आखिरकार शांति!
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारी दबाव व मध्यपूर्व के देशों की पहल के बाद गाजा में इस्राइल व हमास के बीच संघर्ष विराम की तसवीर उभरी है। यह कहना कठिन है कि यह समझौता कितने दिन टिकेगा क्योंकि समझौते के बाद भी इस्राइल ने गाजा के कुछ इलाकों में बमबारी की है। कहना मुश्किल है कि ट्रंप वास्तव में गाजा के लोगों को न्याय दिलाने चाहते हैं, या उनके समझौते के प्रयासों का लक्ष्य नोबेल शांति पुरस्कार पाना था। दरअसल, शांति के नोबेल पुरस्कार की घोषणा और युद्धविराम की घोषणा की तिथियां आसपास ही थीं। नोबेल शांति पुरस्कार के लिये ट्रंप जैसा उतावलापन दिखा रहे थे, उससे दुनिया की नंबर एक महाशक्ति के नायक की जगहंसाई ही हुई है। बहरहाल, गाजा में शांति स्थापना के प्रयासों का सिरे चढ़ना स्वागतयोग्य ही कहा जाएगा। हालांकि, इस समझौते के लिये ट्रंप द्वारा इस्राइल व हमास पर भारी दबाव डाला गया। दबाव में किया गया यह समझौता कितने दिन टिकेगा, कहना मुश्किल है। समझौते के बाद भी इस्राइल की बमबारी इस समझौते की दुखती रग है। वहीं हमास बीस सूत्री समझौते पर कितने दिन कायम रहता है, ये आने वाला वक्त ही बताएगा। समझौते की शर्तों में हमास का निशस्त्रीकरण करना और गाजा में उसकी प्रशासनिक दखल बंद करना भी शामिल है। कहना कठिन है कि अरब देशों के दबाव में बातचीत की टेबल पर आया हमास इन शर्तों पर कब तक कायम रह पाता है। वह समझौते की टेबल पर तब आया जब ट्रंप ने समझौता न करने पर नेस्तनाबूद करने की धमकी दे दी थी। उल्लेखनीय है कि इस्राइल और हमास के बीच दो साल से जारी संघर्ष के बीच अमेरिका ने यह शांति योजना पेश की थी। जिसे मिस्र में आयोजित बातचीत में हितधारकों ने अंतिम रूप दिया। जिससे इस अशांत क्षेत्र और पश्चिमी एशिया में शांति की उम्मीद हकीकत बनी। दरअसल, इस संघर्ष से न केवल गाजा बल्कि लेबनान, यमन और ईरान तक को अपनी चपेट में ले लिया था।
दरअसल, यह संघर्ष दो साल पहले तब शुरू हुआ जब 7 अक्तूबर को हमास के आतंकवादियों ने इस्राइल में घुसकर कोहराम मचाया। उस हमले में बारह सौ इस्राइली व कुछ विदेशी मारे गए थे और ढाई सौ लोगों को बंधक बनाकर हमास के हमलावर गाजा ले गए थे। उसके जवाब में इस्राइल द्वारा किए गए ताबड़-तोड़ हमलों में करीब 65 हजार से अधिक फलस्तनियों के मारे जाने का दावा किया जाता है। आज गाजा भूतहा खंडहरों के शहर में तब्दील हो चुका है। लाखों लोगों को बार-बार पलायन के लिये मजबूर होना पड़ा है। विडंबना यह है कि भले ही इस्राइल ने हमास के क्रूर हमले के जवाब में सैन्य कार्रवाई की हो, मगर इन हमलों का शिकार आम फलस्तीनी नागरिकों को होना पड़ा है। मरने वालों में बड़ी संख्या बच्चों और महिलाओं की है। यहां अस्पताल से लेकर तमाम सार्वजनिक सेवाएं ध्वस्त हो चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र ने पुष्टि की थी कि गाजा में लोग भुखमरी के शिकार हैं क्योंकि इस्राइल ने राहत सामग्री के पहुंचने के सारे रास्ते बंद कर दिए थे। इस्राइल और अमेरिका की देखरेख में शुरू किए गए कथित राहत सामग्री वितरण कार्यक्रम में इस्राइली हमलों में हजारों फलस्तीनी मारे गए थे। कालांतर, यह लड़ाई इस्राइल व लेबनान के बीच संघर्ष में तब्दील हुई। हूती विद्रोहियों के साथ संघर्ष के बाद लड़ाई ईरान तक पहुंची। हूतियों के हमलों से समुद्री मार्ग से होने वाला वैश्विक व्यापार तक बुरी तरह प्रभावित हुआ। बहरहाल, अब जब इस्राइल व हमास संघर्ष विराम पर राजी हो गए हैं तो अब प्रयास हो कि यह शांति स्थायी हो सके। हालांकि, मौजूदा हालात में यह कहना कठिन है कि बेहद आक्रामक तेवर दिखा रहा इस्राइल भविष्य में चुप बैठेगा। हमास बीस इस्राइली बंधकों तथा मारे गए लोगों के शव लौटाने को राजी हुआ है। जिसके बदले में इस्राइल द्वारा हमास के कुछ लड़ाकों समेत हजारों फलस्तीन कैदियों को रिहा किया जाना है। कहने को तो गाजा से इस्राइली सैनिकों की वापसी की शर्त भी है, लेकिन अमेरिकी सरपरस्ती में निरंकुश व्यवहार कर रहे इस्राइल से इस मुद्दे पर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है।