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शिखर की सफलता

दुनिया ने माना भारतीय कूटनीति का लोहा

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निस्संदेह, दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन ही साझा घोषणापत्र पर सहमति बनना अभूतपूर्व रहा। वह भी ऐसे मौके पर जब पश्चिमी देश रूस के खिलाफ यूक्रेन युद्ध के लिये निंदा प्रस्ताव लाना चाह रहे थे। यह भारत की कूटनीतिक कामयाबी थी कि घोषणा में यह बात भी आई कि यह युद्ध का युग नहीं है, रूस को नसीहत भी कि परमाणु हमला या धमकी अस्वीकार्य है। सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन व चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के न आने के बाद कयास लगाये जा रहे थे कि शायद घोषणा पत्र पर सहमति न बन सके। लेकिन कूटनीतिक कौशल के साथ भारत सरकार ने शब्दों के चयन में ऐसी कुशलता दर्शायी कि अमेरिका व पश्चिमी देशों के साथ रूस व चीन के प्रतिनिधि भी साझा प्रस्ताव से सहमत हुए। निस्संदेह, जी-20 सम्मेलन भारत के नाम रहा। विकासशील देशों के आर्थिक व ऊर्जा के मामले को हम मुद्दा बनाने में सफल रहे। यह नरेंद्र मोदी सरकार की विदेशी नीति की कामयाबी है कि हमारी प्रतिष्ठा विश्व में शीर्ष पर पहुंची हैं। निस्संदेह, इन वैश्विक मुद्दों पर बीस देशों की सहमति बनाना एक कठिन काम था, जिसे भारत ने संभव बनाया। जिसके लिए सफल कूटनीति व दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि भारत जहां जी-20 के सूत्रधार अमेरिका को बात मनवा पाया, वहीं पुराने मित्र रूस से संबंधों की लाज रख पाया।

निस्संदेह, नरेंद्र मोदी के गतिशील और वैश्विक नेतृत्व में भारत की यह ऐतिहासिक उपलब्धि है। अमेरिका की ओर से कहा गया है कि भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने में हरसंभव सहयोग किया जाएगा। मोदी की इस बात को वैश्विक समुदाय ने सराहा कि 21वीं सदी शांति और वैश्विक समुदाय के समग्र विकास का युग है। जिसके लिये पूरी दुनिया को एक परिवार के रूप में एकजुट होना है। हमारी एक बड़ी उपलब्धि यह भी है कि जिस अफ्रीका में चीन, रूस व तुर्की प्रभुत्व जमाने को भारी निवेश कर रहे थे, उसका दिल भारत ने जीत लिया। भारत के प्रयासों से 55 सदस्यों वाला अफ्रीकी संघ जी-20 का सदस्य बना है। इस सफलता का सेहरा भी भारत के माथे बंधेगा। निश्चित रूप से जी-20 जैसे वैश्विक मंच में अफ्रीकी देशों की उपेक्षा नहीं हो सकती। इसके जरिये अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा संकट व आर्थिक असमानता के मुद्दों को उठाने का मौका मिलेगा। बहरहाल, जी-20 के दिल्ली शिखर सम्मेलन में 83 बिंदुओं पर सहमति बनना बड़ी उपलब्धि है। खासकर मजबूत, दीर्घकालीन, संतुलित व समावेशी विकास, लैंगिक समानता, दीर्घकालीन भविष्य के लिये हरित विकास समझौता, बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करना, ग्लोबल बायो फ्यूल्स अलायंस की घोषणा तथा चीन के बीआरआई के जवाब में भारत-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर स्थापित करने पर सहमति सम्मेलन की बड़ी उपलब्धि है। निस्संदेह, वैश्विक हितों को प्राथमिकता देने से यह कामयाबी मिली है। इसके बावजूद यदि मोदी सरकार इस सफल वैश्विक आयोजन में विपक्ष को सम्मानजनक दर्जा देती तो इससे दुनिया में भारतीय लोकतंत्र का खूबसूरत संदेश जाता। जनतंत्र तभी सार्थक होता है जब सशक्त पक्ष के साथ सशक्त विपक्ष की भी उपस्थिति दर्ज हो।

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