मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

प्रेस की आज़ादी में बाधा

पंजाब में अखबारों के वाहनों की जांच पर सवाल
Advertisement

इसे दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना ही कहा जाएगा कि जिस 2 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों के खिलाफ दुराग्रह व हिंसा से मुक्ति के लिये मनाया जाता है, उसी दिन पंजाब भर में पुलिस द्वारा अखबारों को पाठकों तक पहुंचने से रोका गया। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस दिन को मनाये जाने का उद्देश्य अभिव्यक्ति की आजादी और सूचना तक सार्वभौमिक पहुंच पर मंडराते खतरों के खिलाफ चेतना जगाना रहा है। वहीं इस दिन पंजाब पुलिस ने रविवार तड़के समाचार पत्र ले जाने वाले वाहनों को रोककर कथित जांच का उपक्रम किया। फलत: लाखों पाठक आपने पसंदीदा समाचार पत्रों का बेसब्री से इंतजार करते रह गए। निश्चित रूप से उन लोगों के लिये यह कष्टदायक ही रहा होगा, जिनके दिन की शुरुआत ही अखबार के साथ चाय-कॉफी से होती है। वे घंटों प्रतीक्षा करते रह गए, लेकिन पुलिस कार्रवाई के चलते उन तक समाचार पत्र नहीं पहुंचे। हालांकि, इस कार्रवाई के बाबत पुलिसिया दलील किसी के गले नहीं उतरी। पुलिस का दावा था कि यह जांच खुफिया एजेंसियों की सूचना पर आधारित थी कि इन वाहनों का उपयोग नशे, हथियार व प्रतिबंधित चीजों की तस्करी के लिये किया जा सकता है। हालांकि, ऐसी प्रतिबंधित व अापराधिक श्रेणी में आने वाली किसी वस्तु का कोई सुराग नहीं मिला। लेकिन पुलिस की कथित कार्रवाई पर तमाम तरह के सवाल जरूर उठे। पत्रकारों तथा तमाम मीडिया संगठनों ने समाचार पत्रों के वितरण में बाधा डालने की इस आपत्तिजनक कार्रवाई की कड़े शब्दों में निंदा की है।

वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों ने सत्तारूढ आम आदमी पार्टी की सरकार पर प्रेस की आजादी पर हमला करने को दुर्भाग्यूपर्ण घटना बताया। इसे मीडिया पर हमला बताते हुए इसे पंजाब सरकार की ओर से लगाया गया अघोषित आपातकाल बताया गया। यह भी आरोप लगा कि भगवंत मान सरकार ने उसे परेशान करने वाली खबरों पर रोक लगाने के मकसद से पुलिस के जरिये यह दमनात्मक कार्रवाई की। यह घटना अभिव्यक्ति की आजादी पर ऐसा हमला है, जिसे किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसमें दोराय नहीं कि सीमावर्ती राज्य पंजाब की पाकिस्तान के साथ लगी इतनी लंबी सीमा है कि सुरक्षा के नजरिये से किसी भी प्रकार की ढील नहीं दी जा सकती है। लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार को सतर्कता और पारदर्शिता के बीच बेहतर संतुलन बनाना चाहिए। रविवार को अखबार ले जाने वाले वाहनों पर कार्रवाई शुरू करने से पहले मीडिया घरानों और समाचार पत्र आपूर्तिकर्ताओं सहित सभी हितधारकों को विश्वास में लिया जाना जरूरी था। निश्चित रूप से इससे व्यवधान और भ्रम की स्थिति से बचा जा सकता था। निर्विवाद रूप से मीडिया की स्वतंत्रता किसी स्वस्थ लोकतंत्र की आधारशिला है। यहां तक कि पंजाब के सबसे मुश्किल दौर में भी यह जरूरी है। सरकार और पुलिस को चरमपंथ के चरम वक्त को याद करने की सलाह दी जानी चाहिए, जब पुलिस सुबह के दौरे में साइकिल पर सवार हॉकरों को सुरक्षा प्रदान किया करती थी। उनकी सुरक्षा के साथ-साथ समाचार पत्रों के निर्बाध वितरण के लिये भी।

Advertisement

Advertisement
Show comments