें विचार करना होगा कि समाज में दहेज के संकट की जड़ों पर कैसे प्रहार किया जाए। राष्ट्र का विकास तब तक एकांगी ही रहेगा, जब तक आधी दुनिया को समाज में सम्मानजनक स्थान नहीं मिलता। दहेज के मामलों में न्याय भी शीघ्र देने की आवश्यकता है। आज जरूरत इस बात की है कि बेटियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जाए, ताकि वे समाज में सम्मानजक ढंग से बिना किसी पर निर्भर रहकर जीवनयापन कर सकें।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
×