शांति की ओर मणिपुर
निस्संदेह, पिछले दो वर्ष से अधिक समय से हिंसाग्रस्त मणिपुर का संकट लाइलाज-सा नजर आता रहा है। अब केंद्र सरकार और राज्य के दो प्रमुख कुकी-जो समूहों के बीच बीते गुरुवार को हस्ताक्षरित ऑपरेशन निलंबन समझौते से अशांत मणिपुर में शांति बहाली तथा सामान्य स्थिति बनाये रखने के प्रयासों को बल मिलने की उम्मीद जगी है। उम्मीद है कि इस प्रयास से राज्य की क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित की जा सकेगी। समझौते के बाद निर्दिष्ट शिविरों को संवेदनशील क्षेत्रों से स्थानांतरित करने और राज्य में दीर्घकालिक शांति तथा स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में भी सहमति बनी है। वहीं यह घटनाक्रम इस कारण से भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह इस पूर्वोत्तर राज्य का दौरा कर सकते हैं। विपक्ष लंबे समय से मांग करता रहा है कि प्रधानमंत्री मणिपुर क्यों नहीं जाते। मई, 2023 में मैतेई और कूकी समुदाय के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद प्रधानमंत्री की इस संवेदनशील राज्य की यह पहली यात्रा होगी। विगत में विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि केंद्र ने मणिपुर को उसके हाल पर छोड़ दिया। विपक्ष ने राज्य में डबल इंजन सरकार के दौरान कुशासन का आरोप भी लगातार लगाया है। उनका यह भी आरोप रहा है कि सत्तारूढ़ भाजपा ने राज्य की स्थिति के नियंत्रण में अपनी विफलता के बावजूद एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री के पद पर बनाये रखा था। इससे बढ़कर यह भी कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उन पर तटस्थता न दिखाने और हिंसा के प्रति संवेदनहीन बने रहने के आरोप भी लगाए गए। कालांतर विपक्ष के दबाव के बीच उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से लेकर अब तक राज्य राष्ट्रपति शासन के तहत संचालित है। वहीं हाल के महीनों में अपेक्षाकृत शांति का एक मुख्य कारण यह भी है कि कई आतंकवादियों ने राज्य के अधिकारियों की अपील के जवाब में लूटे गए हथियार कानून प्रवर्तन एजेंसियों को लौटाए हैं।
निश्चित रूप से हाल ही में हुआ समझौता लंबे समय से अशांत चल रहे मणिपुर के हित में एक स्वागत योग्य कदम ही कहा जाएगा। इसके बावजूद कुछ पेचीदा मुद्दे अभी भी सुलझाने बाकी हैं। इस मुहिम में विभिन्न हितधारकों को शामिल करने की जरूरत है। राज्य में एक प्रभावशाली नागरिक समाज समूह, कुकी-जो काउंसिल ने स्पष्ट किया है कि वह मैतेई और कुकी-जो क्षेत्रों के बीच बफर जोन में अप्रतिबंधित या मुक्त आवाजाही के पक्ष में नहीं। यह भी कि मणिपुर के नागाओं के शीर्ष निकाय ने मुक्त आवागमन व्यवस्था को समाप्त करने और भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का विरोध किया है। इसके अलावा विरोध में राज्य में समुदाय वाले सभी क्षेत्रों में व्यापार प्रतिबंध लागू करने की चेतावनी भी दी है। उल्लेखनीय है कि राज्य में जातीय संघर्ष की मूल वजह बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल करने की मांग रही है। इस मांग पर उपजे टकराव को दूर करने तथा कुकी और नागाओं का विश्वास फिर से हासिल करने के प्रयास प्राथमिकता के आधार पर किए जाने की जरूरत है। निश्चय ही, सामान्य स्थिति की ओर बढ़ने के लिये मोदी सरकार को अब समय नहीं गवांना चाहिए। निस्संदेह, मणिपुरियों ने पहले ही इस राहत के लिये बहुत लंबा इंतजार किया है। यह अच्छी बात है कि कूकी-जो काउंसिल ने अलग से राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को खोलने का फैसला लिया है। यह राजमार्ग मणिपुर से होकर गुजरता है। निस्संदेह, इस कदम से जहां राज्य में जीवन की जरूरी चीजों की आपूर्ति सरल होगी, वहीं विस्थापित परिवारों और राहत शिविरों में हालात के चलते रह रहे नागरिकों की मुश्किलें कम हो सकेंगी। वहीं पिछले कुछ महीनों से राज्य में जारी शांति की स्थिति को स्थायी बनाने की दिशा में शासन-प्रशासन की ओर से गंभीर प्रयासों की जरूरत है। सुखद यह भी है कि समझौते में कूकी संगठनों ने अपने शिविरों की संख्या कम करने तथा हथियारों को निकटवर्ती बीएसएफ और सीआरपीएफ शिविरों में पहुंचाने पर भी सहमति जतायी है। विश्वास किया जाना चाहिए कि समझौते के मुद्दों पर सतर्क निगरानी के साथ राज्य में स्थायी शांति का वातावरण बन सकेगा।