लोकतांत्रिक मूल्यों व सामरिक रिश्तों को तरजीह
अमेरिका जैसे विश्व के सबसे शक्तिशाली मुल्क का मुखिया यदि कोरोना संकट के बीच सत्ता संभालने के बाद किसी देश से संवाद स्थापित करता है तो उस देश के सामरिक व कूटनीतिक महत्व का पता चलता है। हालांकि, इससे पहले अमेरिका के रक्षा सचिव व भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश मंत्री टोनी ब्लिन्केन व उनके भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर के बीच बातचीत हो चुकी थी लेकिन नवनियुक्त अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच टेलीफोनिक बातचीत दोनों देशों के संबंधों के महत्व को दर्शाती है। दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखियाओं ने जिन दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की, उनमें जलवायु परिवर्तन और स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र शामिल हैं। निस्संदेह हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे पारंपरिक अमेरिकी सहयोगियों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। दरअसल, हाल के वर्षों में गाहे-बगाहे ये देश चीन की साम्राज्यवादी नीतियों से जूझते रहे हैं। लगता है कि बाइडेन काल में भारत-अमेरिकी संबंधों को व्यापकता मिलेगी। व्यापारिक रिश्तों के साथ कूटनीतिक व सामरिक रिश्तों को तरजीह दी जायेगी, जिसके केंद्र में चीनी साम्राज्यवाद की चुनौती से निपटना है। दोनों ही देश जलवायु परिवर्तन और कोविड संकट के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में एक बड़ी भूमिका निभाएंगे। अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं का क्वाड समूह एक अनौपचारिक समूह है जो चीनी निरंकुशता पर अंकुश लगाने की कवायद का हिस्सा है। जरूरी है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों के अलावा राजनीतिक व वाणिज्यिक गतिविधियों को गति मिले। दोनों ही राष्ट्र प्रमुखों ने आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ाई लड़ने को लेकर भी प्रतिबद्धता जतायी है। हालांकि, इस मुद्दे पर पाकिस्तान व अफगानिस्तान की अमेरिकी नीति को लेकर कई विसंगतियां भी सामने आ सकती हैं लेकिन एक बात तो तय है कि यह मुद्दा अमेरिका की नयी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल रहेगा।
अमेरिका के नये निजाम और भारत के संबंधों में कई ऐसे घटक भी हैं, जिनको लेकर मतभेद सामने आ सकते हैं। दरअसल, डेमोक्रेट मानवाधिकारों व स्वतंत्रता के मुद्दे को खासी प्राथमिकता देते हैं। विगत में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और सीएए को लेकर पार्टी की तरफ से तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई थी जो राजग सरकार की प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाती। हालिया किसान आंदोलन को लेकर भी कुछ डेमोक्रेटों की नजर टेढ़ी रही है। कृषि सुधारों का अमेरिका ने स्वागत तो किया है लेकिन शांतिपूर्ण आंदोलन को लेकर संवेदनशीलता की वकालत भी की है। बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से उदारवादी पहल होती नजर आए। हाल ही में इस केंद्रशासित प्रदेश में इंटरनेट की 4-जी सेवा का बहाल होना इसी दिशा में एक कदम हो सकता है। हालांकि, किसान आंदोलन को लेकर भारतीय दक्षिणपंथियों की प्रतिक्रिया को अमेरिका में अच्छे नजरिये से नहीं देखा जाता। यही वजह है कि अमेरिकी सरकार ने हालिया आंदोलनों के बाबत लोकतांत्रिक संस्थाओं और मानदंडों की रक्षा की जरूरत पर बल दिया था। इसके बावजूद अमेरिका को क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत की एक कूटनीतिक व सामरिक साझेदार के रूप में सदा जरूरत रहेगी जो भारत व अमेरिका के बेहतर संबंधों की बुनियाद रखेगा। यही वजह है कि बुधवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका भारत के अग्रणी विश्व शक्ति के रूप में उभरने का स्वागत करता है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होगा। साथ ही दोनों देशों की सामरिक भागीदारी को व्यापक व बहुआयामी बताया जो आने वाले दिनों में और गहरी होगी। साथ ही भारत के अगले दो साल के लिये सुरक्षा परिषद में शामिल होने का भी स्वागत किया गया है। यह भी कि भारत अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहेगा। साथ ही भारत से एक दिल का रिश्ता उन चालीस लाख भारतीय-अमेरिकियों के जरिये बताया जो अमेरिका के विकास में भूमिका निभा रहे हैं।