खाद्य सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में भुखमरी की समस्या विकराल होती जा रही है। पूरी दुनिया में 2.3 अरब लोगों को भोजन सामग्री जुटाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। यह आंकड़ा 2021 का है, जिसमें कोरोना संकट के घातक प्रभाव भी निहित हैं। इस साल शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अनाज, पेट्रोलियम पदार्थों व खाद आदि के दाम बढ़ने से आज पूरी दुनिया जिस चुनौती का सामना कर रही है, उसके बाद की भयावह स्थिति का अंदाजा स्वत: ही लगाया जा सकता है। विडंबना ही है कि पूरी दुनिया में भुखमरी, खाद्य असुरक्षा तथा कुपोषण को दूर करने के लिये पिछले दशक में जो प्रयास किये गये थे, उन पर पानी फिरता नजर आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया प्रकाशित रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि वर्ष 2030 तक भूख,खाद्य असुरक्षा व कुपोषण को खत्म करने के जो लक्ष्य निर्धारित किये गये थे, उन्हें पूरा करना अब मुश्किल नजर आता है। उल्लेखनीय है कि दुनिया में खाद्य संकट से प्रभावित देशों में बारह देश अफ्रीका से, एक कैरिबियन देश हैती व दो एशिया से अफगानिस्तान व यमन हैं। इस भुखमरी के मूल में जहां सशस्त्र संघर्ष, कर्ज का बोझ, बेरोजगारी व गरीबी का दायरा है, वहीं कुशासन की भी बड़ी भूमिका है। निस्संदेह, पहले कोरोना महामारी और फिर यूक्रेन संकट ने इस विभीषिका को विस्तार ही दिया है। यही वजह है कि दुनिया के करीब तीन अरब लोग स्वस्थ व्यक्ति के लिये जरूरी खुराक जुटाने में असमर्थ हो गये हैं। यह संकट तथाकथित आधुनिक विकास के उस मॉडल पर सवालिया निशान लगाता है जो दुनिया में विज्ञान व तकनीक की क्रांति का दंभ भरता हुआ एकांगी विकास को बढ़ावा दे रहा है। एक तरफ समृद्धि व संपन्नता लहरा रही है तो दूसरी तरफ अरबों लोगों के जीवन में विपन्नता का अंधेरा गहरा होता जा रहा है।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि विभिन्न देशों की सरकारें आर्थिक विसंगतियां दूर करने को ईमानदार प्रयास क्यों नहीं करती। इस संकट को दूर करने के लिये कारगर रणनीति क्यों नहीं बनती , जिसके चलते भुखमरी व कुपोषण का संकट विकराल रूप में उपस्थित होता है। विश्व में करीब तीन अरब लोगों का स्वस्थ जीवन के लिये जरूरी खुराक न जुटा पाना इसकी बानगी है। हालांकि, पहले से जारी संकट को बढ़ाने में कोरोना संकट के दौरान उपजी महंगाई की बड़ी भूमिका है, लेकिन इसके मूल में सत्ताधीशों की काहिली भी है। कहना कठिन है कि कोरोना संक्रमण रोकने के लिये लागू किये गये कठोर उपायों से कितना संक्रमण रुका,लेकिन गरीबी की दलदल को इसने जरूर बढ़ा दिया। सवाल उठता है कि विभिन्न वैश्विक संस्थाएं व इन मामलों के विशेषज्ञ गरीबी-भुखमरी दूर करने के लिये दूरगामी रणनीति क्यों नहीं तैयार करते। यही वजह है कि इस संकट से निबटने के लिये बनायी रणनीतियां व्यावहारिक धरातल पर कारगर साबित नहीं हो रही हैं। व्यवस्था के छेद व भ्रष्टाचार इस संकट को सींच रहे हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि कुदरत ने हर व्यक्ति का पेट भरने का इंतजाम किया है लेकिन संसाधनों के अन्यायपूर्ण बंटवारे ने गरीबी-भुखमरी को जन्म दिया है। पहले उपनिवेशवाद,फिर साम्राज्यवाद और अंतत: विकसित देशों के हितों के मद्देनजर बनी वैश्विक अर्थव्यवस्था ने अमीरी-गरीबी की खाई को लगातार चौड़ा किया है। कोरोना संकट में भारत तथा विदेशों में गरीबी का विस्तार और अरबपतियों की संख्या में इजाफा इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था का सच है। जरूरी है कि उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का नियोजन करके खाद्य असुरक्षा व भुखमरी के खिलाफ युद्ध छेड़ा जाये। कैसी विडंबना है कि धरती पर खाद्य असुरक्षा व भुखमरी का आलम है और संपन्न देश दूसरे ग्रहों पर जीवन तलाश रहे हैं। यह संपन्न देशों की जिम्मेदारी है कि गरीबी से जूझते देशों में जीने लायक भोजन हर व्यक्ति को मिल सके। दुनिया के किसी मुल्क में गरीबी व अराजकता से उपजी आग की तपिश पूरी दुनिया में महसूस होती है। ऐसे में विश्व बिरादरी को गरीबी व भुखमरी से लड़ाई में सहयोग करने की जरूरत है।