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केजरीवाल को जमानत

रिहाई की टाइमिंग के राजनीतिक निहितार्थ
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कई महीने जेल में गुजारने के बाद आखिरकार आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत मिल ही गई। लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव से महज कुछ हफ्ते पहले हुई इस रिहाई की राजनीतिक चश्मे से अलग-अलग व्याख्या की जा रही है। भले ही फैसले से आप ने राहत की सांस ली हो, लेकिन जमानत के विरोध को लेकर सीबीआई की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न उठे हैं। शीर्ष अदालत ने केजरीवाल को शराब घोटाले में ईडी द्वारा दर्ज मामले में यह जमानत दी है। हालांकि, अब केजरीवाल हरियाणा में चुनाव लड़ रहे आप उम्मीदवारों के लिये प्रचार करने के लिये स्वतंत्र हैं, लेकिन वे इस मामले के गुण-दोष को लेकर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं कर सकेंगे। साथ ही सामान्य रूप से वे मुख्यमंत्री के रूप में अपने दायित्वों का भी पालन नहीं कर सकेंगे। बहरहाल, इन सीमाओं और शर्तों के बावजूद उनकी पार्टी राहत की सांस ले सकती है। निस्संदेह, रिहाई से हरियाणा में पार्टी के उम्मीदवारों का मनोबल बढ़ेगा। रिहा होने के बाद केजरीवाल ने कहा भी है कि जेल से आने के बाद मैं सौ गुना ताकतवर महसूस कर रहा हूं। वहीं सीबीआई के लिये यह असहज करने वाली स्थिति है कि मामले की सुनवाई कर रही बेंच के एक न्यायाधीश ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देने में सीबीआई द्वारा बाधा डालने की बात कही है। वैसे जमीनी हकीकत यह भी है कि इस मुकदमे के निकट भविष्य में निबटने की संभावना कम ही है। बहरहाल, शीर्ष अदालत ने केजरीवाल की रिहाई के आदेश देकर संवैधानिक और कानूनी रूप से सही कदम उठाया है। सार्वजनिक विमर्श में भी यह बात उठती रही है कि एक मुख्यमंत्री व एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के नेता को सामान्य अपराधी की तरह ज्यादा समय तक जेल में नहीं रखा जाना चाहिए। अदालत ने कुछ समय पहले इस मुद्दे को लेकर अपनी राय प्रकट की थी।

वहीं दूसरी ओर अदालत ने इस आशंका को भी खारिज किया कि रिहाई के बाद मुख्यमंत्री सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। बहरहाल, इसके बावजूद केजरीवाल न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में हैं। वहीं सवाल सीबीआई की कार्यशैली व विश्वसनीयता को लेकर भी उठे हैं। वैसे भी यदि सीबीआई के पास पुख्ता सबूत थे तो उसे जमानत काे लेकर सवाल नहीं उठाने चाहिए थे। जिसके चलते विपक्ष को सरकार पर राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में कार्रवाई करने के आरोप लगाने का मौका मिला। बहरहाल, केजरीवाल की रिहाई के बाद दिल्ली कांग्रेस प्रमुख की तीखी प्रतिक्रिया से कयास लगाये जा सकते हैं कि इस फैसले का असर हरियाणा चुनाव पर पड़ सकता है। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि राज्य की जनता में सत्ता विरोधी आक्रोश का जो पूरा लाभ अब तक कांग्रेस को मिलने के आसार थे, उसमें केजरीवाल की सक्रियता से असर पड़ सकता है। एक तो हरियाणा केजरीवाल का गृह राज्य है और दूसरी ओर राज्य में स्टार प्रचारक के रूप में केजरीवाल की सक्रियता आप का जनाधार बढ़ा सकती है। इससे कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बढ़ेगा और वे पार्टी प्रत्याशियों को सफल बनाने की कवायद में भी जुट सकते हैं। जिससे भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा हो सकता है। जाहिरा तौर पर हरियाणा में कांग्रेस जिस बड़ी कामयाबी की उम्मीद लगाए बैठी थी, उसके ताजा घटनाक्रम से प्रभावित होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि हरियाणा में सीटों के बंटवारे पर कांग्रेस के साथ सहमति न बनने के कारण आप राज्य की सभी सीटों पर ताल ठोक रही है। यह भी कि 21 मार्च को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद केजरीवाल को कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के दौरान जमानत दी थी। उन्हें 26 जून को फिर से सीबीआई द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। तब से वे जेल में ही थे। जमानत पर पांच सितंबर को सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। फिर शुक्रवार को उन्हें जमानत मिली। निश्चित रूप से दिल्ली आबकारी नीति में कथित भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार मनीष सिसोदिया, सांसद संजय सिंह के बाद केजरीवाल की रिहाई से आप के नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है।

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