उम्मीद के अनुरूप चुनाव आयोग ने मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के दूसरे चरण की विधिवत शुरुआत कर दी है। इस चरण में देश के नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के तकरीब 51 करोड़ मतदाता शामिल होंगे। उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिये केवल तीन माह का समय दिया है। लेकिन एक बात तो तय है कि बिहार में एसआईआर पर लंबे समय से चले विवादों के मद्देनजर, इस प्रक्रिया को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। खासकर उन राज्यों में जहां विपक्षी दल शासित सरकारें हैं। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु व महाराष्ट्र से ऐसी प्रतिक्रिया आनी भी शुरू हो गई है। इसमें दो राय नहीं कि किसी भी लोकतंत्र में पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया के लिये जरूरी है कि पात्र मतदाता का नाम मतदाता सूची में निश्चित रूप से शामिल किया जाना चाहिए। वहीं अयोग्य मतदाता को हटाना सुनिश्चित करने के उद्देश्य को लेकर कोई विवाद नहीं माना जा सकता। बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान विपक्षी दलों की तीखी प्रतिक्रिया के मद्देनजर पूरी प्रक्रिया के दौरान पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही तत्काल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इस बाबत मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि आगामी एसआईआर का लक्ष्य मतदाता सूचियों की लंबे समय से लंबित राष्ट्रव्यापी सफाई करना है। ऐसे व्यापक संशोधन देश में समय-समय पर हुए हैं और पिछला संशोधन दो दशक पहले हुआ था। जाहिर बात है कि इस लंबे अंतराल के दौरान मतदाता सूचियों में कई विसंगतियां और त्रुटियां उत्पन्न हो गई होंगी। आयोग ने उदाहरण देते हुए कहा है कि प्रशांत किशोर बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी मतदाता के रूप में सूचीबद्ध हैं। देश में निष्पक्ष चुनाव के लिये इन सूचियों का प्रमाणीकरण अपेक्षित है। लेकिन इसके बावजूद विपक्ष दलों की आशंकाओं की अनदेखी भी नहीं की जानी चाहिए। साथ ही लोगों में लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया के प्रति उत्साह बना रहना भी जरूरी है।
दरअसल, कांग्रेस, माकपा, तृणमूल कांग्रेस आदि दलों को आशंका है कि एसआईआर का इस्तेमाल अवैध मतदाताओं की पहचान की आड़ में लक्षित वास्तविक मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने के लिये हो सकता है। वैसे बिहार में हुई कवायद के बाद ज्ञात नहीं है कि यह प्रक्रिया कितने अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने में सफल रही है। निस्संदेह, चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा उचित प्रक्रिया-परिश्रम और जनता के विश्वास पर ही टिकी है। निर्विवाद रूप से देश में चुनाव कराने वाली शीर्ष संवैधानिक संस्था की ईमानदारी और निष्पक्षता दोषमुक्त होनी ही चाहिए। चुनाव आयोग को व्यापक सत्यापन, इस प्रक्रिया से जुड़े तमाम हितधारकों के साथ विमर्श और वास्तविक मतदाताओं के मताधिकार को अक्षुण्ण बनाने हेतु एक ठोस निवारण तंत्र विकसित करने की जरूरत है। विपक्षी दलों द्वारा वोट चोरी और अन्य अनियमितताओं के कथित आरोपों का खंडन ठोस सबूतों के साथ किया जाना चाहिए। ताकि जनता में इस प्रक्रिया को लेकर भरोसा कायम रह सके। वैसे एसआईआर के दूसरे चरण का सकारात्मक पक्ष यह जरूर है कि आयोग ने प्रक्रिया के लिये पर्याप्त समय दिया है ताकि बिहार जैसी जल्दबाजी और अफरातफरी के आक्षेपों से बचा जा सके। निश्चित रूप से आधार कार्ड को सहायक दस्तावेज के रूप में मान्यता देने का लाभ प्रक्रिया के सरलीकरण में मिलेगा। विश्वास किया जाना चाहिए कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान सामने आई चुनौतियां इस दूसरे चरण की प्रक्रिया में मार्गदर्शक का कार्य करेंगी। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि दूसरे चरण में शामिल राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों को वैसी परेशानी का सामना न करना पड़े, जैसी कि बिहार के लोगों में सामने आई थी। लेकिन इसके साथ यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि योग्य मतदाता न छूटे और कोई फर्जी मतदाता लिस्ट में शामिल न होने पाए। यहां उल्लेखनीय है कि जिन राज्यों में दूसरे चरण के दौरान मतदाता सूचियों को गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया से गुजरना है, उनमें से कुछ में अगले साल चुनाव होने हैं। इनमें पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु व पुडुचेरी शामिल हैं। बहरहाल, कोशिश हो कि न ही जनता को परेशानी उठानी पड़े और न ही चुनाव कर्मियों में भ्रम जैसी स्थिति बनी रहे।

