Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

ज़हर घोलती डिस्टिलरियां

हिमाचल में घोर उल्लंघन उजागर करता मामला

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

हाल ही के दिनों में हवा में प्रदूषण के शोर के बीच कई ऐसे गंभीर प्रदूषण कारकों को हमने नजरअंदाज कर दिया है, जो हमारे जीवनदायी पानी को ज़हरीला बनाने में लगे हुए हैं। चंद पैसे बचाने के लिये कारखाना मालिक औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले घातक अपशिष्टों को नियमानुसार निस्तारण करने के बजाय नदियों व अन्य जलस्रोतों में बहा देते हैं, जो कालांतर में मनुष्य जीवन व जलचरों के लिये घातक साबित होते हैं। इसके बावजूद हिमाचल व अन्य राज्यों में स्थित डिस्टिलरीज़ अनुपचारित ज़हरीले अपशिष्टों को जल निकायों में लगातार छोड़ रही हैं। इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं की जा रही है कि स्थानीय आबादी और जलीय जीवन पर इसका कितना घातक असर पड़ रहा है। यह स्थिति तब है कि जबकि लोकल लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इस घातक परिपाटी के खिलाफ लगातार विरोध करते रहे हैं। गाहे-बगाहे राज्य प्रदूषण बोर्ड, अदालतें और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कानून का उल्लंघन करके जल निकायों को प्रदूषित करने वालों की खिंचाई करते हैं। उन पर जुर्माना लगाने की चेतावनी भी देते हैं। इसके बावजूद मोटे मुनाफे के लालची उद्यमी ज़हरीले अपशिष्ट को नदी-नालों में बहाने से बाज नहीं आते। जिनका तीखी गंध वाला झागदार अपशिष्ट पदार्थ प्रकृति प्रदत्त जीवनदायी पानी को निरंतर प्रदूषित करता ही रहता है। लगातार चिंताजनक रिपोर्टों के बावजूद इसका जारी रहना शासन-प्रशासन की जवाबदेही पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। दरअसल, ताजा विवाद कसौली स्थित एक निजी डिस्टिलरी को लेकर उठा है। जिस पर आरोप है कि उसने साल में दूसरी बार प्राकृतिक जलस्रोत कसौली खड्ड में हानिकारक कचरा डाला है, जिसकी वजह से बीमारी फैलने की आशंका के चलते ग्रामीणों ने अपनी जरूरत का पानी निकालना बंद कर दिया है। निश्चित रूप से यह शोचनीय स्थिति है। उल्लेखनीय है कि गत जनवरी में भी इस डिस्टिलरी द्वारा अंधाधुंध अपशिष्ट के निपटान के चलते आसपास के कई गांवों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ा था। बाद में व्यापक जनाक्रोश को देखते हुए इस संयंत्र को तब दस दिन के लिये बंद किया गया था।

विडंबना यह है कि कमोबेश ऐसे घटनाक्रम कई राज्यों में दोहराये जाते हैं। दरअसल, एक तो संयंत्र लगाने वाले उद्योगपति बड़ी पूंजी तथा राजनीतिक पहुंच वाले होते हैं, दूसरा निगरानी करने वाले अधिकारी ऐन-केन-प्रकारेण इनके प्रभाव-प्रलोभन में आ जाते हैं। जिसके चलते समय रहते इन फैक्टरी मालिकों के खिलाफ पड़ताल व कार्रवाई नहीं होती। सवाल उठता है कि अदालतों की सक्रियता, निरंतर जनाक्रोश, पर्याप्त कानून व निगरानी तंत्र होने के बावजूद समय रहते दोषी संयंत्र मालिकों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या फैक्टरी मालिकों का नैतिक दायित्व नहीं बनता कि चंद रुपयों के लाभ का लालच छोड़कर प्रदूषण नियंत्रक मानदंडों का अनुपालन किया जाए? पंजाब के फिरोजपुर जनपद के जीरा में एक अल्कोहल डिस्टिलरी इकाई के खिलाफ व्यापक जनाक्रोश सामने आया था। आसपास के ग्रामीणों का आरोप था कि अल्कोहल डिस्टिलरी द्वारा कई वर्षों से भूमिगत जल को प्रदूषित किया जा रहा है, जिसका उपयोग मनुष्यों व मवेशियों के लिये खासा घातक हो रहा था। इसके खिलाफ ग्रामीण व किसानों ने लंबे समय तक आंदोलन भी चलाया था। आरोप लगाया गया कि डिस्टिलरी द्वारा अनुपचारित अपशिष्ट पदार्थ रिवर्स बोरिंग के जरिये भूमिगत जल में मिलाया जा रहा है। दरअसल, स्थानीय नागरिकों की शिकायत पर जांच करने वाली एक समिति ने पानी के नमूनों में ज़हरीले पदार्थ व हानिकारक रसायन पाए थे। जिसके बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस साल की शुरुआत में प्लांट को बंद करने का आदेश दिया था। इसी तरह हरियाणा में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वर्ष 2019 में करनाल डिस्टिलरी की निगरानी के लिये निर्देश दिये थे। आरोप था कि अनुपचारित सीवेज को यमुना में बहाया जा रहा है। ऐसे मामलों का लगातार उजागर होना बताता है कि स्थिति चिंताजनक है। निस्संदेह, इस तरह के पर्यावरण और नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ की अनुमति कदापि नहीं दी जा सकती। इस स्थिति से निपटनेे के लिये निर्णायक कार्रवाई किये जाने की दरकार है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
×