Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

चुनौतियां बेशुमार

जनसरोकारों की प्रतिबद्धताएं हों तय
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

यूं तो नया या पुराना साल एक समय चक्र मात्र है और देश के सामने समस्याएं व चुनौतियां हर दौर में रही हैं। लेकिन हम समय की एक इकाई में अपनी समस्याओं को दूर करने के लक्ष्य निर्धारित कर निराकरण का प्रयास करते हैं। कमोबेश वर्ष 2025 को लेकर भी यही स्थिति रहने वाली हैं। हालांकि महंगाई, बेरोजगारी तथा गरीबी सर्वकालिक व सर्वदेशीय समस्याएं रही हैं, फर्क है तो यही कि सत्ताधीश इन चुनौतियों का मुकाबला कैसे करते हैं। जैसे-जैसे बीता साल पूर्णता की ओर बढ़ रहा था, देश को लेकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कुछ सकारात्मक तो कुछ चिंता बढ़ाने वाली खबरें वातावरण में तैर रही थीं। हालांकि, बांग्लादेश का राजनीतिक घटनाक्रम व अल्पसंख्यकों पर ज्यादती की खबरें विचलित करने वाली थी। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बांग्लादेश में जिस सत्ताधीश के विरोध में सत्ता पलट हुआ,उस सत्ता की सूत्रधार को भारत ने शरण दी। दरअसल, भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में तार्किक के बजाय भावनात्मक मुद्दे राजनीतिक विमर्श पर हावी रहे हैं। हालांकि, अच्छी बात यह है कि दशकों से जारी एलएसी विवाद सिमटता नजर आया। जिससे चीन से बिगड़े रिश्ते पटरी पर आने की उम्मीद जगी। जिसके मूल में अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम भी है, लेकिन सुखद है कि एशिया की बड़ी महाशक्ति से संबंधों में सुधार आया। बाकी इस माह डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद भारत की विदेश नीति दशा-दिशा तय करती नजर आएगी। जहां तक देश के घरेलू मोर्चे का सवाल है तो आर्थिक सुस्ती सत्ताधीशों की चिंताओं का विषय होनी चाहिए। वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.4 फीसदी रहना चिंता का सबब बनी, क्योंकि यह विकास दर पिछली सात तिमाहियों के सबसे निचले स्तर पर है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीता वर्ष आम चुनावों व कई बड़े राज्यों में चुनाव का साल था, जिसमें भारी मात्रा में अनुत्पादक सरकारी खर्च हुआ है। जो कहीं न कहीं देश की विकास दर को प्रभावित करता है।

बहरहाल, इसके बावजूद केंद्र सरकार विकास दर व मंदी की आहट को लेकर चिंतित नजर नहीं आती तो उसकी वजह है कि भारत की यह विकास दर भी दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से अधिक है। आर्थिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि वर्ष 2024-25 की तीसरी व चौथी तिमाही में विकास दर के तेज रहने के आसार हैं। जैसा कि केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि आगामी वित्तीय वर्ष में देश की आर्थिक विकास दर 6.6 फीसदी रहेगी। जिसके आधार पर विभिन्न रेटिंग एजेंसियां व आईएमएफ अनुमान लगा रहा है कि इस साल भारत दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। लेकिन यह विचारणीय प्रश्न यह है कि कुलांचें भरते शेयर बाजार और बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल करते देश में एक आम आदमी के जीवन में धनात्मक वृद्धि नजर क्यों नहीं आ रही है? सवाल यह भी है कि यदि देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के दावे किए जा रहे हैं तो क्या देश में गरीबी, कुपोषण, असमानता की समस्या खत्म हो रही है? क्या स्वास्थ्य सेवाओं में अपेक्षित सुधार हो रहा है? सवाल यह भी कि क्या पर्याप्त रोजगार के अभाव में होने वाला विकास तार्किकता की कसौटी पर खरा उतर रहा है? क्यों शहरी व ग्रामीण बेरोजगारी दर में इजाफा हो रहा है? आखिर क्यों राजनीतिक लाभ-हानि के गणित से परे संवेदनशील ढंग से बेरोजगारी की समस्या के समाधान के गंभीर प्रयास होते नजर नहीं आते? जब हम यह कहते नहीं थकते कि देश दुनिया में सबसे ज्यादा युवाओं का देश है तो क्या हम इन युवा हाथों को उनकी योग्यता व क्षमता के अनुरूप रोजगार के अवसर उपलब्ध करा पा रहे हैं? आखिर क्यों देश में युवाओं का तेजी से पलायन हो रहा है? क्यों वे छोटी-मोटी नौकरियों के लिये विदेश जाने की होड़ में लगे हैं? क्यों अपनी योग्यता से कम की नौकरी करने को मजबूर हैं? देश के नेताओं को गाल बजाने की बजाय आम आदमी को परेशान करने वाली कृत्रिम महंगाई, सामाजिक असुरक्षा तथा बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निबटने के लिये दूरगामी नीतियों के क्रियान्वयन के प्रयास करने चाहिए।

Advertisement

Advertisement
×