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उम्मीदों का चंद्रयान

चंद्रमा की सतह से लायेगा नया ज्ञान

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यह देश के वैज्ञानिकों की मेधा व अनुसंधान का ही परिणाम है कि भारतीय संस्कृति में रचे-बसे चंद्रमा की सतह पर नई जानकारी जुटाने के लिये चंद्रयान-3 ने अपनी यात्रा की सफलतापूर्वक शुरुआत कर दी है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो चंद्रयान पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में दाखिल हो जायेगा। देश के चर्चित श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से शुक्रवार दोपहर अपने अभियान की कामयाब शुरुआत करने वाले चंद्रयान-3 को लेकर भारतीय वैज्ञानिक आश्वस्त हैं कि एएलवीएम-3 रॉकेट उसे उसकी मंजिल तक सकुशल पहुंचा देगा। दरअसल वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 के घटनाक्रम से सबक लेकर प्रक्षेपण व सॉफ्ट लैंडिंग के मामले में अतिरिक्त सावधानी बरती है। शुरुआती कामयाबी से उत्साहित वैज्ञानिकों को विश्वास है कि अभियान में प्रयुक्त होने वाला लैंडर सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी छोर पर उतरेगा। हालांकि, दक्षिणी छोर में उतरना खासा जटिल है और भारत की कामयाबी एक नया इतिहास रचेगी। वैज्ञानिकों को भरोसा है कि 14 अगस्त भारतीय अंतरिक्ष अभियान के इतिहास में नया स्वर्णिम अध्याय लिखेगा। वैज्ञानिक उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जब रोवर चंद्रमा के साउथ पोल की सतह पर चहलकदमी करेगा। चंद्रयान-3 ने शुरुआती चरण सफलतापूर्वक पूरे करके पृथ्वी की लक्षित कक्षा में स्थान पा लिया है जहां से वो चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ भारतीय चंद्रयान अभियान को पूरी दुनिया में इस बात का श्रेय तो दिया जाता है कि इसने सबसे पहले चंद्रमा पर पानी के कणों को खोजा है। दूसरा मिशन भारत के लिये नये सबक देने वाला साबित हुआ। सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता न मिलने से सबक लेकर इस बार लैंडर के लिये अपनायी गई तकनीक में तमाम बदलाव किये गये हैं। दरअसल, भारतीय वैज्ञानिकों ने रोवर की लैंडिंग के लिये चांद के उस हिस्से साउथ पोल को चुना है, जिस पर धरती से साफ दृष्टि नहीं पड़ती, लेकिन इस बात की बड़ी संभावना है कि यहां पानी व बहुमूल्य खनिजों की उपस्थिति हो सकती है।

निस्संदेह, यदि वास्तव में चंद्रयान तीन को कामयाबी मिलती है तो यह भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिये बड़ी उपलब्धि होगी। विश्वास किया जा रहा है कि यदि चंद्रयान इस बार चांद की सतह के इस अछूते हिस्से से नई जानकारी जुटा पाया तो उससे चांद पर इंसान के रहने की संभावनाओं को नई दिशा मिल सकती है। निश्चय ही यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि कंप्यूटर और कृत्रिम मेधा के बूते लाखों किलोमीटर दूर किसी वैज्ञानिक अभियान को मूर्त रूप दिया जा रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अभियान विशुद्ध भारतीय मेधा और तकनीक की देन है। उस पर बहुत कम लागत में इसे अंतिम रूप दिया जाता है। चंद्रयान-2 के बारे में खूब कहा गया था कि यह अभियान किसी हॉलीवुड फिल्म की एक तिहाई लागत में सिरे चढ़ाया गया। भारतीय वैज्ञानिकों ने सीमित संसाधनों में लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में सफलता पायी है। यह अभियान उपकरणों व तकनीक की दृष्टि से आत्मनिर्भर भारत की जीवंत मिसाल है। बहरहाल, चंद्रयान-दो के घटनाक्रम से सबक लेकर आगे बढ़े चंद्रयान अभियान-तीन का सारा दारोमदार इसकी सॉफ्ट लैंडिंग पर केंद्रित रहेगा। जिसमें कामयाबी के बाद भारत भी अमेरिका व रूस की पंक्ति में जा खड़ा होगा। निस्संदेह, इस मिशन की कामयाबी इसरो के सूर्य अभियान के लिये भी नई ऊर्जा का काम करेगी। दरअसल,चंद्रयान अभियान की गहमागहमी में यह जिक्र कम हुआ कि सूरज के करीब जानकारी जुटाने के लिये आदित्य-एल-1 अभियान का श्रीगणेश भी इसी साल अगस्त में होना है। विश्वास है कि अगले महीने चांद की दक्षिणी सतह पर चंद्रयान तीन के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद इसका रोवर चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी कर रहा होगा। साथ ही वैज्ञानिकों की आकांक्षाओं के अनुरूप चांद की धरती पर पानी के कणों, ऊर्जा के नये स्रोतों, नये रासायनिक तत्वों की खोज के बारे में कोई अच्छी खबर मिले। जो भारत ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के कल्याण में सहायक साबित हो सके। साथ ही चांद ही नहीं बल्कि हमारे सौरमंडल के बारे में हमारी जानकारी में भी वृद्धि हो सके।

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