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जहरीली मिठास

देर से ही सही जागा तो विश्व स्वास्थ्य संगठन

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दुनियाभर में तमाम खाद्य पदार्थों का आक्रामक प्रचार-प्रसार करके अकूत संपदा जुटाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों के सेहत पर पड़ने वाले घातक प्रभावों पर दशकों से विमर्श होता रहा है। लेकिन दुनिया के शक्तिशाली देशों में प्रभावी इन कंपनियों के खिलाफ कोई भी बात नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती थी। लेकिन अब जाकर विभिन्न शोधों के निष्कर्षों के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खाद्य पदार्थों व पेय पदार्थों में मिलाये जाने वाली कृत्रिम मिठास को कैंसर को बढ़ाने वाला कारक माना है। एक अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, इस माह विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया के सामने स्वीकारेगा कि कृत्रिम मिठास दुनिया में कैंसर के प्रसार का संभावित कारण है। दरअसल, दुनिया में बहुराष्ट्रीय शीतल पेय कंपनियों के पेय, सोडा, च्यूइंग गम आदि पदार्थों में इस तरह की कृत्रिम मिठास का धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है। दरअसल, मनुष्य पर कैंसरकारक असर के बाबत अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी आईएआरसी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कैंसर अनुसंधान प्रभाग के अध्ययन का हवाला दिया गया है। गत माह की शुरुआत में आईएआरसी के निष्कर्षों को समूह के बाहरी विशेषज्ञों की बैठक के बाद अंतिम रूप दिया गया। जिसका उद्देश्य था कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आकलन किया जाये कि कृत्रिम मिठास से वास्तविक खतरा कितना है। विशेषज्ञों ने उस पुरानी दलील को तरजीह नहीं दी कि एक सीमित मात्रा में इससे बने उत्पाद घातक नहीं होते और इनका उपयोग किया जा सकता है। दरअसल, इस आशंका की पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक अन्य विशेषज्ञ समिति द्वारा भी की गई है, जिसे जेईसीएफए कहा जाता है। जो कि डब्ल्यूएचओ और खाद्य एवं कृषि संगठन के खाद्य विशेषज्ञों की संयुक्त समिति है। निस्संदेह, इन निष्कर्षों ने दुनियाभर के उपभोक्ताओं की चिंताओं को बढ़ा दिया है, जो लंबे समय से इन उत्पादों के सेवन को लेकर दुविधा में थे।

उल्लेखनीय है कि अतीत में इस मुद्दे पर आईएआरसी के निष्कर्षों को लेकर उपभोक्ता प्रश्न उठाते रहे हैं। इस मामले में कई मुकदमे भी किये गये। साथ ही इन खाद्य व पेय पदार्थों के निर्माताओं से कृत्रिम मीठे से बने खाद्य पदार्थों की निर्माण प्रक्रिया की समीक्षा करने तथा उनके स्वास्थ्यवर्धक विकल्प तलाशने पर बल देते रहे हैं। अब जाकर यह मुहिम तार्किक परिणति की ओर जा रही है। जुलाई के मध्य तक आईएआरसी अपने निष्कर्षों को सार्वजनिक करेगी। दरअसल, आईएआरसी के सूत्रों का मानना है कि एस्पार्टेम को संभावित कैंसर कारक के रूप में सूचीबद्ध करने का मकसद यह है कि इस दिशा में शोध को गति दी जाये। जिसके फलस्वरूप विभिन्न एजेंसियों, उपभोक्ताओं तथा इन खाद्य पदार्थों के निर्माताओं को निर्णायक स्थिति में पहुंचने में मदद मिल सके। निश्चित रूप से इस कोशिश से पूरी दुनिया में घातक कृत्रिम मिठास के दुष्प्रभावों को लेकर नये सिरे से बहस का आगाज होगा। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रकाशित दिशा-निर्देशों में लोगों को वजन नियंत्रण के प्रयासों में चीनी छोड़कर उसकी जगह कृत्रिम मिठास का उपयोग न करने की सलाह दी थी। जाहिरा तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस पहल से खाद्य निर्माण से जुड़े उद्योग में तहलका मच गया। जो अब तक यह दलील देकर अपना उत्पाद बेचते रहे हैं कि लोग अपने खानपान में चीनी की मात्रा कम करके कृत्रिम मिठास का विकल्प चुन सकते हैं। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन यदि कृत्रिम मिठास से जुड़े घातक प्रभाव को नीर-क्षीर विवेक के साथ उजागर करता है तो निश्चित रूप से यह मानवता को लिये एक कल्याणकारी कदम होगा। निस्संदेह, कई देशों के सलाना बजट से अधिक की आर्थिक ताकत रखने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां डब्ल्यूएचओ के निष्कर्षों को खारिज करने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगी। बहरहाल, इस मुद्दे को दुनिया में नया विमर्श मिलना तय है। जन स्वास्थ्य की दृष्टि से यह कदम जरूरी भी है।

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