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नशे के खिलाफ कदम

जन-जन की फौज जीतेगी जंग
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देश में नासूर बनते नशे के खिलाफ अभियान में यदि 114 वर्षीय धावक फौजा सिंह प्रेरक पदयात्रा कर सकते हैं तो ऊर्जावान युवा-बुजुर्ग क्यों नहीं। ‘नशा मुक्त-रंगला पंजाब’ अभियान के अंतर्गत निकाले गए नशा विरोधी मार्च में मंगलवार को मैराथन धावक फौजा सिंह के साथ ही पंजाब के राज्यपाल अस्सी वर्षीय गुलाब चंद कटारिया की आठ किलोमीटर की पैदल यात्रा सुर्खियों में रही। निश्चित रूप से पंजाब सरकार की पहल अनुकरणीय है। इसमें दो राय नहीं कि कोई भी बड़ा सामाजिक बदलाव का आंदोलन व्यापक जन भागीदारी से ही सिरे चढ़ सकता है। आज पंजाब समेत देश के अन्य राज्यों में युवा पीढ़ी जिस भयावह तरीके से नशे के दलदल में धंसती जा रही है, वह राष्ट्र के लिये एक गंभीर चुनौती है। जिसका मुकाबला सरकारों के साथ आम आदमी के जुड़ाव से ही संभव है। निश्चित रूप से ऐसी पदयात्रा सिर्फ राजनीतिक निहितार्थों और प्रतीकात्मक रूप से आयोजित नहीं होनी चाहिए। ऐसे अभियान को आंदोलन का रूप देकर इस तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाना चाहिए। साथ ही इस तरह के अभियानों से हासिल उपलब्धियों का मूल्यांकन भी जरूरी है। निस्संदेह, औपचारिकताओं के निर्वहन और मीडिया में सुर्खियां बटोरना ऐसे आंदोलन का लक्ष्य तो कदापि नहीं हो सकता। राज्यपाल महोदय का यह कथन सोलह आने सच है कि इस मुद्दे पर बच्चों को शिक्षित करने के साथ ही महिलाओं की इस आंदोलन में व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। निस्संदेह, नशे के नश्तर से महिलाओं को मर्मांतक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। अब चाहे पति हो या बेटा, नशे की लत लगने से पूरा परिवार ही संकट में आ जाता है। इसमें दो राय नहीं कि जब पंजाब की नारी शक्ति एकजुट होकर इस मुहिम का नेतृत्व करेगी तो पंजाब अपने स्वर्णिम दिनों की ओर लौट सकता है। निश्चित रूप से किसी राज्य या देश की जवानी का नशे के सैलाब में डूबना राष्ट्रीय क्षति ही है। इसके लिये नशे की आपूर्ति रोकने से लेकर प्रयोग तक पर नियंत्रण की राष्ट्रव्यापी मुहिम की जरूरत है।

निस्संदेह, नशे के तेजी से बढ़ते शिकंजे से न केवल असामयिक मौतों, लाइलाज बीमारियों का खतरा बढ़ता है, बल्कि समाज में अपराधों का सिलसिला भी तेज हो जाता है। देखने में आया है कि बड़े अपराधों से लेकर चोरी छीनाझपटी की घटनाओं के मूल में नशाखोरी की भूमिका होती है। कई आपराधिक घटनाओं के मूल में उन कालेज जाने वाले छात्रों की भूमिका पायी गई है, जो नशे के लिये पैसा जुटाने के लिये अपराध की अंधी गलियों में उतर जाते हैं। यह जानते हुए भी यह रास्ता उनके जीवन को बर्बादी की राह पर ले जाता है। निश्चित रूप से समाज विज्ञानियों को भी व्यापक अध्ययन करना चाहिए कि क्यों नई पीढ़ी नशे की ओर तेजी से उन्मुख हो रही है। एक समय था कि पंजाब में आतंक फैलाने के खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिये सीमा पार से नशे की बड़ी खेप पंजाब भेजी जाती रही है। चरमपंथियों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिये भी इस षड्यंत्र को सुनियोजित तरीके पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठानों ने अंजाम दिया। हाल के दिनों में बीएसएफ ने पाकिस्तान की सीमा से लगते भारतीय इलाकों में ड्रोन के जरिये नशीले पदार्थों को गिराने की साजिशों पर लगाम लगायी है। निश्चित रूप से पहले कदम के रूप में सीमाओं को नशे की तस्करी से निरापद बनाने की जरूरत है। वहीं हमारी सुरक्षा व्यवस्था में शामिल उन काली भेड़ों को भी बेनकाब करने की जरूरत है जो नशे के कारोबार को बढ़ावा दे रही हैं। साथ ही नशे से पीड़ितों को इस दलदल से बाहर निकालने के लिये नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना और पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक उपचार देने की भी जरूरत है। निश्चित रूप से नशा पंजाब के लिये बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जिसके खिलाफ साझा लड़ाई से ही हम कामयाब हो सकते हैं। सही मायनों में यह स्थिति इस संवेदनशील सीमांत राज्य के लिये ही चुनौती नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय संकट की भी आहट है। केंद्रीय एजेंसियों व पंजाब के शासन-प्रशासन को मिलकर नशे के समूल नाश के लिये व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है।

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