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ऐसी नहीं आज़ादी

जिम्मेदारी-जवाबदेही का भी है दायित्व
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हमारे बीच वो पीढ़ी अपनों के सपनों का आकाश तलाश रही है, जिसने आजादी के लिये संघर्ष के त्रास को करीब से महसूस नहीं किया। सदियों वाली गुलामी की त्रासदी क्या होती है, पहले स्वतंत्रता दिवस पर देशव्यापी उल्लास के जुनून में इसकी झलक देखी जा सकती थी। निस्संदेह, बड़े जतन से हासिल किसी कामयाबी को वही व्यक्ति गहरे तक महसूस कर सकता है, जिसने उससे जुड़े त्रास को सहा हो। बेशक, इस आजादी की कीमत का अहसास नई पीढ़ी को होना चाहिए। लेकिन हाल के वर्षों में हम लोक-व्यवहार में ऐसी अराजकता देख रहे हैं, जो हमारी आजादी के दुरुपयोग की परिणति है। किसी भी आजादी का महत्व तभी तक है जब हम अपने व्यवहार में गरिमा, जिम्मेदारी व जवाबदेही का भाव लाएं। सार्वजनिक स्थलों, ट्रेन व बसों में खाद्य वस्तुओं-फलों के अवशेष तथा पेय पदार्थों की बोतलों के अंबार लगे होते हैं। जो बताते हैं कि हम अपनी आजादी का कितना दुरुपयोग कर रहे हैं। जब आप ट्रेन से सफर कर रहे हों तो देखेंगे कि तमाम लोग चीजें खाकर उनके रैपर, प्लास्टिक की थैलियां तथा कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतलें खिड़की से बाहर फेंक देते हैं। प्लास्टिक का कचरा रेल की पटरियों में जहां-तहां बिखरा रहता है। आखिर कौन उठाएगा इस कचरे को? कमोबेश बस स्टेशनों और रेलवे स्टेशनों पर भी ऐसी स्थिति बनी रहती है कि लोग कूड़ा-दान बने होने के बावजूद कचरे को फर्श पर फेंक देते हैं। निश्चय ही इस बाबत जवाबदेही तय करने की जरूरत है। इसी तरह लोग सड़क पर चलती कार से प्लास्टिक का कचरा सड़क पर फेंक देते हैं। जाहिर है सारे रास्ते की नियमित सफाई नहीं होती। प्लास्टिक का सामान गलता नहीं है और सालों-साल वहीं पड़ा जीव-जंतुओं के लिये मुसीबत पैदा करता है। कमोबेश, हिल स्टेशनों पर भी पर्यटक बड़ी मात्रा में प्लास्टिक व अन्य कचरा पहाड़ों पर छोड़ आते हैं। जो जल स्रोतों व भूमि की उर्वरता को बाधित करता है।

इसी तरह देश की जीवनदायिनी नदियां हमारे फेंके गए कचरे से बुरी तरह प्रदूषित हो गई हैं। आस्था की हमें आजादी है लेकिन पूजा के बचे सामान, मूर्ति विसर्जन तथा प्लास्टिक की थैलियों को नदियों में बहाने की हमें आजादी नहीं है। आज नदियों का पानी आचमन तो दूर, सिंचाई की दृष्टि से भी विषैला हो गया है। दिल्ली में यमुना नदी में विषैले रसायनों का उफनता झाग फैक्ट्री मालिकों की निरंकुश आजादी का दंश है, जो जहरीले रासायनिक अवशेषों को जीवनदायिनी नदियों में बहा देते हैं। आखिर शासन-प्रशासन कहां तक निगरानी करेगा। उन्हें जिम्मेदार नागरिक के रूप में देश,समाज व व्यक्ति तथा प्रकृति के हितों के बारे में भी सोचना होगा। अकसर समाज में नकली पनीर व दूध बिकने की खबरें आती हैं। कैसे निष्ठुर लोग हैं कि चंद सिक्कों के लिये दूसरों के जीवन से खिलवाड़ करने से नहीं चूकते। उन्हें मिलावट की आजादी नहीं है। यह आजादी का दुरुपयोग है। कहीं न कहीं आम जीवन में आजादी के लिये जिम्मेदारी का बोध नजर नहीं आता। देश की सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा की जवाबदेही हमारी स्वतंत्रता का ही हिस्सा है। हमें अपने घर के कचरे को सड़क या पड़ोसी के घर के बाहर फेंकने की आजादी भी नहीं है। शराब के ठेके के बाहर शराब पीकर सड़कों के बीच या किनारे खाली बोतलें फेंकने की भी हमें आजादी नहीं हैं। दुर्भाग्य से बोतलों के टूटने से बिखरा कांच कितने लोगों को घायल करता है, ये पीने की आजादी का दुरुपयोग करने वाले नहीं जानते। एक दार्शनिक ने कहा था कि तुम्हारी आजादी वहां खत्म हो जाती है जहां से मेरी नाक शुरू होती है। यानी किसी की आजादी का मतलब दूसरे व्यक्ति की आजादी का अतिक्रमण करना नहीं हो सकता। यही बात हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था व प्रक्रिया पर भी लागू होती है। यह आजादी विवेकशील मतदान की जवाबदेही भी तय करती है। वोट देने की आजादी कहती है कि हमारी जिम्मेदारी है कि हम जाति-धर्म व क्षेत्र की संकीर्णताओं से मुक्त रहें। यह भी कि हमें इस बात की आजादी नहीं है कि हम दागियों को जनप्रतिनिधि संस्थाओं में भेज सकें।

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