पिछले कुछ वर्षों में भारत में बड़े पैमाने पर होने वाले तकनीकी परिवर्तनों के प्रति खासा उत्साह देखा गया है। देश में सामाजिक व आर्थिक स्तर पर तेजी से डिजिटल परिवर्तन को जनसाधारण ने भी उत्साह के साथ अंगीकार किया है। इस उम्मीद के साथ कि बदलते वक्त के साथ कदमताल करना अपरिहार्य है। आकांक्षा यह भी कि तकनीकी बदलाव के दौर में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में रोजगार के नये अवसर भी सृजित हों। ऐसे परिदृश्य में देश की प्रतिष्ठित मानी जाने वाली टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस द्वारा बारह हजार से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा एक परेशान करने वाला घटनाक्रम है। यह संख्या संस्था के कुल कार्यबल का दो फीसदी बैठता है। निस्संदेह, छंटनी का यह फैसला आईटी क्षेत्र में आसन्न संकट की आहट को ही दर्शाता है। कहा जा रहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से प्रेरित तकनीकी हस्तक्षेप और वैश्विक स्तर पर मांग को लेकर उत्पन्न अनिश्चितताओं के चलते भारत की प्रतिष्ठा का पर्याय रहा आईटी सेवा उद्योग संरचनात्मक बदलाव की ओर बढ़ रहा है। इस बाबत टीसीएस की दलील है कि इन नौकरियों में कटौती कौशल की कमी और अपने विकसित होते व्यावसायिक मॉडल में कुछ कर्मचारियों को फिर से नियुक्त करने में असमर्थता के चलते की गई है। हालांकि, कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का दावा है कि इस कदम के पीछे एआई से प्रेरित उत्पादकता वृद्धि नहीं है। उद्योग या बाजार की प्राथमिकताएं भी नहीं हैं। लेकिन मौजूदा समय में यह कदम लागत-अनुकूलन पहलों के चलते अन्य आईटी सेवा कंपनियों में भी छंटनी को बढ़ावा दे सकता है। इसमें दो राय नहीं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता कारोबार के नियमों में मौलिक बदलाव के चलते, भविष्य के लिये तैयार रहना हर व्यावसायिक उद्यम के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। इस नई हकीकत को देखते हुए, एक सवाल सबसे ज्यादा विचलित करने वाला यह है कि यह तकनीकी बदलाव अनिवार्य रूप से कर्मचारियों की कीमत पर होना चाहिए?
बताया जाता है कि टीसीएस ने एआई को उन्नत करने और प्रशिक्षण में भारी निवेश किया है। इसके उपरांत बताया जा रहा है कि अब वह कई माध्यम से वरिष्ठ स्तर के कर्मचारियों को सेवा में बनाये रखने में असमर्थता जता रही है। यह मानना कि नई तकनीक के साथ संवेदनशील समायोजन हमेशा लाभदायक नहीं रहता, की सोच ने एक खतरे की घंटी बजा दी है। देश के बड़े व छोटे व्यवसायों द्वारा नए तकनीकी मॉडल को आंख बंद करके अपनाने से एक परेशान करने वाले परिदृश्य का खतरा सामने नजर आ रहा है। इन उद्योगों को चिंता है कि तकनीकी बदलाव की स्पर्धा के इस परिदृश्य में कहीं वे पीछे न रह जाएं। इस अनिश्चित समय में, एक उम्मीद की किरण,यदि कोई है, तो वह है भारत का पिछले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर सफलता से तकनीकी परिवर्तन को स्वीकार करना। देश ने हर सामाजिक और आर्थिक स्तर पर तेजी से डिजिटल तकनीक को सहजता से स्वीकार किया है। एआई को अपनाने के लिये उसी तरह सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के समर्थन-सहयोग की आवश्यकता है। सार रूप में कहंे तो एक भारतीय दृष्टिकोण, जो मानव संसाधन और परिवर्तन के अनुकूल होने की उसकी क्षमता को महत्व देता है। निस्संदेह, भारत एआई के उपयोग के मामले में अमेरिका व यूरोप नहीं हो सकता। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में बेरोजगारी का संकट किसी से छिपा नहीं है। देश में श्रमबल का कौशल विकास धीरे-धीरे गति पकड़ रहा है। सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में आईटी पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। टीसीएस के इस फैसले से आईटी पाठ्यक्रमों में अध्ययन कर रहे उन लाखों छात्रों और डिग्री लेकर निकल रहे उत्साही इंजीनियरों में निराशा व्याप्त होगी। भारत में बढ़ता रोजगार संकट केंद्र सरकार से निरंतर हस्तक्षेप की मांग करता है। हाल ही में हरियाणा में कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित दो दिवसीय परीक्षा में लाखों प्रत्याशियों का शामिल होना बताता है कि बेरोजगारी किस पैमाने पर है। यह भी कि उनके लिये अवसर बेहद कम हैं।