भारत जैसा देश, जो दुनिया भर के प्रदूषित देशों में पांचवें नंबर पर हो, जहां दुनिया का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर हो और तेरह अन्य शहर दुनिया के शीर्ष बीस प्रदूषित शहरों में शुमार हों, वहां हवा को जहरीला बनाने वाले पटाखे निरंकुश रूप से जलाना एक आत्मघाती कदम ही है। लेकिन विडंबना यह कि इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा केवल दिल्ली के प्रदूषण और पटाखों पर अंकुश लगाने को लेकर होती है। इस स्थिति में दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों पर अंकुश लगाने के संदर्भ में देश की शीर्ष अदालत की टिप्पणी संवेदनशील और मार्गदर्शक है। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि यदि साफ वायु राष्ट्रीय राजधानी के विशिष्ट लोगों का हक है तो यह हक शेष देश के हर व्यक्ति को भी मिलना चाहिए। वैसे तो राष्ट्रीय राजधानी में वायु दूषित होने के तमाम कारक हैं,लेकिन पटाखों से होने वाले प्रदूषण की चर्चा गाहे-बगाहे होती है। खासकर कुछ प्रमुख त्योहारों के मौके व निजी समारोहों में जलाये जाने वाले पटाखों को लेकर लगातार सवाल उठाये जाते हैं। इसकी वजह यह है कि यह प्रदूषण का ऐसा कारण है जिससे बचा जा सकता है। लेकिन यह भी हकीकत है कि दिवाली आदि के मौके पर हवा की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखी जाती है। सवाल यह है कि हम लोग क्यों नहीं सोचते कि हमारे पटाखे जलाने से श्वास रोगों से जूझते तमाम लोगों का जीना दुश्वार हो जाता है। यह एक हकीकत है कि देश के तमाम शहरों में हवा ही नहीं, पानी व मिट्टी तक में जहरीले तत्वों का समावेश हो चुका है। जो न केवल हमारी आबोहवा के लिये बल्कि हमारे शरीर के लिये भी घातक साबित हो रहा है। यही वजह है कि हाल के वर्षों में देश में श्वसन तंत्र से जुड़े रोगों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। साथ ही प्रदूषित हवा के प्रभाव में सांस संबंधी रोगों से लोगों के मरने का आंकड़ा भी बढ़ा है।
कहीं न कहीं हमारे वातावरण में बढ़ता प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाले कारकों में वृद्धि भी कर रहा है। लेकिन पटाखों से होने वाला प्रदूषण ऐसा है जो हमारे संयम के जरिये रोका जा सकता है। चिंता की बात यह है कि पटाखों के जलने से निकलने वाले कण हमारे श्वसनतंत्र को नुकसान पहुंचाने के साथ ही हमारे खून में घुल रहे हैं। जिसमें पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे महीन कण फेफड़ों में प्रवेश करके गंभीर रोगों को जन्म दे रहे हैं। इतना ही नहीं पटाखे जलाने के कारण जहरीली रासायानिक गैसों के रिसाव से हमारे पारिस्थितिकीय तंत्र को गंभीर क्षति पहुंच रही है। साथ ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी हमारे वायुमंडल में जलवायु परिवर्तन के संकटों को बढ़ाने में भूमिका निभा रहा है। लेकिन हम इसके बावजूद निजी सुख के लिये दूसरों के जीवन से खिलवाड़ से परहेज नहीं करते। सही मायनों में असली खुशी वही होती है जिससे हमारा समाज सुखी, स्वस्थ और खुश रह सके। अब चाहे हमारे त्योहार हों या निजी उत्सव, वे समाज के लिये अहितकारी नहीं होने चाहिए। देर-सवेर इस संकट की कीमत हर नागरिक को चुकानी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आलोक में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अब चाहे दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बर्नीहाट हो या पंजाब व राजस्थान के सबसे अधिक प्रदूषित शहर हों, उन्हें भी पटाखों के नियमन का लाभ मिलना चाहिए। यही वजह है कि अदालत को कहना पड़ा कि साफ हवा देश के हर नागरिक का अधिकार है। ऐसे में हमें दिल्ली या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की चिंता के साथ ही शेष देश की भी चिंता गंभीरता से करनी चाहिए। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि दिल्ली में पटाखों पर नियंत्रण का जो भी फार्मूला बने, उसे सारे देश में भी लागू करना चाहिए। यह संकट सारे देश का है। एक नागरिक के तौर पर हमारा जिम्मेदार व संवेदनशील व्यवहार ही हमें इस संकट से उबार सकता है। विगत में सख्त कानून लागू करने के बावजूद नागरिकों के गैर-जिम्मेदार व्यवहार से प्रदूषण का संकट बढ़ा ही है।