राहत का फैसला
सुप्रीमकोर्ट ने फिलहाल दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उन वाहन मालिकों को राहत दी है, जिनके वाहनों के खिलाफ पहले कार्रवाई करने के आदेश दिए थे। दरअसल, प्रदूषण संकट के मद्देनजर इन क्षेत्रों में दस वर्ष से अधिक के डीजल व पंद्रह वर्ष से अधिक के पेट्रोल वाहनों के परिचालन पर रोक लगाने का निर्णय हुआ था। मंगलवार को शीर्ष अदालत ने ऐसे वाहनों के मालिकों को राहत देते हुए अधिकारियों को दंडात्मक कार्रवाई रोकने के निर्देश दिए हैं। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट एनजीटी के निर्देश को बरकरार रखने वाले 29 अक्तूबर 2018 के फैसले को वापस लेने की मांग से संबंधित याचिका पर विचार कर रहा था। दरअसल, एनजीटी के आदेश के अनुरूप ही वाहनों को प्रतिबंधित करने के निर्देश दिए गए थे। एनजीटी ने आदेशों के अनुपालन न करने पर मोटर वाहन अधिनियम के तहत वाहनों को जब्त करने की कार्रवाई के निर्देश दिए थे। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल का कोर्ट से आग्रह था कि दंडात्मक कदम रोकने के आदेश पर विचार किया जाए। कोर्ट ने इस बाबत चार सप्ताह में जवाब देने की बात कही है। दरअसल, दिल्ली सरकार की भी ऐसी मंशा थी, जिसने प्रतिबंध को अदालत में चुनौती दी थी। वास्तव में सत्ताधीशों को आशंका थी कि इस फैसले का व्यापक विरोध हो सकता है क्योंकि लोगों को औने-पौने दामों में महंगे वाहन बेचने को बाध्य होना पड़ता। जिससे उपजा आक्रोश ट्रिपल इंजन सरकार के लिये राजनीतिक रूप से नुकसानदायक साबित हो सकता है। कोर्ट का यह भी कहना था कि केंद्र सरकार व गुणवत्ता प्रबंधन आयोग गंभीर अध्ययन करें ताकि अवधि आधारित प्रतिबंधों के मुकाबले उत्सर्जन आधारित मानदंडों का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन हो सके। दरअसल, आम मध्यमवर्गीय परिवारों में कार का इस्तेमाल कम होता है और वे अपनी आर्थिक सीमाओं के चलते वाहनों को लंबी अवधि तक बड़े कायदे से रखते हैं। उनका वाहन अधिक वर्षों तक चलता है लेकिन उसके उपयोग की अवधि कम होती है।
निस्संदेह, एक आम भारतीय के लिए कार आत्मीय अहसासों का प्रतीक भी है, जिसे वह आमतौर पर जीवन में एक बार ही खरीद पाता है। ऐसे में आत्मीय अहसासों से जुड़ी कार को औने-पौने दामों में बेचना उसके लिये कष्टकारी है। वैसे भी आजकल तमाम लोग भीड़-भाड़ से बचने के लिये टैक्सी का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में वाहन लंबे समय तक प्रदूषण रहित जीवन पा सकता है। दरअसल, दिल्ली सरकार का भी मानना था कि वाहनों की समय सीमा संबंधी नीति लागू करते वक्त इसके निर्माण वर्ष के बजाय वास्तविक इस्तेमाल के मानक पर विचार करें। दरअसल, दिल्ली सरकार ने जनाक्रोश के चलते इसे संवेदनशील विषय मानकर अपने नजरिये में बदलाव किया। पहले जारी निर्देश में कहा गया था कि ऐसे वाहनों को एक जुलाई से दिल्ली में ईंधन नहीं दिया जाएगा, चाहे वे किसी भी राज्य में पंजीकृत हों। लेकिन व्यावहारिक दिक्कतों व लोगों के रोष के मद्देनजर इसे क्रियान्वित नहीं किया जा सका था। सरकार ने महसूस किया कि फैसला प्रतिगामी साबित हो सकता है। यह भी कि कदम समय से पहले उठा लिया गया। इस फैसले के क्रियान्वयन से जुड़ी परिचालनगत चुनौतियां भी सामने आई। जनाक्रोश के चलते राज्य सरकार ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से इस कार्रवाई पर रोक लगाने का आग्रह किया। फिर आयोग ने समीक्षा बैठक के बाद फैसले पर फौरी तौर पर रोक लगाई। वैसे भविष्य में भी इस फैसले पर यदि अमल होता है तो सरकार को वाहन मालिकों का गुस्सा झेलना होगा। दरअसल, इस सख्त फैसले से किसी वाहन के बचने की उम्मीद नहीं है। वास्तव में ये वाहन स्वामियों के लिये एक भावनात्मक मुद्दा बन चुका है। वे मानते हैं कि उन्होंने अपने वाहन की कायदे से मेंटेनेंस की है और उन्हें प्रदूषण न फैलाने के बावजूद सजा दी जा रही है। निस्संदेह, पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखना हर नागरिक का दायित्व है, लेकिन इस संवेदनशील मुद्दे को वाहन स्वामियों के नजरिये से भी देखा जाना चाहिए। यह भी मानकर चलना चाहिए कि इस फैसले के क्रियान्वयन से नये वाहन खरीदने पर मध्यम व निम्न वर्ग पर आर्थिक बोझ पड़ेगा।