उत्तर से दक्षिण भारत तक जब भी कोई आपदा या संकट देश पर आया है, पंजाबियों ने आगे बढ़-चढ़कर पीड़ितों की मदद की है। पंजाब की धरा से गुरुओं व पीर-पैगम्बरों ने मानवता के उत्थान व मिल-जुलकर खाने की सीख दी है। गुरुओं का यह संदेश देश-दुनिया में प्रेरणा का प्रतीक बना हुआ है। ऐसे वक्त में जब पंजाब बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहा है तो शेष देश के लोगों को निस्वार्थ भाव से आगे आने की जरूरत है। उल्लेख करना जरूरी है कि पंजाब के लोग हमेशा बेहद स्वाभिमानी रहे हैं। इस सीमावर्ती राज्य ने गाहे-बगाहे विभिन्न चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया है। मध्यकाल में विदेशी आक्रांता रहे हों या आजादी के बाद पाकिस्तान के आक्रमण, पंजाबियों ने भारत की सुरक्षा ढाल बनकर जीवटता का परिचय दिया है। यहां जरूरी है कि किसी मदद से पहले पंजाबियों के स्वाभिमान का विशेष ख्याल रखा जाए। यूं तो इस आपदा की घड़ी में सेना के अलावा पंजाब के विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक संगठन अपने स्तर पर लोगों को संकट से उबारने के काम में प्राणपण से लगे भी हुए हैं। लेकिन आपदा का बड़ा स्तर देखते हुए शेष देश से योगदान की उम्मीद की जा रही है। निस्संदेह, आपदा का दायरा बड़ा है, जिसमें राज्य के 23 जिलों में करीब तीन लाख से अधिक लोग जलप्लावन का त्रास झेल रहे हैं। बड़े पैमाने पर कृषि भूमि जलमग्न हुई है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संकट की इस घड़ी ने लोगों को स्वत:स्फूर्त रूप में एकजुट किया है। पंजाबियों का जज्बा देखिए कि सरकारी मदद पहुंचने से पहले ही ग्रामीणों ने उफनते पानी में नावें उतार दीं। उन्होंने न केवल पड़ोसियों, बच्चों-बूढ़ों को बचाया, बल्कि पशुओं को बचाने के लिये भी भरसक प्रयास किए। सारी दुनिया में मानवता का पर्याय बने लंगर लगाए गए। जगह-जगह अस्थायी आश्रय स्थल बनाए गए। बिना किसी संकोच के राशन बांटा गया।
निस्संदेह, पंजाबियों की यह भावना कोई पहली बार नहीं देखी गई। अपने देश में ही नहीं, विदेशों में भी मदद के तमाम प्रेरणादायक उदाहरण हमारे सामने हैं। अब चाहे तुर्की का भूकंप हो या केरल में प्राकृतिक आपदा का तांडव, पहले प्रतिक्रिया देने वालों के रूप में पंजाबियों की विशिष्ट पहचान रही है। खालसा एड, यूनाइटेड सिख्स, हेमकुंट फाउंडेशन और अनगिनत स्थानीय गुरुद्वारों से जुड़े संगठनों ने मुश्किल वक्त में तेजी से काम किया है। जरूरतमंद लोगों तक भोजन,पानी,दवा और चारा पहुंचाया है। गुरुदासपुर और कपूरथला में स्वयंसेवकों ने कमर तक गहरे पानी में जाकर संकटग्रस्त लोगों को बाहर निकाला है। इतना ही नहीं, पशु चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में फंसे मवेशियों की देखभाल कर रहे हैं। वित्तीय मदद भी मिल रही है, जिसे राज्य व केंद्र सरकार द्वारा अविलंब बढ़ाए जाने की जरूरत है। इसके साथ ही गैर सरकारी संगठन, परोपकारी लोग और यहां तक कि कलाकार भी लोगों की मदद व पुनर्वास का संकल्प ले रहे हैं। एक पंजाबी सेलिब्रिटी ने 200 घरों के लिये सहायता का वायदा किया है। जो इस बात का प्रमाण है कि कैसे सांस्कृतिक हस्तियां तबाही की विभीषिका कम करने के लिये सामुदायिक समूहों के साथ आगे आ रही हैं। निस्संदेह, इस संकट की घड़ी में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना, वायु सेना ने नावों, हेलीकॉप्टरों और राहत शिविरों के जरिये पीड़ितों को तात्कालिक राहत पहुंचाने का सराहनीय कार्य किया है। वे तसवीरें मानव सेवा के संकल्प को दर्शाती हैं, जिसमें ग्रामीणों ने ट्रैक्टर-ट्रालियों को जीवन रक्षक नौकाओं में तब्दील कर दिया है। प्रवासी समूहों द्वारा आर्थिक मदद भेजना भी एक सुखद पहल है। निस्संदेह, पंजाब में इस सेवा की संस्कृति और निस्वार्थ पहल की बार-बार परीक्षा भी हुई है। लेकिन जब आपदा का स्तर विकराल हो तो महज इस सद्भावना से ही संकट का निवारण संभव नहीं है। पंजाब में अब बाढ़ पीड़ितों को तेजी से मुआवजा देने, पारदर्शी ढंग से फसल की क्षति का मूल्यांकन तथा घरों के पुनर्निर्माण में तेजी लाने की जरूरत होगी। अगर सरकारी तंत्र और नागरिक समाज मिलकर अपनी ऊर्जा का उपयोग करे, तो न केवल पंजाब इस प्राकृतिक आपदा से जल्दी उबर पाएगा, बल्कि ये प्रयास एक प्रेरणादायक पहल के रूप में पूरे देश का मार्गदर्शन कर सकते हैं।