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मसाले के मसले

वैश्विक प्रतिष्ठा व सेहत अनुकूल हो गुणवत्ता

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निस्संदेह, भारतीय मसालों का जिक्र किये बिना दुनिया का इतिहास पूरा नहीं हो सकता। विदेशी शासकों के राज से पहले भी भारतीय मसाले देश की आर्थिकी का मजबूत आधार होते थे। इनकी गुणवत्ता के लिहाज से भारत को मसालों के देश की संज्ञा दी जाती रही है। भोजन को लजीज बनाने, इम्यूनिटी बढ़ाने व पाचन सुधारने में इनकी बड़ी भूमिका रहती है। लेकिन यह खबर परेशान करने वाली है कि दुनिया के कई देशों में भारतीय मसालों में सेहत के लिये हानिकारक पदार्थ पाए गए हैं। ये मसाले सदियों तक भारत की पहचान होते थे। कहा जाता है कि कभी पुर्तगाली व अन्य यूरोपीय हमलावर मसालों की तलाश में ही भारत आए थे। ये मसाले न केवल रोगनाशक बल्कि इम्यूनिटी बढ़ाने वाले भी होते हैं। पूरे कोरोना संकट में इन मसालों ने ही देश के लोगों का मनोबल बनाये रखने में खासी मदद की। यहां तक कि आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सक हमारी रसोई को आम भारतीय का मेडिकल स्टोर तक कहते हैं। बहरहाल, हांगकांग व सिंगापुर में दो चर्चित भारतीय कंपनियों के मसालों को सेहत के लिये घातक बताते हुए इन पर प्रतिबंध लगाया गया है। ये वे मसाले हैं, जिनका भारत के हर घर में उपयोग होता है और जो भारतीयों के स्वाद में रचे-बसे हैं। यह तथ्य भी विचारणीय है कि यदि इन कंपनियों के मसाले में वास्तव में घातक पदार्थ मौजूद हैं तो गुणवत्ता नियामक संस्था फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने जांच क्यों नहीं की? क्यों करोड़ों भारतीयों की सेहत को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया? हकीकत यह भी है कि चीनी स्वामित्व वाले हांगकांग में दो भारतीय ब्रांड्स के मसालों पर बैन लगाया गया है। आरोप लगाया गया कि इन मसालों में कैंसर का कारक बन सकने वाला एथिलीन ऑक्साइड पेस्टीसाइड मिला है। जिसके चलते हांगकांग की फूड सेफ्टी अथॉरिटी ने दो भारतीय बड़े ब्रांड्स के चार मसाले जांच में फेल कर दिये हैं।

दरअसल, हांगकांग के फूड एंड एनवायरमेंटल हाइजीन डिपार्टमेंट ने पांच अप्रैल को जारी रिपोर्ट में दो भारतीय कंपनियों के करी पाउडर, सांभर मसाला, फिश करी मसाला व मिक्स्ड मसाला पाउडर के सैंपल फेल होने की बात कही है। वहीं कहा जा रहा है कि यूरोपीय यूनियन ने सैकड़ों भारतीय खाद्य पदार्थों में ऐसे ही केमिकल का उपयोग पाया है। उनका कहना है कि यूरोप जाने वाले उत्पादों में यह केमिकल रूटीन तौर पर पाया जाता है। जिसमें अखरोट, तिल के बीज, मसाले व अन्य खाद्य उत्पाद शामिल हैं। इनमें कुछ को बॉर्डर से वापस भेजा गया तथा कुछ को बाद में बाजार से हटा दिया गया। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बता रहे हैं कि एथिलीन ऑक्साइड के प्रभाव से लिंफोमा और ल्यूकीमिया आदि कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। खाद्य सुरक्षा पर नजर रखने वाली संस्थाएं इन्हें घातक बता रही हैं। उल्लेखनीय है कि बीते सालों में अफ्रीका में बच्चों की मौत का कारण जिस भारतीय कफ सीरप को बताया गया था, उसमें भी एथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा पायी गई थी। निस्संदेह, भारत सरकार और नियामक संस्थाओं को इन आरोपों को गंभीरता से लेना चाहिए। एक पक्ष यह भी है कि ये मामले तब सामने आए हैं, जब पिछले दिनों भारत सरकार ने कुछ यूरोपीय स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों को सेहत के लिये हानिकारक घोषित किया है। इसके बावजूद हमें ध्यान रखना होगा कि दुनिया के मसाला कारोबार में हमारी हिस्सेदारी 43 फीसदी है। अत: भारत को अपने मसाला उत्पादों की विश्वसनीयता बनाये रखनी होगी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा मसाला उत्पादक व निर्यातक देश भी है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 के बाद भारत के मसाला निर्यात में तीस फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। साथ ही इस दशक के अंत तक मसाला उद्योग को दस अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। यदि इनकी गुणवत्ता में किसी भी तरह खोट नजर आती है तो इससे भारत की प्रतिष्ठा को भी आंच आएगी। इसके साथ ही भारतीय नागरिकों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा। बहुत संभव है आने वाले दिनों में फिर से भारत में खड़े मसालों की ओर लौटने का रुझान बढ़े।

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