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स्त्री-द्वेष की सोच

टीएमसी नेताओं की टिप्पणी निंदनीय
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कोलकत्ता में कानून की एक छात्रा से सामूहिक दुराचार के मामले में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं की अनर्गल टिप्पणी स्त्री की मर्यादा के खिलाफ शर्मनाक व संवेदनहीन प्रतिक्रिया है। एक बार फिर शर्मनाक ढंग से पीड़िता पर दोष मढ़ने की बेशर्म कोशिश की गई है। टीएमसी की महिला नेत्री महुआ मोइत्रा ने पार्टी के नेताओं के बयान पर निराशा व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया है कि इन राजनेताओं के बयान में स्त्री-द्वेष पार्टी लाइन से परे है। वहीं इससे भी बदतर स्थिति यह है कि जिस पार्टी के नेताओं ने ये दुर्भाग्यपूर्ण बयान दिए हैं, उस पार्टी की सुप्रीमो एक महिला ही है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि ममता बनर्जी जैसी तेजतर्रार मुख्यमंत्री के शासन और नेतृत्व के वर्षों के दौरान टीएमसी के भीतर संवेदनशीलता लाने और मानसिकता में बदलाव लाने के प्रयास विफल होते नजर आ रहे हैं। विडंबना यह है कि पीड़िता के प्रति निर्लज्ज बयानबाजी अकेले पश्चिम बंगाल का ही मामला नहीं है, देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी संवेदनहीन टिप्पणियां सामने आती रही हैं। देश के विभिन्न राज्यों में कई जघन्य अपराधों के बाद टिप्पणियों में पितृसत्तात्मक रीति-रिवाजों को ही उजागर किया जाता है। गाहे-बगाहे शर्मनाक टिप्पणियां की जाती रही हैं। यदि 21वीं सदी के खुले समाज में हम महिलाओं के प्रति संकीर्णता की दृष्टि से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं, तो इसे विडंबना ही कहा जाएगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कि ये वे लोग हैं जिन्हें जनता अपना नेता मानती है और लाखों लोग उन्हें चुनकर जनप्रतिनिधि संस्थाओं में कानून बनाने व व्यवस्था चलाने भेजते हैं।

यहां उल्लेखनीय है कि कोलकत्ता में कानून की छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के बाद एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है और कुछ गिरफ्तारियां भी की गई हैं। निस्संदेह, इसमें दो राय नहीं कि मामले में कानून अपना काम करेगा, लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हो जाना चाहिए। इस मामले में टीएमसी नेताओं की टिप्पणियां निस्संदेह निंदनीय हैं, लेकिन पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं द्वारा भी कड़े शब्दों में इसकी निंदा की जानी चाहिए। ममता बनर्जी के सामने एक और चुनौती है। आरजी कर मेडिकल कॉलेज बलात्कार- हत्याकांड और उसके बाद देश भर में उपजा आक्रोश अभी भी यादों में ताजा है। निस्संदेह, केवल टिप्पणियों से पार्टी को अलग कर देना ही पर्याप्त नहीं है। सार्वजनिक जीवन में जीवन-मूल्यों के खिलाफ जाने वाले लोगों के लिये परिणाम तय होने चाहिए। अन्यथा समाज में ये संदेश जाएगा कि ऐसे कुत्सित प्रयासों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होती है। यह भी कि यह एक स्वीकार्य व्यवहार है। यह तर्क से परे है कि किसी पीड़िता को पूर्ण भौतिक व मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना एक आवश्यक कर्तव्य के रूप में निहित क्यों नहीं, चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में क्यों न हो। किसी अपराध की रोकथाम अच्छे शासन का एक उपाय है, लेकिन जब कोई अपराध होता है तो प्रभावी प्रतिक्रिया भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। टीएमसी दोनों ही मामलों में विफल प्रतीत होती है।

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