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कुदरत का कहर

इस रौद्र के संकेतों को समझे इंसान

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अभी मोरक्को में आये भयंकर भूकंप से मरने वालों की गिनती पूरी हुई भी नहीं थी कि लीबिया में प्रलंयकारी बाढ़ से मरने वालों का आंकड़ा दस हजार पार होने की आशंका है। हालांकि, जितने लोग तूफान व सुनामी जैसी घटना की चपेट में आए हैं, उसे देखते हुए मरने वालों का आंकड़ा बहुत बढ़ सकता है। दरअसल, लीबिया में डैनियर तूफान व तेज बारिश के बाद बांध टूटने से तबाही का ऐसा भयावह मंजर सामने आया कि देरना शहर के बड़े हिस्से को बाढ़ समुद्र की तरफ बहा ले गयी। चारों तरफ लाशों का अंबार है, समुद्र में लाशें तैर रही हैं। सामूहिक रूप से लाशों को दफनाया जाना बाढ़ की विनाशकारी स्थिति को बयां कर रहा है। विडंबना यह है कि कर्नल गद्दाफी की हत्या के बाद लीबिया दो शासनों के अधीन है। एक ओर त्रिपोली में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार ढाई हजार से अधिक लोगों के मरने की बात कह रही है तो प्रभावित देरना समेत पश्चिम इलाके पर नियंत्रण रखने वाला प्रशासन साढ़े पांच हजार से अधिक शव बरामद होने की बात कह रहा है। अभी भी दस हजार लोग लापता बताए जा रहे हैं। इस बाढ़ से करीब चौंतीस हजार लोग विस्थापित हुए हैं। बाढ़ अपने पीछे तबाही के रूप में मलबे के पहाड़, क्षतिग्रस्त घर व वाहन तथा टूटी सड़कें छोड़ गई है। चारों तरफ शव ही नजर आ रहे हैं। जिन्हें सामूहिक रूप से दफनाया जा रहा है और खुदाई के लिये मशीनों का सहारा लिया जा रहा है। ऐसे में मरने वालों का आंकड़ा बढ़ सकता है। विडंबना यह है कि राजनीतिक अस्थिरता का असर राहत कार्यों में पड़ रहा है। विद्रोही सरकारों के चलते देश विभाजित स्थिति में है। आशंका है कि अतिवृष्टि से पहले देरना से बारह किमी दूर स्थित एक बांध टूटा और फिर इसके मलबे के दबाव से शहर के निकट स्थित दूसरा बांध भी टूट गया।

बहरहाल, इन बांधों के टूटने से आई सुनामी जैसी बाढ़ ने एक लाख की आबादी वाले देरना शहर में तबाही का मंजर भयावह बना दिया। मोहल्ले के मोहल्ले बाढ़ में बह गये। दरअसल, आंतरिक अस्थिरता व संघर्ष से जूझते देश में इस संकट को और बढ़ा दिया है। कभी उपजाऊ घाटी की पहचान रखने वाला देरना आज भूतहा शहर बन गया है। भूमध्य सागर स्थित इस शहर के बीच गुजरती मौसमी नदी इस तबाही का कारण बनी है। जो शहर के ज्यादातर हिस्से को बहा ले गयी। जो बांध इस शहर को बाढ़ से बचाने के लिये बने थे,वे ही बड़ी तबाही की वजह बन गये। इंसान की विडंबना है कि वह प्रकृति से मिलने वाले संकेतों को लगातार नजरअंदाज करता है। लीबिया की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के जल विज्ञानी ने पिछले साल अपने शोध पत्र में चेतावनी दी थी कि बरसाती नदी में बाढ़ का आना इस शहर के लिये खतरनाक है। उन्होंने व्यापक अध्ययन के आधार पर बांधों के निरंतर रखरखाव के लिये तुरंत कदम उठाने की बात कही थी। लेकिन उस पर अमल नहीं किया गया। ये नदी व बांध ही तबाही के सबब बने। वहीं दूसरी ओर मोरक्को विनाशकारी भूकंप की तबाही झेल रहा है। एटलस पहाड़ पर 6.8 तीव्रता के भूकंप ने कई गांव के गांव तबाह कर दिये हैं। आपदा ग्रस्त पहाड़ी इलाकों में राहत व बचाव कार्यों में भारी बाधा आ रही है। दरअसल, भूकंप से ज्यादा हमारा घटिया निर्माण जान-माल को क्षति पहुंचाता है। मोरक्को में यही हुआ। दरअसल, गरीबी के चलते लोग सस्ती व स्थानीय सामग्री से मकान बना लेते हैं। जो बड़े भूकंप में ताश के पत्तों की तरह बिखर जाते हैं। इसी तीव्रता के भूकंप में जहां विकसित देशों में बेहतर निर्माण सामग्री व अच्छे डिजाइनों के चलते गिनती के लोग मरते हैं, वहीं गरीब व विकासशील देशों में यह गिनती हजारों तक जा पहुंचती है। वहीं आपदा राहत का कमजोर तंत्र मौतों की संख्या में इजाफा कर देता है। इसी साल तुर्किये में आये भूकंप में भी पचास हजार से अधिक लोग मारे गये थे। हमें कुदरत की इन चेतावनियों को समझकर प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करना चाहिए।

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