लंबे समय तक अशांत रहे मणिपुर के मुद्दे पर अकसर विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि प्रधानमंत्री मणिपुर क्यों नहीं जाते। अब वह प्रतीक्षित यात्रा हकीकत बनी है। कहा जा सकता है कि संघर्षरत राज्य की जनता के बीच विश्वास की कमी को दूर करने का यह सार्थक प्रयास जरूरी था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर को शांति और समृद्धि का प्रतीक बनाने का संकल्प जताया है। लेकिन मौजूदा चुनौतीपूर्ण स्थिति सरकार के संकल्प की परीक्षा लेगी। हालांकि,लगभग ढाई साल पहले भड़की जातीय हिंसा हाल के महीनों में, खासकर फरवरी में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद कम हो गई है। लेकिन भविष्य में हिंसा की आशंका को निर्मूल नहीं कहा जा सकता है। ऐसी दशा में इस संवेदनशील राज्य में केंद्र सरकार को सामान्य स्थिति की बहाली और दीर्घकालिक शांति स्थापना के लिये हर संभव प्रयास करने चाहिए। दरअसल,राज्य में स्थायी शांति के मार्ग में जो एक सबसे बड़ी बाधा है, वह है पर्वतीय इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय और घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के लोगों के बीच लगातार कम होता विश्वास। ऐसे में सरकार का दायित्व बनता है कि दोनों समुदायों की आकांक्षाओं में संतुलन बनाए। ताकि दोनों समुदायों की चिंता और शिकायतों का शीघ्र समाधान किया जा सके। विगत में मैतेई समुदाय के लोग अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने की मांग करते रहे हैं। यह एक ऐसा विवादास्पद मुद्दा था, जिसने कुकी-जो समुदाय के लोगों में असुरक्षा व अशांति पैदा कर दी। जिसे दूर किए जाने की सख्त जरूरत है।
दरअसल, हाल के हिंसक संघर्ष ने राज्य में मतभेदों को मनभेद में बदल दिया है। कुकी-जो विधायकों के एक समूह, जिसमें भाजपा के भी सात विधायक शामिल हैं, ने कहा है कि ‘दोनों पक्ष केवल अच्छे पड़ोसियों के रूप में शांति से रह सकते हैं,लेकिन फिर कभी एक छत के नीचे नहीं।’ उनकी मांग रही है कि गैर-मैतेई समुदायों के लिये अलग विधायिका सहित अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाया जाए। यह सोच दोनों समुदायों के बीच गहरे मतभेद को उजागर करती है, जिसने मणिपुर को गहरी क्षति पहुंचायी है। इस पूर्वोत्तर राज्य में विधानसभा चुनाव होने में अभी डेढ़ साल बाकी है। राज्य में हिंसा की पुनरावृत्ति रोकने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है ताकि विधानसभा चुनाव में देरी न हो। केंद्र सरकार को विधानसभा को लंबे समय तक निलंबित रखने के फायदे और नुकसान का भी आकलन करना होगा। लेकिन फिलहाल, प्राथमिकता के आधार पर ध्यान विस्थापित परिवारों के पुनर्वास पर देने की जरूरत है। उससे भी महत्वपूर्ण, राज्य में सक्रिय चरमपंथी समूहों के लोगों को हथियार डालने के लिये प्रोत्साहित करने की जरूरत है। विकास परियोजनाओं पर काम जल्दी शुरू करने तथा उनके क्रियान्वयन में तेजी लाने से भी मणिपुर के लोगों का विश्वास हासिल करने में मदद मिलेगी। ऐसे तमाम प्रयास मणिपुर के आहत लोगों की विश्वास बहाली में मददगार साबित हो सकते हैं। निस्संदेह, इस बार केंद्र सरकार की तरफ से कोई चूक नहीं होनी चाहिए।