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नशे पर नश्तर

संवेदनशीलता व साझे प्रयासों से ही नियंत्रण

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पंजाब में आये दिन नशे की ओवर डोज से युवाओं की मौत की खबरें विचलित करती हैं। एक ही परिवार में कई युवाओं की मौत पर बिलखते परिजनों की खबरें हृदयविदारक होती हैं। निस्संदेह, हमारे नीति-नियंताओं ने इस भयावह होती चुनौती की गंभीरता को देर से समझा और आधे-अधूरे प्रयासों से इसके मुकाबले की कोशिश की। हाल के दिनों में इस घातक महामारी से जूझने में पंजाब की आप सरकार गंभीर नजर आई। हालांकि, पंजाब के नशे की दलदल में धंसने के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व बेरोजगारी का त्रास जैसे अनेक कारण हैं, लेकिन कहीं न कहीं हम सीमापार से युवाओं को तबाह करने की साजिशों पर समय रहते अंकुश नहीं लगा पाए हैं। सीमा पर अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती के बावजूद आये दिन पाक से उड़ने वाले ड्रोन भारी मात्रा में नशीले पदार्थ भारतीय सीमा में गिराते हैं। इस खतरनाक खेल में भारतीय तस्कर भी शामिल हैं। पिछले दिनों जेल के भीतर से एक तस्कर के द्वारा पाक से नशीले पदार्थ व हथियारों की खेप मंगवाने व संवेदनशील दस्तावेज आईएसआई एजेंटों को मुहैया कराने की खबरों ने परेशान किया। बहरहाल, पिछले 14 महीनों में पंजाब से लगभग 1400 किलोग्राम हेरोइन जब्त होना बताता है कि नशे के खिलाफ शासन-प्रशासन की सक्रियता बढ़ी है। कह सकते हैं कि इस भयावह चुनौती को सरकार अब गंभीरता से लेने लगी है। कानून का कड़ाई से पालन, सार्वजनिक रूप से जनसंपर्क कार्यक्रम चलाने तथा नशे की आपूर्ति करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। निस्संदेह, नशीले पदार्थों के उपयोग को रोकना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन इससे बड़ी चुनौती सीमा पार से लाई जा रही नशे की खेप और सिंथेटिक दवाओं के उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि को रोकना है। इसके बावजूद नशेड़ियों तक नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने वालों तथा बिचौलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मुहिम तेज की जा रही है। दरअसल, शासन-प्रशासन के बेहतर तालमेल से ही समस्या पर नियंत्रण करना संभव हो पायेगा।

निस्संदेह, यह समस्या सिर्फ पंजाब की ही नहीं है। संसद में पेश एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे हरियाणा व चंडीगढ़ में भी नशीले पदार्थों का सेवन बढ़ता जा रहा है। विडंबना यह है कि नशे के इस दुश्चक्र में छात्र-छात्राएं व युवा फंसते जा रहे हैं। निस्संदेह, नशा सेवन से उपजे अपराधों की कीमत आखिरकार देश को ही चुकानी पड़ेगी। लगातार जटिल होती समस्या का समाधान पुलिस-प्रशासन की सक्रियता और सामाजिक भागीदारी से ही संभव है। वहीं समस्या के समाधान हेतु इसके मानवीय पक्ष पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इसमें एक कदम नशे की लत को अपराध की श्रेणी से बाहर रखना भी है। हालांकि, इस प्रस्ताव का आलोचनात्मक मूल्यांकन होना अभी बाकी है। निस्संदेह, इस जटिल समस्या के कई पहलू हैं। एनडीपीएस एक्ट की धारा 64-ए ऐसे व्यसनियों को अभियोजन से छूट देती है जो स्वेच्छा से सरकार द्वारा संचालित या मान्यता प्राप्त नशा मुक्ति केंद्रों में उपचार कराते हैं। निस्संदेह, थोड़ी मात्रा में नशीले पदार्थों के साथ पकड़े गए लोगों को दंडित करने के बजाय उन्हें नशा मुक्ति केंद्रों में भेजने का निर्णय पंजाब में नशा उन्मूलन रणनीति में बदलाव का प्रतीक है। नशीले पदार्थों की ओवरडोज से होने वाली हर मौत अब जांच के दायरे में होगी। ओवरडोज से होने वाली मौत पर नशीले पदार्थ के आपूर्तिकर्ता पर गैर इरादतन हत्या के आरोप में कार्रवाई होगी। वहीं किसी बड़े ड्रग तस्कर को यदि समय से आरोप पत्र दायर करने में विफलता के कारण जमानत मिल जाती है, तो ऐसे पुलिसकर्मियों पर नजर रखकर कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा ग्रामीण-शहरी इलाकों में बैठक आयोजित करके लोगों को नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करने को कहा गया है। जिसमें स्कूल- कॉलेजों के छात्रों के साथ-साथ गैर सरकारी संगठनों को भी शामिल किया जायेगा। इसके जरिये नशे का सेवन करने वालों की पहचान सामुदायिक प्रयासों से की जा सकेगी। इसका मकसद उनके नाम सार्वजनिक करना व शर्मिंदा करना नहीं होगा। बल्कि उनके पुनर्वास के लिये आर्थिक संबल से कौशल विकास की गतिविधियों में भाग लेने के लिये प्रेरित करना होगा।

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