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लेह में हिंसा की तपिश

पहाड़ी इलाके में विकास-रोजगार की आकांक्षा
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केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को राज्य का दर्जा देने व संविधान के अंतर्गत विशेष संरक्षण देने वाली छठी अनुसूची में शामिल करने के लिये चल रहे आंदोलन का हिंसक होना दुर्भाग्यपूर्ण है। दरअसल, पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक बीते पंद्रह दिनों से अनशन पर थे। इन्हीं मुद्दों के समर्थन में यह आंदोलन चल रहा था। हालांकि, हिंसा के बाद उन्होंने अपना अनशन त्याग दिया है। उन्होंने आंदोलनकारियों से शांति की अपील की है। हिंसा व आगजनी के बाद केंद्र शासित प्रदेश में संचारबंदी लागू की गई है। समाचार माध्यमों में कुछ आंदोलनकारियों के मारे जाने की बात भी कही जा रही है। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों से केंद्रशासित प्रदेश में लद्दाख को पूर्ण राज्य देने की मांग को लेकर समय-समय पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। बताया जाता है कि पिछले पैंतीस दिनों से कुछ लोग अनशन कर रहे थे। परसों उनमें से दो लोगों की तबीयत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। जिसके बाद लोगों में आक्रोश बढ़ा। प्रतिक्रिया स्वरूप लेह बंद का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं ने भाग लिया। यह प्रदर्शन कालांतर हिंसक प्रतिरोध में बदल गया। घटनाक्रम के बाद जम्मू-कश्मीर के विपक्षी दलों ने हिंसा के लिये केंद्र को निशाने पर लिया है। कहा गया कि आंदोलनकारी लेह की अस्मिता को संरक्षण देने और स्थानीय युवाओं को रोजगार देने की मांग कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि केंद्र व लद्दाख के प्रतिनिधियों के बीच आगामी माह में एक वार्ता का दौर निर्धारित था,लेकिन आंदोलनकारी इससे पहले ही इस दिशा में पहल की मांग करते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के विपक्षी दलों के नेता लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद लोगों की आकांक्षा पूर्ण न होने पर उपजे आक्रोश को लेकर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि लेह के लोग अधूरे वायदों से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और इसी वजह से आंदोलनकारियों की हिंसक अभिव्यक्ति सामने आई है।

जम्मू-कश्मीर के विपक्षी नेताओं द्वारा सवाल उठाये जा रहे हैं कि 2019 में केंद्र शासित प्रदेश बनने पर जश्न मनाने वाले लद्दाख के लोगों में आज आक्रोश क्यों पनप रहा है? वे इस अभिव्यक्ति के आलोक में जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को फिर वापस लौटने की भी मांग कर रहे हैं। निस्संदेह, लेह चीन की सीमा से लगा सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है, जिसके मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर सुलझाया जाना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि लेह के आंदोलनकारी कई सालों से भूमि संरक्षण व संस्कृति की रक्षा के लिये इस केंद्रशासित प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची का कवच देने तथा पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं। उनका कहना था कि केंद्र शासित प्रदेश बनने से क्षेत्र के लोगों की आंकाक्षा पूरी नहीं हुई। एक बड़ा मुद्दा क्षेत्र के युवाओं की बेरोजगारी रही है। युवाओं की दलील है कि क्षेत्र के युवाओं को पहले जम्मू-कश्मीर पब्लिक सर्विस सेलेक्शन कमीशन में राजपत्रित अधिकारी पदों के लिये आवेदन का मौका मिलता था, जो लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बंद हो गया। स्थानीय युवा अब केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग की स्पर्द्धा में टिक पाने में दिक्कत महसूस करते हैं। वहीं दूसरी ओर स्थानीय नौकरियों में युवाओं के लिये कोई विशेष अभियान भी नहीं चला। जिससे बेरोजगारों में खासा रोष व्याप्त रहा है। वहीं लद्दाख की अस्मिता को संरक्षित करने के लिये छठी अनुसूची की मांग लंबे समय से की जाती रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भाजपा ने वर्ष 2019 के घोषणापत्र में लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने का वायदा किया था। लेकिन अब इस पर आनाकानी की जा रही है। आंदोलनकारी इसके अलावा कारगिल व लेह को लोकसभा सीट बनाने और स्थानीय लोगों को सरकारी नौकरियों में वरीयता देने की भी मांग कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 244 की छठी अनुसूची में ऐसी स्वायत्त व अधिकार संपन्न प्रशासनिक इकाइयों का प्रावधान है, जिनके पास जल-जंगल व उद्योगों को लेकर क्षेत्र की संस्कृति व संरक्षण हेतु निर्णय करने का अधिकार होता है।

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