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चमकदार कांस्य पदक

टोक्यो से पेरिस तक पदकों से हॉकी को प्रतिष्ठा
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पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट के साथ हुए अप्रिय घटनाक्रम से आहत भारतीयों के टूटे दिलों पर हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर मरहम ही लगाई है। हॉकी टीम ने स्पेन को 2-1 से हराकर कांस्य पदक देश के नाम किया। टीम ने लगातार दूसरे ओलंपिक में भी हॉकी का कांस्य पदक भारत की झोली में डाला। टीम की दृढ़ता व टीम भावना के चलते यह कामयाबी मिली है। अपने इस परंपरागत खेल से भारतीयों का भावनात्मक लगाव सदैव रहा है, जिसको भारतीय टीम ने संबल ही दिया। निस्संदेह, इससे हॉकी की लोकप्रियता को बढ़ावा मिलेगा। उल्लेखनीय है कि भारतीय टीम ने मजबूत टीमों को हराकर सेमीफाइनल में जगह बनायी थी। हालांकि, वह अपने एक मजबूत खिलाड़ी की अनुपस्थिति में सेमीफाइनल में जर्मनी से हार गई थी। लेकिन कांस्य पदक जीतने के बाद हॉकी टीम से खेल प्रेमियों ने कहा कि यह उपलब्धि सोने की चमक से कम नहीं है। हालांकि एक समय था कि अंतिम मुकाबले में स्पेन एक शून्य की बढ़त लिए हुए था, लेकिन भारतीय टीम ने न केवल खेल में वापसी की बल्कि स्पेन को 2-1 से हराया भी। उल्लेखनीय है कि भारतीय हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में भी कांस्य पदक जीता था। पेरिस ओलंपिक के अंतिम मुकाबले में कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने कप्तान वाली पारी खेली। उन्होंने पेनल्टी कॉर्नर से गोल करके पहले स्कोर बराबर किया और फिर दूसरे गोल से प्रतिपक्षी टीम पर अजेय बढ़त ले ली। जर्मनी से हुए मुकाबले में जिस फर्स्ट रशर अमित रोहिदास की कमी खली थी, अंतिम मुकाबले में उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज की। उल्लेखनीय है कि ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ रोहिदास को रेड कार्ड मिला था। जिसके चलते उन पर एक मैच खेलने का प्रतिबंध लगा था। यही वजह कि जर्मनी के मुकाबले में उनकी कमी टीम को खली थी। कालांतर में भारत ने जर्मनी के खिलाफ मैच 3-2 से गंवाया था।

बहरहाल, पेरिस ओलंपिक के विभिन्न मुकाबलों में सशक्त नजर आ रही टीम जर्मनी के साथ सेमीफाइनल में मिली शिकस्त के बाद स्वर्णिम सफलता से वंचित हो गई। हालांकि, ओलंपिक में तेरह पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम का अतीत शानदार रहा है। खासकर हिटलर की उपस्थिति वाले बर्लिन ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद के खेल और स्वर्ण पदक की चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती है। ओलंपिक के इतिहास में भारत ने आठ स्वर्ण, एक रजत और चार कांस्य पदक जीते हैं। हालांकि, वर्ष 1980 के मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद फिर टीम सुनहरी सफलता से वंचित रही। उसके बाद तो पदकों का सूखा 41 साल बाद टोक्यो ओलंपिक में मिले कांस्य पदक से टूटा। हालांकि, भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 52 साल बाद लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने का गौरव हासिल किया है। यद्यपि पेरिस ओलंपिक में मजबूत मानी जा रही टीम टोक्यो ओलंपिक के पदक का रंग नहीं बदल सकी, लेकिन उसकी कामयाबी से परंपरागत भारतीय खेल की प्रतिष्ठा फिर स्थापित हुई। बहरहाल, इस बार ग्रुप स्टेज में मजबूत टीमों की उपस्थिति के बावजूद टीम का प्रदर्शन तीसरे स्थान के मुकाबले तक शानदार ही रहा। फर्क इतना ही रहा कि जहां टोक्यो मुकाबले में भारतीय टीम ने जर्मनी को हराकर कांस्य पदक जीता था, वहीं इस बार जर्मनी से हारकर वह स्वर्ण पदक से दूर हो गई। इस ओलंपिक में आस्ट्रेलिया-ब्रिटेन को हराना उसकी बड़ी उपलब्धि भी रही। विश्वास किया जाना चाहिए कि 1928 में पहली बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय हॉकी टीम ने जो स्वर्णिम उपलब्धियां हासिल की, निकट भविष्य में वह उसे जरूर दोहरायेगी। फिर कोई ध्यान चंद जैसा दिग्गज भारतीय टीम को मिलेगा। वहीं दूसरी ओर पेरिस ओलंपिक को प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाफ गोल पोस्ट में चट्टान की तरह खड़े रहने वाले सफल गोलकीपर पी.आर. श्रीजेश की विदाई के रूप में भी याद किया जाएगा। अंतिम मुकाबले में टीम को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले श्रीजेश ने वही जुनून और जज्बा दिखाया, जो कोई खिलाड़ी अपने पहले मैच में दिखाता है। उन्होंने स्पेन द्वारा किये गए अधिकांश हमलों को विफल बनाकर टीम की जीत को सुनिश्चित किया।

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