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सेवा की सज़ा

जेल सुधार में हरियाणा की बदलावकारी पहल
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इसमें दो राय नहीं कि जब भी मूल रूप से जेल की अवधारणा का विकास हुआ होगा, तो उसका मकसद भटके लोगों के जीवन में सुधार ही रहा होगा। किसी सभ्य समाज के कायदे-कानून तोड़ने वाले, भटके हुए लोगों को जेल के एकाकी जीवन में आत्ममंथन का समय देने का भी मकसद रहा होगा। साथ ही यह भी अहसास कराना होगा कि समाज से विलग रहने के क्या मायने हैं। वहीं दूसरी ओर जीवन मूल्यों व सामाजिकता का अहसास कराना भी मकसद रहा होगा। दरअसल, भारतीय न्याय संहिता, 2023 पर आधारित नई व्यवस्था छोटे अपराधों के लिए दोषियों को जेल भेजने के बजाय समाज सेवा करने का अवसर देती है। ताकि उन्हें अपनी गलती का अहसास हो और उत्तरदायित्व के साथ सामाजिकता का बोध हो सके। हरियाणा सरकार द्वारा जारी सामुदायिक सेवा दिशानिर्देश, 2025 की अधिसूचना आपराधिक न्यायिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। जिसका लक्ष्य दंड देने के बजाय सुधार व बदलाव है। ऐसे समय में जब देश की जेलें कैदियों की निर्धारित संख्या से कहीं अधिक बोझ उठा रही हैं। विचाराधीन कैदियों की संख्या 76 फीसदी से अधिक है, राज्य की यह पहल कम जोखिम वाले अपराधियों के लिये कारावास का सकारात्मक विकल्प प्रदान करती है। निस्संदेह, इस पहल का दायरा व्यापक होने के साथ ही उद्देश्यपूर्ण भी है। यह व्यवस्था कम संगीन अपराधों के लिये दोषियों को पार्कों के रखरखाव, अस्पतालों में मरीजों की सहायता करने, आंगनबाडि़यों में योगदान देने, ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण, स्वच्छ भारत तथा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे राष्ट्रीय अभियानों में योगदान के लिये प्रेरित करती है। इस बाबत जारी दिशा-निर्देश किशोरों के लिये भी भूमिकाएं निर्धारित करते हैं। मसलन, नेशनल कैडिट कोर प्रशिक्षण, राष्ट्रीय सेवा योजना, पर्यावरण परियोजनाएं तथा महिलाओं के लिये प्रसूति वार्ड व शिशु देखभाल केंद्र जैसे सुरक्षित स्थानों पर सेवा करने का अवसर प्रदान करती है। निश्चय ही नई व्यवस्था जहां एक ओर अपराधियों को उनके अपराध का प्रायश्चित करने का अवसर प्रदान करती है, वहीं समाज में उनके योगदान को बढ़ावा देती है।

दरअसल, हरियाणा मॉडल के तहत की जाने वाली पहल, उसे अन्य राज्यों के प्रयासों से विशिष्टता प्रदान करती है। जैसे कि दिल्ली में 40 से 240 घंटे की सेवा निर्धारित करने वाली नीति से अलग, इसके परिचालन का विवरण, इसे विश्वसनीय बनाता है। इसके अंतर्गत बायोमेट्रिक उपस्थिति, जियो-टैग की गई तस्वीरें, वीडियो प्रमाण और प्रगति रिपोर्टिंग सत्यापन इसकी सार्थकता सुनिश्चित करती है। चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने वालों को गौशालाओं और वृद्धाश्रमों में सेवा करने की सजा और जम्मू की एक अदालत द्वारा अपराधियों को स्वास्थ्य केंद्र और पार्क की सफाई करने के लिये बाध्य करने का आदेश यह दर्शाता है कि सामुदायिक सेवा समाज को लाभ पहुंचाने के साथ ही भटके व्यक्ति के व्यवहार को कैसे नया रूप दे सकती है। निस्संदेह, इस सुधार अभियान को सफल बनाने के लिये सुरक्षा उपाय भी बेहद जरूरी हैं। इस बात में सावधानी बरती जानी चाहिए कि समाज में बार-बार अपराध करने वालों को इस व्यवस्था से बाहर रखा जाए। दूसरा, इससे जुड़ी निगरानी पारदर्शी और मजबूत होनी चाहिए। जिसमें सावधानी से निगरानी और चूक करने पर त्वरित दंड की व्यवस्था भी शामिल है। दूसरा उनके कार्य के परिणाम का मूल्यांकन होना चाहिए कि अभियुक्त अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं। इस बात का भी मूल्यांकन होना चाहिए क्या पीड़ितों को इस तरह की सजा दिए जाने से राहत मिली है। यह भी कि क्या समाज में अपराध की पुनरावृत्ति कम हुई है। यह इस व्यवस्था का सकारात्मक पक्ष है कि छोटी-मोटी गलतियों को यह सामाजिक ऋण चुकाने के अवसर में बदल देता है। साथ ही कारावास से होने वाले नुकसान को कम करता है। कई बार जेल के हालात, विषम परिस्थितियों में भूलवश अपराध करने वाले व्यक्ति को पेशेवर अपराधी बना देते हैं। नई पहल से अपराधी में नागरिक उत्तरदायित्व बोध का भी विकास होता है। यदि इस अभियान को विवेकपूर्ण तरीके से आगे बढ़ाया जाता है तथा ऐसे लोगों की सतर्क निगरानी की जाती है तो यह राष्ट्र के लिये सुधारात्मक न्याय का एक मॉडल भी बन सकता है।

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