Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

पंजाब का जल संकट

सिमटते जलस्रोत व ज़हरीला होता पेयजल

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

निस्संदेह, पंजाब इन दिनों दोहरे जल संकट से जूझ रहा है। एक ओर जहां अंधाधुंध भू-गर्भीय जल के दोहन से उसका जलस्तर गिर रहा है, वहीं कीटनाशकों व रासायनिक खादों के बेतहाशा इस्तेमाल से पानी जहरीला होता जा रहा है। हाल ही में केंद्रीय भूजल बोर्ड यानी सीजीडब्ल्यूबी के नवीनतम आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। संस्था के नवीनतम निष्कर्ष बताते हैं कि पंजाब 156.36 फीसदी भूजल दोहन के साथ इसके अत्यधिक इस्तेमाल में देशभर में अग्रणी है। जो इस बात को रेखांकित करता है कि पंजाब में इसके जलस्रोतों का कितने खतरनाक ढंग से अत्यधिक दोहन किया जा चुका है। लेकिन यह संकट यही समाप्त नहीं हो जाता। इस संकट से जुड़ी त्रासदी यह भी है कि सीजीडब्ल्यूबी की नवीनतम वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट-2025 बताती है कि पंजाब में परीक्षण किए गए भूजल के 62.5 फीसदी नमूनों में यूरेनियम सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक मात्रा में पाया गया है। निश्चित रूप से भू-गर्भीय जल के अत्यधिक दोहन और पानी की गुणवत्ता में गिरावट में गहरा संबंध है। दरअसल, अत्यधिक भूजल दोहन से पानी का स्तर नीचे चला जाता है, जिसके चलते गहरे बोरवेल लगाने पड़ते हैं। जो भूगर्भीय रूप से अस्थिर, खनिज-समृद्ध परतों से पानी खींचते हैं। जो अक्सर यूरेनियम, आर्सेनिक, नाइट्रेट या लवणता से भरी होती हैं। इसके साथ ही, दशकों से चली आ रही सघन कृषि, अधिक सिंचाई वाली फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिये भारी मात्रा में सिंचाई और रासायनिक उर्वरकों की जरूरत होती है। जिसके चलते भूजल व मिट्टी दोनों ही में प्रदूषकों का रिसाव तेज हो जाता है। इस भयावह संकट को पिछले दिनों राज्यसभा में राजनीतिक आवाज तब मिली, जब सांसद राघव चड्ढा ने पंजाब में विषाक्त जल संकट पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने चेताया था कि भारी धातुओं और रेडियोधर्मी प्रदूषकों वाला पानी आम लोगों के स्वास्थ्य पर घातक असर डाल रहा है। ऐसा करके उन्होंने देश के नीति नियंताओं को आईना दिखाने का प्रयास ही किया है।

दरअसल, आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा में इस चिंता को अभिव्यक्त करके, पर्यावरणीय आंकड़ों के जरिये लंबे समय से दिए जा रहे संकेतों को स्पष्ट रूप से उजागर ही किया है। हमें इस बात का अहसास होना चाहिए कि यह अब कोई दूरगामी पर्यावरणीय चिंता नहीं बल्कि हमारे सामने एक उभरती हुई जन-स्वास्थ्य की आपात स्थिति ही है। देश में अकसर उस ट्रेन का जिक्र किया जाता रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में पंजाब के लोग कैंसर के उपचार के लिये राजस्थान के विभिन्न अस्पतालों में जाया करते हैं। जिसे अकसर कैंसर ट्रेन के नाम से पुकारा भी जाता रहा है। निस्संदेह, राज्य के कुओं, बोरवेल या हैंडपंप पर निर्भर लाखों पंजाबियों के लिये, इसका मतलब है कि उनके लिये रोजाना पीने का पानी ही स्वास्थ्य खतरा बन सकता है। जिसके उपयोग से उनके गुर्दे की क्षति, कैंसरकारी घातक प्रभाव और प्रजनन व शारीरिक विकास संबंधी नुकसान हो सकता है। निस्संदेह, इस दिशा में तत्काल निर्णायक कार्रवाई करने की सख्त आवश्यकता है। समय की मांग है कि तत्काल प्रभाव से भूजल के अंधाधुंध दोहन पर सख्त अंकुश लगाया जाए। इसके लिये बेहद जरूरी है कि कृषि क्षेत्र पर ध्यान देकर, कम पानी का उपयोग करने वाली फसलों को प्राथमिकता के आधार पर प्रोत्साहित किया जाए। राज्य के हर शहर व गांव में भूजल गुणवत्ता परीक्षण की सुविधा सहज रूप से उपलब्ध करायी जाए। प्रदूषित पेयजल के प्रभावी उपचार के साथ ही सुरक्षित जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। इसके साथ ही औद्योगिक व कृषि प्रदूषकों पर नियंत्रण के लिये पारदर्शी व सख्त कानून व्यवस्था का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वच्छ पेयजल अनंत मात्रा में उपलब्ध नहीं है। हम इसे असीमित संसाधन के बजाय एक नाजुक जीवन रेखा के रूप में देखें। यदि आज हमने समय रहते हुए पेयजल को सुरक्षित व संरक्षित नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियां पेयजल संकट से जूझने को अभिशप्त होंगी। इतना ही नहीं, उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट भी विरासत के रूप में मिलेगा। जिसके लिये वे हमें कभी माफ नहीं करेंगी।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
×