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चुनावी वेला में राहत

सस्ती गैस से मध्यवर्गीय बजट सुधरेगा

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चुनावी मानसून में राहत की फुहार बरास्ता रसोई गैस उपभोक्ताओं तक जा पहुंची है। कहने को इसे गृहिणियों को रक्षाबंधन का तोहफा कहा गया है। साथ ही उज्ज्वला योजना के तहत 75 लाख महिला उपभोक्ताओं को नये कनेक्शन देने की भी बात है। सरकार ने रसोई गैस की कीमतों में प्रति सिलेंडर दो सौ रुपये की कटौती करने की बात कही है, जो बुधवार से लागू हुई हैं। उपभोक्ता राहत महसूस कर रहे हैं क्योंकि अब तक दाम बढ़ने की ही खबर आती रही है। उज्ज्वला योजना के तहत पहले से दो सौ रुपये की सब्सिडी ले रहे लोगों को यह राहत अब चार सौ रुपये की हो जायेगी। इस तबके को लेकर कहा जाता रहा है कि गैस महंगी होने के बाद वे लोग फिर जीवाश्म ईंधन की ओर मुड़ रहे हैं। बहरहाल सरकार की दलील है कि वह आम लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहती है और गरीब व मध्यम वर्ग को राहत देना चाहती है। सरकार दावा करती रही है कि उज्ज्वला स्कीम में दी जाने वाली सब्सिडी से सरकार पर करीब साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त दबाव पड़ा है। दरअसल, अब तक देश में प्रधानमंत्री उज्ज्वला स्कीम के साढ़े नौ करोड़ लाभार्थी हैं। अब जब 75 लाख नये लाभार्थी योजना में शामिल हो जाएंगे तो यह संख्या करीब साढ़े दस करोड़ तक पहुंच जायेगी। दरअसल, सरकार की मंशा है कि प्रदूषण बढ़ाने वाले जीवाश्म ईंधन पर कमजोर वर्गों की निर्भरता कम करके उन्हें सस्ती दर पर रसोई गैस उपलब्ध कराई जाए, ताकि शत-प्रतिशत गैस उपयोग के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। हालांकि, विपक्ष मोदी सरकार के इस फैसले को लेकर हमलावर है और इसे रेवड़ी संस्कृति का ही विस्तार बता रहा है। विपक्षी नेता तो यहां तक आरोप लगा रहे हैं कि आम चुनावों के बाद फिर दाम बढ़ा दिये जाएंगे। हालांकि, एक हकीकत यह भी है कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम वैश्विक घटनाक्रमों व बाजार से भी प्रभावित होते हैं।

निस्संदेह, बढ़ती महंगाई के बीच आम जनता को राहत देने का प्रयास स्वागत योग्य कदम है। पिछले दिनों टमाटर व अन्य सब्जियों के दामों में अप्रत्याशित तेजी ने लोगों की रसोई का जायका बिगाड़ा है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि गत जुलाई में खुदरा महंगाई की दर 7.4 तक जा पहुंची थी। हालांकि, टमाटर व अन्य सब्जियों के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि का कारण मौसम की मार भी थी, जिसके चलते आपूर्ति शृंखला बाधित होने से महंगाई बढ़ी। वैसे केंद्रीय बैंक की कोशिश होती है कि महंगाई दर चार प्रतिशत से अधिक न हो और छह प्रतिशत से ऊपर तो कदापि भी न जाए। जिसकी वजह से ब्याज दरों में कटौती के लक्ष्यों को पाने में बाधा उत्पन्न होती है। ऐसे में जहां इन उपायों से महंगाई पर काबू पाने का मकसद है तो दूसरी ओर चुनावी लाभ लेना भी है। बहरहाल, अब चाहे चुनावी दबाव के चलते ही सही, सरकार को अहसास तो हुआ कि देश की जनता महंगाई से त्रस्त है। देश में राजनीतिक बदलाव की कारक रही प्याज के दामों को नियंत्रित करने के लिये केंद्र सरकार ने जैसी फुर्ती दिखायी, उससे उसकी महंगाई की चिंता को समझा जा सकता है। सरकार ने न केवल प्याज के निर्यात को कम करने के लिये अप्रत्याशित कर लगाया बल्कि विदेश से प्याज मंगवाने का भी फैसला लिया। निस्संदेह, इससे तेजी पकड़ते प्याज के दाम कम हुए हैं। इससे घरेलू बाजार में प्याज की उपलब्धता बढ़ जायेगी। वह बात अलग है कि इससे प्याज किसान नाराज हैं। जिसे राजनीतिक दल मुद्दा बना रहे हैं। लेकिन प्याज के बाजार का एक सिद्धांत तो साफ है कि या तो किसान घाटे में रहता है या उपभोक्ता। फायदा बिचौलियों को ही होता है। बहरहाल, यह अच्छी बात है कि महंगाई की चिंता अब विपक्ष की गलियों से निकलकर सत्ता के गलियारों में पहुंच गई है। यह लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत कहा जा सकता है कि महंगाई की वैश्विक मार के बीच सत्ताधीश इसे कम करने की कोशिश में लगे हैं। भले ही यह चुनावी वेला में हो।

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