हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से चार में सरकार बनाने में कामयाब हुई भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने में जो देर लगाई उसके निहितार्थ तलाशे जाते रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा में पुराने मुख्यमंत्रियों को राज्यों की कमान सौंपने के बाद अब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की फिर से ताजपोशी कर दी गई है। उत्तर प्रदेश के जंबो मंत्रिमंडल में बावन मंत्रियों को शामिल करने का मतलब यही है कि पार्टी 2024 के महासमर की तैयारी में जुट गई है। मंत्रिमंडल में जातीय संतुलन व ओबीसी के भाजपाई चेहरे केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव हारने के बावजूद उप मुख्यमंत्री बनाना इस रणनीति का द्योतक है। जाहिर है दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है जिसकी झलक शुक्रवार को योगी सरकार की दूसरी पारी के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत बारह प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के भाग लेने के रूप में देखी जा सकती है। लगता है कि मुख्यमंत्रियों के चयन को लेकर जारी माथापच्ची के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने महसूस किया कि नये चेहरे बदले जाने से पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा। वहीं दूसरी ओर वर्ष 2024 के आम चुनाव की तैयारी में विघ्न पड़ेगा। यही वजह है कि पुराने चेहरों में विश्वास जताया गया। खासकर उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाना चौंकाने वाला था क्योंकि अपनी खटीमा विधानसभा सीट से वे चुनाव हार गये थे। वर्ष 2017 के हिमाचल विधानसभा के चुनाव में पार्टी को सरकार बनवाने का अवसर देकर मुख्यमंत्री का चेहरा रहे प्रेम सिंह धूमल चुनाव हार गये थे तो जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई थी। लगता है कि भाजपा आलाकमान ने पुराने मुख्यमंत्रियों को दोहराकर 2024 के आम चुनावों के मद्देनजर स्थिरता को प्राथमिकता दी है। इसी कड़ी में गोवा में प्रमोद सावंत और मणिपुर में एन वीरेन सिंह पर भरोसा जताया गया है जबकि योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी को लेकर किसी तरह का संशय नहीं था।
कमोबेश पार्टी का यही नजरिया उत्तर प्रदेश के बड़े मंत्रिमंडल के गठन में जातीय संतुलन के प्रयासों में भी देखा जा सकता है। उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी के बाद से ही कयास लगाये जा रहे थे कि उत्तर प्रदेश में उप मुख्यमंत्री के रूप में केशव प्रसाद मौर्य की वापसी हो सकती है। योगी मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में ऐसा हुआ भी, बावजूद इसके कि केशव प्रसाद मौर्य धामी की ही तरह अपनी बहुचर्चित सिराथू सीट से हार गये थे। दरअसल, उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद को भाजपा का ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधि चेहरा माना जाता है। इसका सीधा निष्कर्ष निकलता है कि भाजपा अभी से 2024 के महासमर की तैयारी में जुट गई है। पार्टी ने उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड आदि राज्यों में चुनाव के दौरान जनता के आक्रोश को करीबी से देखा और कोशिश की कि ये शिकायतें उसे आम चुनाव के दौरान न मिलें। उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं के संकट और उसके खिलाफ जनता के तीव्र आक्रोश को अंतिम समय में भांपकर पार्टी ने कारगर समाधान का वायदा किया था। उत्तर प्रदेश में शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद योगी द्वारा कैबिनेट की मीटिंग बुलाया जाना इस बात का संकेत है कि जनता से किये वायदों पर अमल करने की रणनीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है। वहीं उत्तराखंड में भी धामी को इस बात का पुरस्कार दिया कि छह माह के अंतराल में तीसरे मुख्यमंत्री बनने के बावजूद ने पार्टी को एकजुट बनाये रखने में कामयाब हुए। साथ ही पार्टी को राज्य में पूर्ण बहुमत दिलाने में सहयोग किया। इसी तरह गोवा में मुश्किल स्थितियों में अच्छा काम करके पार्टी को बहुमत के करीब जनादेश दिलाने के लिये प्रमोद सावंत को पुरस्कृत किया गया। लेकिन इसके बावजूद इन नेताओं के सामने चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। उनकी कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि वे अपने राज्यों में मौजूद चुनौतियों को नये जनादेश के बाद कितने बेहतर ढंग से निबटाते हैं।