मतदाता सूचियों की शुद्धता व पारदर्शी चुनावों के लिये चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर की प्रक्रिया को जारी रखने का निर्देश देकर देश की शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को राहत ही दी है। वहीं दूसरी ओर संसद से सड़क तक एसआईआर के मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश में लगे विपक्ष को इस निर्णय से बैकफुट पर आना पड़ेगा। दरअसल, विपक्षी दल बिहार में शुरू हुई एसआईआर प्रक्रिया को लेकर लगातार मुखर विरोध करते रहे हैं और मामला कई बार अदालत तक भी पहुंचा था। लेकिन बिहार में बहुत कम समय में यह काम पूरा हुआ और राज्य में नई सरकार भी चुन ली गई है। हालिया प्रक्रिया की कथित विसंगतियों के बाबत सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सूर्यकांत के नेतृत्व वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों के कर्मचारी एसआईआर व अन्य वैधानिक दायित्वों के निर्वहन के लिये बाध्य हैं। वहीं कोर्ट ने राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को निर्देश दिए हैं कि एसआईआर में लगे बूथ लेवल अधिकारियों पर काम का दबाव कम करने के लिए तुरंत कदम उठाएं। इसके लिये अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति करने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों विशेष गहन पुनरीक्षण में लगे कई बीएलओ के तनाव से मरने व आत्महत्या करने के समाचार आए थे। जिसके चलते चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को एक सप्ताह के लिये आगे बढ़ाया था। वहीं दूसरी ओर अदालत ने स्पष्ट किया कि एसआईआर को लेकर चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती नहीं दी जा सकती। यह भी कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसके पास मतदाता सूचियों में पारदर्शिता लाने के लिये एसआईआर को अंजाम देने के संवैधानिक व कानूनी अधिकार हैं। साथ ही अदालत ने इस प्रक्रिया पर किसी तरह की रोक लगाने से इनकार किया। इसके अलावा अदालत का कहना था कि यदि भविष्य में किसी तरह की अनियमितता सामने आती है तो तुरंत कार्रवाई के आदेश दिए जाएंगे।
निस्संदेह, विगत में भी देश में समय-समय पर मतदाता सूचियों में पुनरीक्षण का कार्य होता रहा है। लेकिन यह कभी इतना बड़ा राजनीतिक विरोध का मुद्दा नहीं बना। बहरहाल, अदालत के इस आदेश के बाद विशेष गहन पुनरीक्षण को मुद्दा बनाकर विरोध करने वाले राजनीतिक दलों को झटका अवश्य लगा होगा। हालांकि, इससे पहले भी अदालत ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार किया था। साथ ही उससे जुड़ी विसंगतियों को दूर करने को जरूरी निर्देश अवश्य दिए थे। जहां तक बूथ लेवल अधिकारियों पर काम के दबाव का सवाल है तो निश्चित ही यह एक श्रम साध्य कार्य है। इस काम में लगे शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों को विशेष गहन पुनरीक्षण से जुड़े दस्तावेजों के प्रमाणीकरण और शिकायतों के निवारण में खासी माथापच्ची करनी पड़ती है। इसलिए बीएलओ के काम के बोझ को कम करने का प्रयास करना बेहद जरूरी है। जिसके लिये कर्मचारियों की संख्या तुरंत बढ़ाने की जरूरत है, जिससे बीएलओ का काम का बोझ कम हो सके। उन्हें साप्ताहिक अवकाश लेने का अवसर मिल सके। निस्संदेह, सार्वजनिक जीवन में राष्ट्रीय दायित्व का निर्वहन नियुक्त कर्मचारियों के लिये अपरिहार्य है। ऐसी ही जटिलता का सामना कर्मचारियों को जनगणना आदि कार्यक्रमों व स्वास्थ्य से जुड़े मिशनों में करना पड़ता है। घर-घर जाना और लोगों की तल्ख प्रतिक्रियाओं का भी सामना करना पड़ सकता है। वहीं विशेष गहन पुनरीक्षण का विरोध कर रहे राजनीतिक दलों का भी दायित्व है कि वे अपने दल के बूथ स्तरीय अधिकारियों को बीएलओ की मदद करने को प्रेरित करें। महज सत्ता पक्ष की नीतियों के विरोध के लिये विरोध करना स्वस्थ लोकतंत्र के हित में नहीं कहा जा सकता। विपक्ष को लोकतंत्र के हित में विरोध के साथ रचनात्मक सहयोग भी करना चाहिए। लोकतंत्र को संबल देने वाली विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया को सफल बनाने में जहां सरकारी कर्मचारियों की बड़ी भूमिका है, वहीं राजनीतिक दलों व आम नागरिकों के भी दायित्व हैं। नागरिकों को राष्ट्रीय कार्यों में नागरिक धर्म का भी निर्वाह करना चाहिए। आम लोगों की सजगता व सक्रियता बूथ लेवल अधिकारियों के बोझ को कुछ कम जरूर कर सकती है।

