पानीगढ़ चंडीगढ़
मंगलवार को सिटी ब्यूटीफुल के एक हिस्से में, जो जमकर बदरा बरसे, उसे देख अमंगल सी आहट हुई। देश के जिस नियोजित शहर की पहले कस्में खाई जाती थीं। जिसकी जल निकासी व्यवस्था की मिसालें दी जाती। जिसकी खूबसूरती को लेकर तमाम गीत लिखे गए। वहां कुछ घंटों की बारिश ने शहर को पानी-पानी कर दिया। वहां पानी में कारें डूबती नजर आईं। सड़कों पर जाम नजर आए। कई अंडरपास लबालब थे। राहगीर सोचने लगे आखिर चंडीगढ़ कैसे आशिकी करेगा? दुहाई दी गई कि शहर में मध्यमार्ग के पूर्वी हिस्से में 35 एमएम की बारिश से हाल-बेहाल हुए। कहा गया कि दिन में तापमान बढ़ने से अधिक नमी के बीच लोकल क्लाउड बना और अप्रत्याशित बारिश हुई। लेकिन सवाल यह है कि फ्रांसीसी वास्तुकार ली कॉर्बूजिए की योजनाएं क्यों विफल हुई? हर साल जो वॉटर ड्रेनेज सिस्टम की सफाई के टेंडर दिए जाते हैं, उससे जलनिकासी का संकट क्यों दूर नहीं हुआ? दलील दी जा रही हैं कि पानी का प्रवाह अप्रत्याशित था,जो ड्रेनेज सिस्टम की क्षमता से अधिक था। सवाल यह है कि जब पूरे देश में ग्लोबल वाॅर्मिंग संकट के चलते बारिश के पैटर्न में बदलाव साफ नजर आ रहा है, तो उसके मद्देनजर तैयारियां क्यों नहीं की गई? सवाल है कि दो राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ में बैठी अधिकारियों की फौज क्यों आने वाले समय की चुनौतियों के मुकाबले के लिए रीति-नीतियां तैयार नहीं करती? हमें कल की नहीं, परसों के हिसाब से नीतियां बनाने की जरूरत होती है। विदेशों में पचास-सौ साल के लक्ष्य निर्धारित करके योजनाएं बनती हैं। मगर हम इस मामले में फिसड्डी नजर आते हैं। विडंबना है कि हाल के वर्षों में सिटी ब्यूटीफुल कहे जाने वाले चंडीगढ़ के लोक-प्रशासन में वो संवेदनशीलता अधिकारी वर्ग में नजर नहीं आ रही है, जो इसकी विशिष्टता को बनाए रख सके। जगह-जगह सड़कों की हालात खराब है। तमाम स्थानों पर सड़कों पर पैच लगे हैं,ऐसा पहले नहीं दिखता था।
निस्संदेह, चंडीगढ़ के शासन-प्रशासन में कहीं तो खोट है, जो शहर देश में स्वच्छ व खूबसूरत शहरों की दौड़ में लगातार पिछड़ता जा रहा है। यही वजह है कि अब सिर्फ बोर्डों में सिटी ब्यूटीफुल नजर आता है। देश के इस पहले नियोजित शहर में इतनी अपार संभावनाएं हैं कि देश में यह साफ-सफाई, जल-निकासी व खूबसूरती में हमेशा अव्वल आ सकता है। लेकिन न तो शासन-प्रशासन के स्तर पर और ना ही स्थानीय नगर निगम के स्तर पर कोई ऐसी मुहिम चली है। नागरिक स्तर पर कोई बड़ा अभियान नहीं चला है। कमोबेश, यही स्थिति कचरे के निस्तारण को लेकर भी है। इसमें दो राय नहीं कि चंडीगढ़ जनसंख्या के दबाव से घिरा है। कमोबेश यह स्थिति सारे देश में है। वहीं चंडीगढ़ के आसपास के इलाकों में अधिकृत व अनधिकृत निर्माण तेजी से हुए हैं। जिससे पानी निकासी के जो प्राकृतिक रास्ते थे, वे भी अवरुद्ध हुए हैं। वहीं नियोजन के स्तर पर आसपास की बस्तियों में जल निकासी को प्राथमिकता नहीं दी गई है। तेजी से बदलते वैश्विक मौसमी परिदृश्य में किसी शहर में अप्रत्याशित तरीके से भारी बारिश की स्थितियां पैदा हो सकती हैं। हाल के वर्षों में रेगिस्तान के इलाके में बाढ़ और बर्फबारी की खबरें आती रही हैं। कुशल शासन-प्रशासन का यही फर्ज होता है कि बुरी से बुरी परिस्थितियों के मद्देनजर विकास योजनाओं का नियोजन करे। यह संकट साल-दर-साल और गहराएगा। कहीं भी बादल फटने जैसी स्थितियां बन सकती हैं। किसी भी मौसम में अतिवृष्टि की स्थितियां पैदा हो सकती है। ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर दुनिया के देशों का जैसा रवैया है, उसके मद्देनजर आने वाले दशक में किसी तरह पर्यावरण अनुकूलन की स्थितियां बनती नजर नहीं आ रही हैं। ऐसे में हमें हर अतिवृष्टि-अनावृष्टि की परिस्थितियों के लिये तैयार रहने की जरूरत है। यहां जरूरत इस बात की है कि सिटी ब्यूटीफुल के नागरिक भी जागरूक बनें और ब्यूटीफुल कदम उठाने में भूमिका निभाएं। यह शहर हमारे साझे प्रयासों से अपनी आन-बान-शान बनाए रख सकता है। हम सजग प्रहरी के नाते शासन-प्रशासन को चेताते रहें कि सिटी ब्यूटीफुल की अस्मिता कैसे बरकरार रखी जा सकती है।