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अब दवाओं पर टैरिफ

ट्रंप के फैसले से दवा निर्माता असमंजस में

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भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से लंबित व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिये नए सिरे से जारी बातचीत के बीच, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फार्मा उत्पादों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की है। ट्रंप ने ब्रांडेड और पेटेंटेड दवा उत्पादों पर सौ फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की है, बशर्ते कि दवा निर्माता कंपनियां अमेरिका में उत्पादन सुविधाएं स्थापित न करें। आशंका है कि ट्रंप के इस कदम का प्रभाव भारत के फार्मा उद्योग पर पड़ सकता है, जिसने देश को ‘दुनिया की फार्मेसी’ के रूप में स्थापित किया है। दुनिया भर से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले तीस अरब डॉलर के फार्मा उत्पादों में से दस अरब डॉलर से अधिक का निर्यात भारत से होता है। भारत मुख्य रूप से अमेरिका को कम लागत वाली जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है। यह अच्छी बात है कि ये जेनेरिक दवाइयां नई टैरिफ व्यवस्था के दायरे में नहीं आती हैं। हालांकि, अभी तक सक्रिय दवा सामग्री यानी एपीआई पर कोई स्पष्टता नहीं है। वैसे भारत से भारतीय ब्राडेंड दवाइयों का भी निर्यात होता है। व्यापार अनुसंधान एजेंसी ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के अनुसार फॉर्मास्युटिकल क्षेत्र में भारत सबसे बड़ा निर्यातक है, लेकिन ये अधिकांशत: गैर-ब्रांडेड दवाइयां हैं। वैसे अमेरिका द्वारा भारतीय आयात पर पचास फीसदी टैरिफ लगाने पर भी आशंका जताई गई थी कि इससे जेनेरिक व ब्रांडेड दवाएं महंगी हो सकती हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में भारत की फार्मा कंपनियों की आय का बड़ा जरिया होने के कारण ये काफी कम मार्जिन पर काम करती हैं। ऐसे में यदि उन पर टैरिफ लगता है, तो उनका वहां कारोबार करना कठिन हो सकता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के दवा बाजार में बड़े ब्रांड वाली दवाइयों के सस्ते प्रारूप वाली जेनेरिक दवाइयों का आधे से अधिक हिस्से पर अधिकार है, जिससे अमेरिका की स्वास्थ्य सेवा लागत में अरबों रुपये की बचत होती है। एक अनुमान के अनुसार, यह बचत एक साल में दो सौ डॉलर से अधिक की होती है।

आशंका जतायी जा रही है कि यदि भारत व अमेरिका में व्यापार समझौता नहीं होता तो भी टैरिफ के कारण कुछ भारतीय जेनेरिक दवा कंपनियों को बाजार से बाहर होना पड़ सकता है। लेकिन यह स्थिति अमेरिका के लिये भी संकट बढ़ा सकती है। भारतीय जेनेरिक दवा कंपनियों की अनुपस्थिति में अमेरिका में पहले ही दवाओं की कमी का संकट और गहरा सकता है। लेकिन ट्रंप के फार्मा उद्योग पर सौ फीसदी टैरिफ लगाए जाने से भारतीय दवा उद्योग में निराशा जरूर व्याप्त हुई है। देश के बड़े दवा शेयरों में अचानक आई गिरावट इसका ही नतीजा है। अब चाहे यह गिरावट अल्पकालिक हो, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि ट्रंप के अगले कदम को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। दवा उद्योग को आशंका है कि ट्रंप आने वाले दिनों में जेनेरिक दवाओं पर भी टैरिफ लगा सकते हैं, जबकि अमेरिकी प्रशासन को पता है कि ऐसे किसी प्रतिबंध से वहां स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में इजाफा होगा। वहीं दूसरी ओर, गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की इन दवाओं तक पहुंच सीमित हो जाएगी। निश्चित रूप से अमेरिका से चल रही बातचीत के दौरान भारत को इस मुद्दे को प्राथमिकता देनी चाहिए। हालांकि, अमेरिका को भी पता है कि ये निषेधात्मक टैरिफ खुद उसके लिये भी प्रतिकूल साबित हो सकते हैं। साथ ही, अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं, जो पहले ही ट्रंप के विघटनकारी फैसलों का शिकार है। ऐसे में अमेरिका को सस्ती दवाओं को एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि आगामी समझौते में उसके दवा क्षेत्र के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय सुनिश्चित हों। इसके साथ ही भारत को अपनी दवाओं के लिये नये बाजार तलाशने चाहिए। साथ ही, प्रमुख भारतीय दवा कंपनियों को जटिल जेनेरिक दवाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो मुख्य रूप से ब्रांडेड श्रेणी में आती हैं। इससे दवा कंपनियों को उच्च मूल्य वाले बाजार में पहुंच बनाने में मदद मिल सकती है।

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