बुधवार को कोरोना संक्रमण में वृद्धि की चुनौती से मुकाबले के लिये राज्य के मुख्यमंत्रियों से प्रधानमंत्री के संवाद के लिये बैठक बुलाई गई थी। मगर बाद में इसमें पेट्रोलियम पदार्थों की महंगाई का मुद्दा हावी हो गया। प्रधानमंत्री का कहना था कि विपक्षी दलों शासित राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क घटाने के बावजूद वैट में कटौती करके पेट्रोल-डीजल उपभोक्ताओं को राहत नहीं दी। इसके बाद इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्र से राजग सरकार के दौरान बढ़ाए गये उत्पाद शुल्क को घटाकर महंगाई कम करने की मांग की है। यह सर्वविदित है कि कोरोना संकट के लगभग दो वर्ष के दौरान तमाम लोगों की आय में गिरावट आई है। ऐसे में केंद्र व राज्य सरकारों को आम जनता के प्रति संवेदनशील व्यवहार दिखाना चाहिए। समाज में कमोबेश हर वर्ग की आय में संकुचन हुआ है। हालिया आंकड़ों के अनुसार करीब चार करोड़ लोग उच्च मध्यम वर्ग से निम्न मध्यम वर्ग में आ गये। जब तक आय के नये अवसर बनें और रोजगार संकट खत्म हो सके, तब तक सरकारों को किसी न किसी तरह राहत देने की पहल करनी चाहिए। इससे जब लोगों की आय बढ़ेगी तो वे स्वत: ही सरकार की छूट के लिये नहीं देखेंगे। राज्य सरकारों को वैट में कमी करके अपनी आय के दूसरे स्रोत तलाशने चाहिए। साथ ही जीएसटी के संग्रहण में जो छिद्र हैं उन्हें बंद करके अपनी आय बढ़ानी चाहिए। दरअसल, केंद्र सरकार ने बीते साल नवंबर में उत्पाद शुल्क को कम करके राज्य सरकारों से पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट घटाने का आग्रह किया था। भाजपा शासित राज्यों ने तो इसमें अपनी सुविधा के अनुसार कमी कर दी थी, लेकिन कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों वाली सरकारों मसलन महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड तथा तमिलनाडु ने वैट में कमी करके उपभोक्ताओं को राहत नहीं दी।
जैसा कि जाहिर था कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री के बयान के बाद तीखे हमले किये। कांग्रेस ने मांग की कि पहले राजग सरकार अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट के दौरान बढ़ाये गये अतिरिक्त उत्पाद शुल्क को कम करके राहत दे। साथ ही दलील दी कि यूपीए शासन के दौरान हर साल एक लाख करोड़ की सब्सिडी दी जाती रही है। जवाब में केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मामलों के मंत्री सरकार के बचाव में उतरे। उनकी दलील थी कि भाजपा शासित राज्यों के मुकाबले दूसरे दलों की सरकारों में पेट्रोल व डीजल पर वैट की दर करीब दुगनी है, जिसे लोगों को राहत देने के लिये कम किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि राज्यों की सरकारों को अन्य मदों से अतिरिक्त आय जुटानी चाहिए। यह कटु सत्य है कि देश करीब अस्सी फीसदी कच्चा तेल विदेशों से मंगवाता है। फिर राज्यों के पेट्रोल पंपों के जरिये इसकी खुदरा बिक्री होती है। लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि मूल खरीद मूल्य के मुकाबले करीब दुगने मूल्यों पर इसकी खुदरा बिक्री होती है। दरअसल, पेट्रोलियम पदार्थों के मूल दाम में उत्पाद शुल्क, वैल्यू एडेड टैक्स यानी वैट मिलाकर इसकी अंतिम कीमत का निर्धारण होता है। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाला वैट राज्य सरकारों की आय का मुख्य जरिया है। साथ ही अन्य मुख्य आय स्रोतों में शराब व संपत्ति पर लगने वाला कर है। जीएसटी से पहले आय केंद्र को होती है और फिर राज्यों को उनका हिस्सा दिया जाता है, जिसके बंटवारे व समय पर न मिलने को लेकर केंद्र व राज्यों में लगातार तनातनी रही है। सही मायनों में पेट्रोलियम पदार्थों की आर्थिकी को राज्य अपनी कामधेनु मानते हैं और इसमें कटौती को आसानी से तैयार नहीं होते। बहरहाल, केंद्र सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों, पर्यावरण प्रदूषण व सेहत से जुड़े मुद्दों पर पूरे देश के लिये एक नीति निर्धारित कर आम आदमी को राहत देने का प्रयास करना चाहिए।