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तीर के कई निशाने

एक देश एक चुनाव मुद्दे के निहितार्थ

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संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी द्वारा सोशल मीडिया पर संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की सूचना दिये जाने के बाद कई नये विमर्श सामने आ रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा संसद का यह विशेष सत्र पांच दिनों के लिये 18 से 22 सितंबर के बीच बुलाया गया है। यूं तो विगत में भी कई बार विशेष सत्र बुलाए गए हैं लेकिन जब इस साल पांच राज्यों में विधानसभा और अगले साल कुछ राज्यों की विधानसभा के साथ लोकसभा के चुनाव होने हैं, तो इस विशेष सत्र को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ के एजेंडे पर आगे बढ़ सकती है। हालांकि, संसदीय कार्यमंत्री ने विशेष सत्र के एजेंडे के बारे में कोई संकेत नहीं दिये हैं, लेकिन संसद के विशेष सत्र की घोषणा के बाद ‘एक देश एक चुनाव’ पर एक समिति बनाये जाने से इन चर्चाओं को बल मिला है। मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ की संभावना तलाशने के लिये एक समिति गठित की है। संसदीय कार्यमंत्री की दलील है कि समिति इस मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार करेगी, उस पर विमर्श होगा, संसद में चर्चा होगी। यह भी कि पुराने व सबसे बड़े लोकतंत्र के सामने नये विषयों का आना व चर्चा होना सामान्य बात है। दलील दी जा रही है कि 1967 तक देश में लोकसभा व विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे, मौजूदा दौर में इस मुद्दे पर चर्चा तो होनी चाहिए। विगत में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश, एक चुनाव के मुद्दे पर चर्चा करते रहे हैं। इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई थी। राष्ट्रपति रहते हुए भी रामनाथ कोविंद ने कहा था कि देश की ऊर्जा व धन की बचत के लिये एक साथ चुनाव होने चाहिए। तर्क दिया गया था कि बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास की प्रक्रिया बाधित होती है।

प्रश्न है कि क्या विपक्ष को विश्वास में लिये बिना राजग सरकार इतना बड़ा कदम उठा सकती है? क्या ये संविधान सम्मत है? क्या इस बड़े बदलाव के लिये संसद में राजग के पास जरूरी बहुमत है? राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि यह सत्र संसद को पुरानी इमारत से नई इमारत में शिफ्ट करने के इरादे से बुलाया जा रहा होगा। संभव है कि कोई अन्य महत्वपूर्ण बिल सरकार पारित करवाना चाहती होगी। दूसरी ओर विपक्षी नेता आरोप लगाते हैं कि सरकार यह कदम ऐसे समय में उठा रही है जब मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल समाप्ति की ओर है। राजग राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के चुनाव परिदृश्य को लेकर चिंतित है। नया मुद्दा राजग को राजनीतिक रूप से लाभ देगा, पार्टी इस सोच के साथ आगे बढ़ रही है। कुछ लोग मानते हैं कि राज्यों में विधानसभा चुनावों को केंद्र आम चुनाव के साथ आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकता है। आम चुनावों के साथ भी चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं विशेष सत्र में अमृतकाल के दौरान सार्थक चर्चा की बात राजग नेता करते हैं। कयास हैं कि इस दौरान जी-20 शिखर सम्मेलन की उपलब्धि को लेकर भी चर्चा हो सकती है। कयास यह भी हैं कि सरकार इस दौरान महिला आरक्षण बिल भी ला सकती है। बहुत संभव है सरकार घरेलू राजनीति व विश्व जनमत को प्रभावित करने वाले मुद्दों को इस सत्र में ला सकती है। जी-20 सम्मेलन के ठीक बाद होने वाले विशेष सत्र में सरकार चंद्रयान आदि अन्य उपलब्धियों पर चर्चा करा सकती है। मुद्दा अक्तूबर में होने वाले जी-20 देशों के संसदीय अध्यक्षों का भी हो सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत छोड़ो आंदोलन व आजादी के पचास साल होने पर भी संसद के विशेष सत्र बुलाए गये थे। वहीं कुछ विपक्षी नेता कहते हैं कि मुंबई में चल रही विपक्षी गठबंधन की एकता बैठक की खबरों को प्रभावित करने के लिये विशेष सत्र का मुद्दा उछाला गया है। कुछ नेता इसे शीतकालीन सत्र को टालने का उपक्रम बता रहे हैं ताकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा के चुनाव कराये जा सकें।

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