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विपक्ष को खुशी

भाजपा की चिंता बढ़ाने वाले उपचुनाव नतीजे
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भारतीय विपक्ष, जिसे इंडिया गठबंधन के रूप में बिखराव की स्थिति में माना जा रहा था, उसने गत उन्नीस जून को हुए उपचुनावों में, पांच में से चार सीटें जीत ली हैं। भाजपा पांच राज्यों में से सिर्फ एक सीट जीत सकी है। सबसे बड़ी उपलब्धि आप को हासिल हुई है, जिसने न केवल पंजाब की प्रतिष्ठित लुधियाना सीट जीती बल्कि मोदी-शाह के गढ़ में भी एक महत्वपूर्ण सीट जीतने में कामयाबी हासिल की है। गुजरात की विसावदर सीट जीती है, उस राज्य में जहां भाजपा तीन दशक से सत्ता में है। आप विधायक द्वारा पार्टी बदलने के बाद भाजपा को उम्मीद थी कि सीट उसकी झोली में आएगी, लेकिन आप ने इस झटके से उबरकर भाजपा उम्मीदवार को पराजित किया। उल्लेखनीय है कि 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में आप ने पांच सीटें जीतकर भाजपा शासित राज्य में अपनी स्थिति मजबूत की थी। आमतौर पर उपचुनाव सत्तारूढ़ दल की पार्टी ही जीतती रही है, जैसा कि पंजाब में लुधियाना पश्चिम सीट आप ने तथा पश्चिम बंगाल में कालिगंज सीट तृणमूल कांग्रेस ने जीती हैं। वहीं केरल में उलट-फेर करते हुए कांग्रेस गठबंधन सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक गठबंधन यानी एलडीएफ से नीलाम्बुर सीट छीनने में सफल रहा। ऐसे समय में यह चिंता की बात है जब विधानसभा चुनाव में एक साल से कम समय रह गया है। यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कांग्रेस पार्टी गुटबाजी से जूझ रही है। हाई-प्रोफाइल और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने आरोप लगाया था कि उन्हें चुनाव प्रचार के लिये पार्टी ने आमंत्रित नहीं किया था। लेकिन पार्टी का कहना है कि वे स्टार अभियान चलाने वालों में सूचीबद्ध रहे हैं। दरअसल, थरूर के पार्टी हाईकमान से उस समय मतभेद उजागर हुए थे जब उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत का पक्ष रखने के लिये विदेशों में चलाए गए बहु-पार्टी अभियान में एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था। भविष्य बताएगा कि आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर थरूर को कांग्रेस कैसे संभालती है।

बहरहाल, केरल व पश्चिम बंगाल के उपचुनावों की विफलता ने भाजपा को परेशान जरूर किया होगा। जो इन विपक्ष के अंतिम गढ़ों में सत्ता की बाट जोह रही है। हालांकि, उस भाजपा को कमतर आंकना भूल होगी, जो हर बाधा को पार करने की कला जानती है। बहरहाल, पंजाब में आप ने लुधियाना पश्चिम सीट जीतकर कई समीकरण साधे हैं। यह जीत सिर्फ मध्यावधि चुनाव की जीत नहीं है बल्कि पंजाब में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी आम आदमी पार्टी का हौसला बढ़ाने वाली जीत है। आप उम्मीदवार संजीव अरोड़ा की कांग्रेस के अनुभवी नेता भारत भूषण आशु पर 10,637 मतों की निर्णायक जीत शहरी क्षेत्रों में आप की पकड़ को दर्शाती है। ये सीट कभी कांग्रेस-भाजपा का गढ़ मानी जाती थी, यहां हिंदू मतदाताओं और कारोबारी बिरादरी का वर्चस्व रहा है। आप द्वारा समय पर पार्टी प्रत्याशी के चयन व घोषणा का लाभ पार्टी को मिला। अरोड़ा राजनीति में नवागंतुक के रूप में भी साफ-सुथरी पृष्ठभूमि और औद्योगिक अनुभव के साथ एक विश्वसनीय चेहरे के रूप में चुनाव में उतरे। जिसका लाभ पार्टी को मिला। यही वजह है कि पार्टी कार्यकर्ताओं के ऊर्जावान चुनाव अभियान से कम मतदान वाले चुनाव में भी पार्टी को जीत मिली। वहीं अनुभवी कांग्रेसी नेता आशु पर राजनीतिक विवाद भारी पड़े। पार्टी में गुटबंदी से कमजोर कांग्रेस ने उस सीट पर हार का सामना किया, जो 2012 व 2017 में उसकी झोली में थी। वहीं भाजपा, जो लुधियाना के व्यापारियों व हिंदू मतदाताओं के बीच पारंपरिक रूप से एक मजबूत आधार रखती थी, इस उपचुनाव में तीसरे स्थान पर सिमट गई। शिरोमणि अकाली दल जो कभी पंजाब की प्रमुख पार्टी मानी जाती थी, अब जीत के लिये संघर्ष करती नजर आ रही है। इस जीत से आप को अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल का मौका मिला है, वहीं पार्टी सुप्रीमो के लिये राज्यसभा में जाने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। ऐसे वक्त में जब राज्य में विधानसभा चुनाव में 19 महीने का समय बचा है, इस जीत के आप के लिये गहरे निहितार्थ हैं।

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