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पिघली अवरोध की बर्फ

भारत चीन संबंध एक कदम आगे
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**EDS: RPT CORRECTS CREDIT; IMAGE VIA CHINESE FOREIGN MINISTRY; WITH STORY** Beijing: India-China Special Representatives' for border mechanism, National Security Advisor (NSA) Ajit Doval with Chinese Foreign Minister Wang Yi before their scheduled meeting, in Beijing, Wednesday, Dec. 18, 2024. (PTI Photo) (PTI12_18_2024_RPT300B)
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यह हकीकत है कि चीन भौगोलिक रूप से हमारा पड़ोसी है, हम पड़ोसी नहीं बदल सकते। ऐसे में जरूरी है कि तमाम विसंगतियों के बावजूद अपनी संप्रभुता और हितों की रक्षा के साथ पड़ोसी से रिश्ते बेहतर बनाए जाएं। लंबी खटास व तनातनी के बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच बीजिंग में हुई हालिया बैठक के सार्थक परिणाम सामने आए हैं। बीजिंग में डोभाल व वांग तथा दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की बैठक निश्चित रूप से कूटनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण प्रगति कही जा सकती है। खासकर 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़पों के बाद पांच वर्षों में यह पहली बातचीत, दो एशियाई दिग्गजों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण व सतर्क बदलाव को ही दर्शाती है। दरअसल, इस चर्चा का केंद्र लद्दाख पर अक्तूबर 2024 के समझौते का कार्यान्वयन था। यह सुखद ही है कि दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर शांति बनाये रखने की प्रतिबद्धता जतायी। निश्चय ही यह कदम भविष्य में संघर्षों को रोकने के लिये एक महत्वपूर्ण कदम है। बैठक में सीमा व्यापार बढ़ाने, सीमा पार नदियों का डेटा साझा करने तथा कैलाश मानसरोवर की यात्रा को फिर से शुरू करने जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहन करने के उद्देश्य से छह सत्री सहमति पर भी जोर दिया गया। हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की सहमति से सारी चुनौतियां एकदम खत्म हो चुकी हैं। निर्विवाद रूप से सीमा विवाद एक संवेदनशील व जटिल मुद्दा बना है। जिसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि आपसी विश्वास में व्याप्त कमी को दूर किया जाए। निश्चित रूप से व्यावहारिक कूटनीति के साथ विश्वास निर्माण के उपायों को कदम दर कदम बढ़ाया जाना चाहिए। हालांकि इन प्रतिबद्धताओं को अमलीजामा पहनाने के लिये सतर्कता के साथ और राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होगी।

बहरहाल, खट्टे-मीठे रिश्तों और लंबी कटुताओं के बावजूद इस बैठक के निहितार्थों को व्यापक संदर्भों में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। निर्विवाद रूप से चीन आज दूसरी बड़ी वैश्विक शक्ति है। भारत ने भी आर्थिक व अन्य क्षेत्रों में आशातीत प्रगति की है। इसके बावजूद दोनों ही देश वैश्विक शक्ति की बदलती गतिशीलता से जूझ रहे हैं। खासकर अमेरिका में होने जा रहे राजनीतिक परिवर्तन से उबरने वाली आर्थिक चुनौतियों के मद्देनजर। ऐसे में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को दोनों देशों की एकजुटता प्रभावित करने की क्षमता रखती है। खासकर व्यापार, प्रौद्योगिकी तथा ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय प्लेटफॉर्मों में सहयोगात्मक पहल से क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। निस्संदेह, दोनों देशों की सीमा पर शांति की पहल एक शुरुआत मात्र है। इसके उपरांत दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क, व्यापार बाधाओं व असंतुलन को दूर करना वक्त की जरूरत है। हमें सांस्कृतिक सहयोग के जरिये दोनों देशों के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने का लाभ उठाना चाहिए। विश्वास कायम करने और संघर्ष की छाया दूर करने के लिये ऐसे सकारात्मक कदम जरूरी हैं। निस्संदेह, रिश्तों को सामान्य बनाने का रास्ता लंबा है, लेकिन सार्थक संवाद से अधिक सामंजस्यपूर्ण भविष्य की आशा लगातार बनी रहती है। भारत और चीन के लिये शांति सिर्फ एक आदर्श मात्र नहीं बल्कि एक अपरिहार्य आवश्यकता है। निस्संदेह, भारत और चीन के बीच हुई यह तेईसवीं मुलाकात नई उम्मीद जगाती है। उल्लेखनीय है कि भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री के बीच यह बातचीत कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद लिए गए फैसले के अनुरूप ही हुई है। जिसमें सीमा क्षेत्रों में शांति और सौहार्द की बहाली और सीमा विवाद का उचित समाधान तलाशने पर सहमति बनी थी। उम्मीद की जानी चाहिये कि संक्रमण के दौर से गुजर रहे वैश्विक परिदृश्य में भारत व चीन एकजुट होकर निर्णायक भूमिका निभाएंगे। यह स्थिति दोनों देशों के हित में ही कही जाएगी।

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