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बेहाल नेपाल

आमूल-चूल परिवर्तनों से थमेगा आक्रोश
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नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन लगाने के बाद उग्र हुआ आंदोलन आखिरकार संवैधानिक संकट में बदल गया और सरकार गिरने का कारण बना। यहां तक कि मंत्रियों के बाद प्रधानमंत्री के.पी. ओली तक को इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा। उग्र युवाओं ने संसद, सुप्रीम कोर्ट, मंत्रियों के आवास व कुछ मीडिया हाउस को भी निशाना बनाया। भले ही तात्कालिक रूप से सोशल मीडिया पर बैन को हिंसा की वजह बताया जा रहा हो, लेकिन यह प्रतिक्रिया तात्कालिक नहीं थी। युवाओं की दशकों की हताशा और राजनीतिक कदाचार, काहिली व निरंकुशता के चलते गुस्सा नेपाल की सड़कों पर लावा बनकर फूटा है। नेपाल सरकार की सख्ती से आंदोलनकारियों के दमन ने आग में घी का काम किया। नेपाल की राजनीति में अवसरवाद व राजनीतिक अस्थिरता ने भी सरकारों के प्रति युवाओं के आक्रोश को बढ़ाया है। विडंबना देखिए कि 17 बरसों में यहां 14 सरकारें बन चुकी हैं। बहरहाल इस हिंसक प्रतिकार में 19 से अधिक युवाओं को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। दरअसल, शुरुआत में सोशल मीडिया साइटों पर एक विवादास्पद प्रतिबंध ने युवा नेतृत्व वाले जेन-जेड समूह के गुस्से को भड़का दिया। यह समूह सत्ता के शीर्ष पदों पर कथित भ्रष्टाचार और उनकी संतानों के विलासी जीवन के खिलाफ अभियान चला रहा था। इस युवा ब्रिगेड ने लोकप्रिय ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके दावा किया कि मंत्रियों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की संतानों की फिजूलखर्ची भरी जीवनशैली अवैध धन-दौलत की बदौलत है। इस पोल-खोल अभियान से घबरायी सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का असफल प्रयास किया। सरकार का यह दांव उस पर ही उलटा पड़ा और सरकार की ही विदाई हो गई। हालांकि, युवाओं का आक्रोश देखते हुए सरकार ने प्रतिबंध हटाने की घोषणा की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वैसे इस आंदोलन के दौरान जिस तरह हिंसा, आगजनी व तोड़फोड़ हुई, वह दुर्भाग्यपूर्ण ही कही जाएगी। युवाओं की हिंसक भीड़ ने मंगलवार को संसद, सर्वोच्च न्यायालय, राजनीतिक दलों के कार्यालयों और मंत्रियों के घरों को निशाना बनाया।

दरअसल, आंदोलनकारी शासन व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते रहे हैं। उनकी मांग रही कि सोमवार को पुलिस गोलाबारी में हुई मौतों के लिये जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा दी जाए। अराजकता और अव्यवस्था के बीच, काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी के मेयर, बालेन शाह, एक प्रभावशाली हितधारक के रूप में उभरे हैं। इस पैंतीस वर्षीय पूर्व रैपर ने भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ आंदोलन का समर्थन करके जेन-जेड का विश्वास जीता है। उन्होंने संसद भंग करने की मांग की है। जिसके बाद सैन्य अधिकारियों और आंदोलनकारियों के बीच बातचीत हुई। निस्संदेह, मौजूदा वक्त में सेना की बड़ी भूमिका होने के बाद अब उसके व सुरक्षा एजेंसियों के लिये तात्कालिक चुनौती अस्थिर स्थिति पर नियंत्रण और सामान्य स्थिति को बहाल करने की होगी। आने वाले दिनों में व्यवस्थागत सुधारों के रोडमैप पर चर्चा के साथ बातचीत के जरिये संकट का समाधान करना प्राथमिकता होनी चाहिए। दरअसल, ओली और उनके पूर्ववर्तियों की नीतियों की विफलता ने युवाओं में निराशा व मोहभंग को बढ़ावा दिया है। वहीं इस उथल-पुथल के मूल में नेपाली अर्थव्यवस्था का संकट भी है, जो पर्यटन और प्रवासी नागरिकों द्वारा भेजी जाने वाली रकम पर निर्भर रही है। विडंबना यह है कि इन दोनों स्रोतों में पिछले वर्षों में कमी आई है। बेरोजगारी दर का बीस फीसदी के आसपास होना युवाओं के आक्रोश को तार्किक बनाता है। दरअसल, सरकार युवाओं की उम्मीदों की कसौटी पर खरा उतरने में नाकाम ही रही है। आये दिन नेताओं द्वारा किए जाने वाले वायदों से खिन्न युवा धरातल पर बदलाव देखना चाहते हैं। बहरहाल, मौजूदा उथल-पुथल ने नेपाल को एक नई शुरुआत करने का अवसर जरूर दिया है। वहीं भारत के लिये भी यह सचेतक घटनाक्रम है कि उसके पड़ोस में श्रीलंका, बांग्लादेश के बाद नेपाल में जनाक्रोश में विदेशी जमीन से संचालित सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका रही है। युवाओं की आकांक्षाओं और रोजगार की चुनौती को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। निस्संदेह, सोशल मीडिया ने युवाओं की आकांक्षाओं को सातवें आसमान पर पहुंचाया है और हकीकत में हमारा धरातल खासा खुरदरा है।

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