Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

आम सहमति बने

ईमानदार कोशिश हो एक राष्ट्र, एक चुनाव हेतु
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

निस्संदेह, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग की तीसरी पारी में बदलावकारी फैसले लेना उतना सहज नहीं रह गया है, जितना पहली-दूसरी पारी में नजर आता था। तीसरे कार्यकाल के सौ दिनों के बीच सरकार के कई फैसलों पर गठबंधन धर्म की गांठें नजर आई हैं। एक दशक की स्वछंद कार्यशैली के बाद अब भाजपा सहयोगी दलों पर निर्भर नजर आ रही है। कहीं न कहीं बदले हालात में पार्टी कई मुद्दों पर यू टर्न लेते हुए भी नजर आई। बहरहाल, लोकसभा में पहले के मुकाबले कमजोर स्थिति होने के बावजूद खुद को बेफिक्र दिखाने की बेताब कोशिश में पार्टी ने एक बार फिर अपने एक मुख्य एजेंडे- एक राष्ट्र,एक चुनाव- के मुद्दे को हवा दे दी है। पिछले दिनों स्वतंत्रता दिवस समारोह में लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न राजनीतिक दलों से इस पहल का समर्थन करने के लिये एकजुट होने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि देश में वर्ष पर्यंत चलने वाले चुनाव भारत की प्रगति में बाधक बन रहे हैं। कहा गया कि राजग सरकार अपने वर्तमान कार्यकाल के भीतर इस महत्वपूर्ण चुनाव सुधार को लागू कराने को लेकर आशावादी है। अब इसे राजग का आशावाद कहें या अति आत्मविश्वास, जो उन्हें इस तथ्य को नजरअंदाज करने देता है कि कई राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया था। निस्संदेह, एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिये भाजपा द्वारा नई पहल किए जाने के निहितार्थ समझना कठिन नहीं है। सर्वविदित है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा जनाधार बढ़ाने के बावजूद भाजपा देश का प्रमुख राजनीतिक दल बना हुआ है। ऐसे में अगर मतदाता दो साल के बजाय पांच साल में अपने मताधिकार का प्रयोग करता है तो इसका भगवा पार्टी को सबसे ज्यादा लाभ मिल सकता है। राजनीतिक पंडित राजग सरकार की एक राष्ट्र,एक चुनाव की मुहिम के पीछे ऐसी ही सोच बताते हैं।

यह भी हकीकत है कि संसदीय चुनाव और विधानसभा चुनाव में अकसर अलग-अलग मुद्दे प्रभावी होते हैं। ऐसे में एक साथ चुनाव कराये जाने पर एनडीए के साथ गठबंधन न करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। निस्संदेह, लोकतंत्र में सभी राजनीतिक दलों के लिये समान अवसर उपलब्ध होना जरूरी है। यह भारतीय जनता पार्टी के हित में होगा कि वह एक राष्ट्र,एक चुनाव, के मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिये कड़ी मेहनत करे। साथ ही इसके व्यावहारिक पहलुओं को लेकर हितधारकों द्वारा उठाये गए संदेहों को दूर करने का प्रयास करे। निश्चिय ही यह राजग के लिये बड़ी चुनौती होगी क्योंकि इस बार विपक्ष पहले के मुकाबले मजबूत भी है और एकजुट भी है। इसमें दो राय नहीं कि यह बात तार्किक है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव का प्रयास शासन में सुनिश्चितता लाएगा। वहीं बार-बार के चुनाव खर्चीले होते हैं। दूसरे राज्य-दर-राज्य लंबी आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य भी बाधित होते हैं। साथ ही साथ शासन-प्रशासन व सुरक्षा बलों की ऊर्जा के क्षय के अलावा जनशक्ति का अनावश्यक व्यय होता है। लेकिन वहीं दूसरी ओर इसके लागू होने से भारतीय संघीय ढांचे के लिये जो चुनौती पैदा होगी, उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वैसे इस बार यदि केंद्र सरकार हरियाणा व जम्मू कश्मीर के साथ-साथ महाराष्ट्र व झारखंड में भी विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का प्रयास करती तो एक राष्ट्र,एक चुनाव के गुण-दोषों का मूल्यांकन करने में मदद मिलती। लेकिन केंद्र ने अपनी राजनीतिक सुविधा व समीकरणों के लिये ऐसी ईमानदार कोशिश नहीं की। वैसे भी भारत जैसे विविधता वाले देश में जाति, धर्म व संप्रदाय से ग्रसित सोच के बीच एक साथ चुनाव कराना खास जोखिम भरा भी है। पारदर्शी व निष्पक्ष चुनाव के लिये एक साथ चुनावी मशीनरी तथा सुरक्षा बलों की उपलब्धता के यक्ष प्रश्न भी हमारे सामने खड़े हैं। ऐसे में इसके सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

Advertisement

Advertisement
×