लगातार ग्लोबल वार्मिंग संकट से जूझती दुनिया में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर नियंत्रण की दिशा में भारत सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता जतायी है। केंद्र सरकार के गत सप्ताह की शुरुआत में अधिसूचित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य नियम, भारत में औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षरण रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम कहा जा रहा है। इन नियमों ने कार्बन-प्रधान उद्योगों के लिये देश के पहले कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन न्यूनतम करने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। ऐसे में, जो उत्पादन इकाइयां अपने निर्धारित लक्ष्य से कम कार्बन का उत्सर्जन करती हैं, वे व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकती हैं। वहीं दूसरी ओर निर्धारित लक्ष्य से अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाली इकाइयों को भारतीय कार्बन बाजार से समतुल्य क्रेडिट खरीदना होगा या फिर जुर्माना देने को बाध्य होना होगा। दरअसल, एल्युमीनियम, सीमेंट, लुगदी एवं कागज आदि क्षेत्रों की 282 औद्योगिक इकाइयों को 2023-24 के आधार रेखा स्तर से अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि पहले अनुपालन चक्र में कुछ बड़ी कंपनियां शामिल हैं, जिसमें वेदांता, हिंडाल्को, नाल्को और बाल्को द्वारा संचालित एल्युमीनियम स्मेल्टर और अल्ट्राटेक, डालमिया, जे.के सीमेंटे,श्री सीमेंट और एसीसी के स्वामित्व वाले बड़े सीमेंट संयत्र शामिल हैं। निश्चित रूप से केंद्र सरकार ने एक सख्त संदेश दिया है कि बड़े औद्योगिक घरानों को हरित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये अनुकरणीय उदाहरण पेश करना होगा। यदि ये ताकतवर बड़े घराने हरित लक्ष्यों की पूर्ति के लिये सार्थक पहल करते हैं तो आम लोगों को भी उससे प्रेरणा मिलेगी।
यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक देश है। जिसमें चीन पहले और अमेरिका दूसरे स्थान पर है। निस्संदेह, नये नियम, जो उद्योगों को उत्सर्जन कम करने के लिये प्रोत्सहित करते हैं, उनके औद्योगिक प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार ऊर्जा दक्षता योजना पर आधारित हैं। जिसने ऊर्जा-बचत के लक्ष्य निर्धारित किए। वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिसे दंड लगाने और समयबद्ध निगरानी व वसूली का काम सौंपा गया है, को कानूनी ढांचे के अनुसार सख्ती से कार्य करने की आवश्यकता है। इस बाबत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बड़े औद्योगिक दिग्गजों के प्रतिरोध के लिये पूरी तरह तैयार रहना चाहिए। यह बात उत्साहजनक है कि भारत ने इस वर्ष पहली छमाही में पहले से कहीं अधिक सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन किया। जबकि इस अवधि के दौरान भारत के बिजली क्षेत्र में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में साल-दर-साल आधार पर एक प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। मानवीय गतिविधियों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों को जलवायु परिवर्तन का सबसे अहम कारक माना जाता है। हमारा देश, जिसने इस वर्ष ही जलवायु प्रभाव संबंधी आपदाओं की बाढ़ देखी है, को स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये युद्ध स्तर पर प्रयास करना चाहिए। निस्संदेह, सतत विकास - जलवायु के प्रति संवेदनशीलता कार्बन-तटस्थ भविष्य की ओर बढ़ने के अनुरूप होना चाहिए।