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चैंपियनों जैसा खेल

हॉकी का पुराना गौरव लौटाया टीम ने

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चेन्नई में खेली गई चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय जांबाजों ने आखिरकार ट्रॉफी पर कब्जा कर ही लिया। वैसे तो पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम विजेता की तरह खेली और उसने सात में से छह मैच जीते और एक ड्रॉ कराया। हालांकि फाइनल में पहले हॉफ में वह मलेशिया से पिछड़ती नजर आई। लेकिन आखिरी समय में भारतीय हॉकी खिलाड़ियों ने हमले में पैनापन दिखाया और मलेशिया को हरा चैंपियंस ट्रॉफी भारत की झोली में डाली। कह सकते हैं कि भारतीय टीम बाजी पलटते हुए चैंपियन बनी। इस शानदार खेल के बूते ही भारत चौथी बार चैंपियन बन सका। इससे पहले भारत 2011, 2016 और 2018 में एशियाई चैंपियन रह चुका है। मैच में विजयी गोल दागकर आकाशदीप सिंह ने दुनिया को बता दिया कि भारतीय हॉकी का आकाश विस्तृत है। दरअसल, खेल में पैनापन लाकर ही भारतीय खिलाड़ियों ने हाफ टाइम तक 3-1 की बढ़त लेने वाली मलेशिया टीम को मैच के आखिरी क्षणों में बचाव की स्थिति में ला दिया। टीम प्रबंधन विचार करे कि मैच के आखिरी क्षणों में भारतीय टीम जिस लय में दिखी, वह पहले हाफ में क्यों नजर नहीं आया। बहरहाल, अंतिम मैच में मलेशिया द्वारा दी गई चुनौती भारतीय टीम के लिये सबक जैसी साबित होगी। वहीं एशियाई खेलों की तैयारी में भारतीय टीम को कड़े अभ्यास की भी जरूरत बताती है। टीम को अपने खेल में आक्रामक तेवर दिखाने होंगे। हर मौके को गोल में बदलने का हुनर विकसित करना होगा।

निस्संदेह, एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी जीतने से भारतीय टीम का मनोबल बढ़ा है। यह जज्बा अगले माह चीन में होने वाले एशियाई खेलों के लिये हौसला बढ़ाने वाला होगा। उल्लेखनीय है कि एशियाई खेलों में वही टीमें खेलेंगी, जिन्हें हराकर भारत ने एशियाई चैंपियनशिप जीती है। कह सकते हैं कि हमने एशियाई खेलों के लिये अपने एक स्वर्ण पदक पर पक्की दावेदारी कर दी है। महत्वपूर्ण यह भी कि यदि भारतीय टीम एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत लेती है तो वर्ष 2024 में होने वाले पेरिस ओलंपिक खेलों में खेलने के लिये भारतीय हॉकी टीम को सीधा टिकट हासिल हो जायेगा। ऐसे में भारतीय हॉकी टीम प्रबंधन को टीम की कमजोरियों पर विशेष ध्यान देना होगा। उन देशों की टीमों के खिलाफ अपना खेल मजबूत करना होगा, जिनके खिलाफ टूर्नामेंट में खेलने में भारतीय खिलाड़ियों को दिक्कत हुई। भारतीय टीम के खिलाड़ियों को वह हुनर विकसित करना होगा, जो मैच के दौरान मिले अवसरों को जीत में बदलने में कारगर हो। खासकर पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में बदलने की कला में पारंगत होना होगा। साथ ही दबाव में बेहतर खेलने का मनोवैज्ञानिक गुण भी टीम में होना चाहिए। जिसकी कमी इस चैंपियनशिप के फाइनल में पहले हाफ में मलेशिया की युवा टीम के साथ खेलने के दौरान महसूस की गई। यदि भारतीय हॉकी खिलाड़ियों ने मैच के आखिरी मिनटों में जीत वाला दमखम न दिखाया होता, तो भारत के लिये मुश्किल खड़ी हो सकती थी। विश्व में चौथी रैंकिंग वाली भारतीय टीम को नंबर एक का तमगा हासिल करने के लिये अभी और कड़ी मेहनत की जरूरत है।

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