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मालीवाल के सवाल

लैंगिक न्याय पर राजनीतिक नैतिकता की परीक्षा

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देश में जारी आम चुनाव की प्रक्रिया के बीच आप सांसद स्वाति मालीवाल के साथ कथित मारपीट प्रकरण की हकीकत भले ही जांच के बाद सामने आएगी, लेकिन मुद्दे के राजनीतिक लाभ उठाने के लिये चौतरफा प्रयास हो रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी सहयोगी बिभव कुमार पर आप सांसद ने मारपीट के आरोप लगाए थे। हालांकि, इस प्रकरण में बिभव कुमार की गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन चुनावी माहौल में ये आरोप आम आदमी पार्टी नेतृत्व को मुश्किल में डालने वाले हैं। इस प्रकरण ने आप और महिला सुरक्षा व न्याय के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर सवालिया निशान लगाए हैं। गंभीर बात यह है कि बिभव कुमार पर थप्पड़ व लात मारने और मौखिक रूप से दुर्व्यवहार करने का विवरण प्राथमिकी में दर्ज है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी कि एक फेक वीडियो इस घटनाक्रम का बताकर वायरल किया गया है। ऐसे तमाम प्रकरण भारतीय राजनीति में पहले भी आते रहे हैं जब राजनीतिक लाभ के लिये कल्पित धारणा वास्तविक मुद्दे को पार्श्व में डाल देती है। विडंबना यह है कि लोकसभा चुनावों के बीच यह घटना प्रतिद्वंद्वी दलों के लिये, आप द्वारा अपनाए गए उच्च नैतिक आधार को चुनौती देने का नया मुद्दा बन गई है। निश्चित रूप से इस प्रकरण के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। वहीं यह घटना महिला सुरक्षा पर भारतीय राजनीतिक लोकाचार के लिये एक परीक्षा भी है।

बहरहाल, इस घटनाक्रम ने महिलाओं के अधिकारों की मुखर वकालत करने वाले आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को कठघरे में खड़ा कर दिया गया है। उन पर इस मुद्दे पर बयान देने से बचने का आरोप लगाया जा रहा है। जहां कुछ पार्टी नेता भी इस मुद्दे पर कोई बयान देने से बच रहे हैं, वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह इस मुद्दे पर बचाव से ज्यादा मुखर मुद्रा में नजर आ रहे हैं। वे केजरीवाल के करीबी बिभव कुमार के खिलाफ सख्त कार्रवाई को राजनीतिक पैंतरेबाजी का हिस्सा बता रहे हैं। वैसे यह हकीकत है कि जब महिला उत्पीड़न की बात सामने आती है तो कोई भी राजनीतिक दल बेदाग नजर नहीं आता। हाल ही में कर्नाटक में जनता दल (एस) के लोकसभा प्रत्याशी प्रज्वल रेवन्ना पर लगे यौन शोषण के गंभीर आरोप भी यही बात साबित करते हैं। भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह पर महिला पहलवानों से छेड़छाड़ के आरोप लगे हैं। निस्संदेह, ये मामले एक चिंताजनक प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो राजनीति में पितृसत्तात्मक प्रकृति को ही उजागर करते हैं। ऐसा लगता है कि राजनीतिक विचार पीड़ितों के कल्याण पर भारी पड़ रहे हैं। भले ही राष्ट्रीय महिला आयोग ने मालीवाल प्रकरण में स्वत: संज्ञान लिया है, लेकिन दिल्ली पुलिस को इस मामले में किसी राजनीतिक दबाव में आए बिना स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से जांच करनी चाहिए। अब देखना होगा कि लैंगिक समानता व न्याय के पक्षधर अरविंद केजरीवाल इस संकट का कैसे मुकाबला करते हैं। उनकी कारगुजारी बताएगी कि पार्टी लैंगिक न्याय पर अपनी विश्वसनीयता को किस हद तक बचा पाती है।

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