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चंडीगढ़ की कसक

सपने में भी न सोचा चार सौ पार होगा एक्यूआई
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अभी भी चंडीगढ़ के लोग विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि शहर की फिजा में इतना ज़हर घुल चुका है कि एक्यूआई चार सौ का आंकड़ा पार कर गया। सिटी ब्यूटीफुल के उपनाम से विख्यात इस शहर को किसकी नज़र लगी, शहर के बाशिंदे अब तक समझ नहीं पा रहे हैं। लोग बताते नहीं थकते कि ऐसा मंजर उन्होंने जिंदगी में पहली बार देखा है। कभी लोग इस शहर की खूबसूरती और स्वास्थ्यवर्धक आबोहवा की कसमें खाया करते थे। पं. जवाहर लाल नेहरू के सपनों का शहर, जिसे तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो ने रात-दिन एक करके हकीकत बनाया। फिर फ्रांस के नामचीन वास्तुकार ली कार्बूजिए ने अपनी भारतीय टीम के साथ मिलकर उस सपने को साकार किया। भरपूर हरियाली और योजनाबद्ध तरीके से बने शहर में ऐसा कुछ नहीं दिखता जो भयावह प्रदूषण का सबब बने। विस्तृत सुखना झील, इसके पर्यावरण व सौंदर्य को निखारती है और आबोहवा को शुद्ध करती है। इस शहर को तीन प्रदेशों की राजधानी होने का दर्जा हासिल है। पंजाब व हरियाणा के साथ खुद केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ की भी राजधानी है। ऐसे में जब सिटी ब्यूटीफुल के लोगों ने अखबारों में चंडीगढ़ के एक्यूआई लेवल के चार सौ पार करने का समाचार पढ़ा तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। एक शहर जिसके सौंदर्य व आबोहवा की शान में पंजाबी गीतों में तमाम कसीदे पढ़े जाते थे, उसे यकायक ये क्या हो गया। शासन प्रशासन के लिये भी यह एक नई चुनौती थी। ऐसी स्थिति पहले कभी उसके सामने आई भी नहीं थी। नौकरशाह भी हतप्रभ थे कि किया क्या जाए। इस ज़हरीली फिजा में प्रत्यक्ष तौर पर शहर की भूमिका भी तो नहीं थी। यहां न तो ऐसी कोई इंडस्ट्री थी और न ही थर्मल प्लांट आदि, जिन पर तत्काल कार्रवाई होती। एक सुनियोजित-व्यवस्थित शहर व जागरूक नागरिक और साथ में सचेत तंत्र। वैसे आधुनिक सभ्यता की विसंगतियां तो जरूर थीं जो तापमान बढ़ाने में किसी हद तक भूमिका निभाती हैं।

बहरहाल, समय के साथ-साथ बहुत कुछ ऐसा बदला जरूर है जो इस शहर की आबोहवा में दखल देता है। कभी चंडीगढ़ को बाबुओं का शहर कहा जाता था। बदलते वक्त के साथ कारों का हुजूम जरूर यातायात और पार्किंग की समस्या खड़ी करता है। लेकिन उसकी एक्यूआई लेवल को चार सौ पार पहुंचाने में इतनी बड़ी भूमिका भी नहीं रही। वैसे तो आधुनिक जीवनशैली के चलते एसी, फ्रिज, कार और निकटवर्ती इलाकों में अंधाधुंध निर्माण कार्यों में तेजी ने हमारे पर्यावरण पर हर शहर की तरह असर तो डाला है। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमें जो भूमिका पर्यावरण संरक्षण हेतु निभानी चाहिए, वो हम नहीं निभाते हैं। यूं तो चंडीगढ़ का मूल स्वरूप बरकरार है। कुछ सेक्टर नये जुड़े हैं, लेकिन सुनियोजित तरीके से ही उनका विस्तार हुआ। चंडीगढ़ के निर्धारित स्वरूप के चलते इसके अधिक विस्तार की गुंजाइश भी नहीं है, लेकिन इसके चारों ओर तमाम छोटे-बड़े शहरों का विस्तार हुआ है। घनी आबादी कहीं न कहीं चंडीगढ़ पर दबाव जरूर बनाती है। लेकिन यह स्थिति उतनी विकट नहीं है कि शहर का एक्यूआई लेवल चार सौ पार करे। कह सकते हैं कि इसके आसपास के राज्यों में जलती पराली की इसमें किसी सीमा तक भूमिका होगी। पड़ोसी पाकिस्तान के लाहौर में एक्यूआई लेवल की जो भयावह स्थिति है उसका असर अमृतसर से चंडीगढ़ तक कितना पड़ा, इसके लिये वैज्ञानिक अध्ययन की जरूरत है। मौसम वैज्ञानिक कह रहे हैं कि पहाड़ों में बर्फबारी के बाद मैदानों में अचानक तापमान गिरने से हवा में नमी बढ़ी है। हवा की गति धीमी होने से प्रदूषक कण आगे नहीं बढ़ रहे हैं। जिससे प्रदूषण की समस्या विकट हो रही है। हालांकि, धीरे-धीरे स्थिति सुधर रही है, मगर हर कोई चाह रहा है कि मौला बारिश दे, ताकि इस प्रदूषण से छुटकारा मिले। चंडीगढ़ के लोगों को घटनाक्रम सबक दे गया कि घर की सफाई के साथ-साथ आस-पड़ोस भी साफ-सुथरा होना चाहिए। यह भी कि कुदरत किसी भी ज्यादती का प्रतिकार करती है। हमें इसके साथ साम्य बनाकर जीवनयापन करना चाहिए। यही आने वाली पीढ़ी के लिये भी सबक है।

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