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शुचिता के सवाल

राजनीतिक सुविधा से क्लीन चिट की राह
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चर्चित कहावत रही है कि प्रेम व युद्ध में सब कुछ जायज मान लिया जाता है। अब इसमें राजनीति को भी शामिल मान लिया गया है। सत्ता के समीकरणों के लिये राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने के बाद शुचिता का प्रमाणन हो ही जाता है। फिर एक विज्ञापन की तर्ज पर कहा जाता है कि ये दाग अच्छे हैं। ये स्थिति हाल-फिलहाल ही नहीं, देश के राजनीतिक परिदृश्य में दशकों से जारी रही है। राजनीतिक सुविधा के हिसाब से गुण-दोषों की व्याख्या की जाती रही है। कहावत भी है- समरथ को नहीं दोष गुसांईं। जैसे सबल व्यक्ति के दोषों को भी गुणों की तरह दर्शाया जाता है, वैसे ही राजनीति की मुख्यधारा में भी अवगुणों को गुण रूप में दर्शाने का विमर्श वक्त की हकीकत है। हाल फिलहाल के दौर में कई राजनेताओं के हृदय परिवर्तन और दल बदलने पर शुचिता के जुमले आम हैं। विपक्षी दल ऐसा ही कुछ सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल होने के आठ माह बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता प्रफुल्ल पटेल से जुड़े एक मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट लगने के बाद कह रहे हैं। उनके अक्सर आरोप होते हैं कि राजनीतिक भयादोहन के लिये सरकारी एजेंसियाें का उपयोग किया जाता रहा है। दरअसल, प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइन्स विलय मामले में विसंगतियों के खिलाफ सीबीआई ने रिपोर्ट दर्ज की थी। उल्लेखनीय है कि अजित पवार वाला एनसीपी घटक कुछ माह पूर्व राजग में शामिल हो गया थी। दरअसल, एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइन्स विलय के समय प्रफुल्ल पटेल केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री के पद पर थे। उसी दौरान एक मामले में उनके क्रियाकलापों को संदिग्ध बताया गया था। तब इस मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के साथ ही प्रवर्तन निदेशालय ने भी उनसे पूछताछ की थी। उन पर मुनाफे वाले रूट्स के जरिये अपने एक मित्र को लाभ पहुंचाने का आरोप लगा था। उल्लेखनीय है कि दिल्ली की एक अदालत एक मामले में क्लोजर रिपोर्ट पर अगले माह के मध्य में विचार करेगी।

वहीं दूसरी ओर कर्नाटक में ‘माइनिंग किंग’ के नाम से चर्चित जनार्दन रेड्डी की भाजपा में वापसी भी चर्चाओं में है। कहा जा रहा है कि यह प्रसंग राजग के ‘अबकी बार,चार सौ पार’ की मुहिम का हिस्सा है। रेड्डी का इतिहास खासा विवादों में रहा है और उन्हें खनन की दुनिया का बड़ा खिलाड़ी कहा जाता है। उनका नाम एक बड़े अयस्क कदाचार मामले में जोड़ा जाता रहा है। इसके अलावा कई अन्य मामलों के चलते भाजपा ने कालांतर उनसे दूरी बना ली थी। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले कल्याण राज्य प्रगति पक्ष पार्टी बनाकर वे खुद भी विधानसभा पहुंचे थे और उनके भाई व अन्य पारिवारिक सदस्यों ने अच्छे-खासे वोट अपने इलाके में हासिल किये थे। अब जबकि राज्य में कांग्रेस सत्ता में है तो भाजपा ने जनाधार बढ़ाने के लिये रेड्डी की पार्टी में वापसी की राह सुनिश्चित की है। हालांकि, एक समय रेड्डी से बात करने से भी पार्टी के बड़े नेता कतराते थे, अब वे ही माइन्स किंग की वापसी को सुखद बता रहे हैं। उनकी अपनी-अपनी दलीलें हैं। यहां तक कि रेड्डी की पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी मुलाकात हुई है। इस पर जनार्दन रेड्डी की दलील है कि उनका तो पार्टी में ही जन्म हुआ है, यह तो घर वापसी हुई है। राजनीतिक पंडित बता रहे हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में न केवल जनार्दन रेड्डी विधानसभा के लिये चुने गए थे बल्कि बेल्लारी विधानसभा सीट से भी उनकी पत्नी को एकमुश्त वोट मिले थे। इसके अलावा उनकी पार्टी के कई नेताओं को भी ठीक-ठाक वोट मिले थे। जाहिर है रेड्डी के पार्टी से बाहर रहने को भाजपा अपने वोट बैंक में बिखराव के तौर पर देख रही थी। दरअसल, जनार्दन रेड्डी बेल्लारी, कोप्पल व रायचूर लोकसभा क्षेत्रों में खासा प्रभाव रखते हैं। यही वजह है कि दागों को नजरअंदाज करते हुए उनकी वापसी हुई है। वैसे जनार्दन रेड्डी कभी बेल्लारी से चुनाव लड़ने वाली सुषमा स्वराज के करीबी लोगों के रूप में जाने जाते रहे हैं। वहीं येदियुरप्पा सरकार बनाने के दौर में आपरेशन लोटस में उनकी बड़ी भूमिका बतायी जाती रही है।

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