कई दशकों की सबसे बड़ी विनाशकारी बाढ़ की त्रासदी झेल रहे पंजाब में जन-धन की व्यापक क्षति हुई है। खेतों में खड़ी फसलें ही नष्ट नहीं हुई हैं बल्कि खेतों की उर्वरता की भी हानि हुई है। लेकिन जिस गति से उत्तर भारतीय राज्यों को बाढ़ ने अपनी चपेट में लिया है, उसको लेकर राहत की तत्काल प्रतिक्रिया केंद्र सरकार की तरफ से नजर नहीं आती। फिलहाल पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विनाशकारी बाढ़ की चपेट में हैं। विनाशकारी बाढ़ ने व्यापक पैमाने पर फसलों को तबाह किया, घरों को तहस-नहस किया, पशु धन की बर्बादी हुई है और बाढ़ के पानी ने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को तहस-नहस कर दिया है। इस आसमानी आफत के सामने लोग लाचार व असहाय नजर आ रहे हैं। नागरिक इस संकट के वक्त में शासन से जिस सहानुभूति और निर्णायक मदद की कार्रवाई की उम्मीद कर रहे थे, उसके बजाय नौकरशाही की सुस्ती और नाममात्र की घोषणाओं ने उन्हें निराश किया है। इस संकट की घड़ी में वे तंत्र की काहिली बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। इसमें दो राय नहीं है कि पंजाब पहले ही कृषि संकट से जूझ रहा था। लेकिन बाढ़ की तबाही ने उसके बड़े उपजाऊ क्षेत्र के संकट को और गंभीर बना दिया है। किसानों को अब सामान्य स्थिति बहाल करने में सालों लग जाएंगे। इसी तरह हिमाचल लगातार दूसरे वर्ष भी अतिवृष्टि जनित व्यापक तबाही की मार झेल रहा है। आपदाग्रस्त हिमाचल में सड़कों का ताना-बाना बिखर गया है। बादल फटने की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि ने व्यापक जन-धन की हानि की है। राज्य अभी बीते वर्ष की आपदा के जख्मों से उबरा नहीं था कि इस साल अतिवृष्टि ने भयावह तबाही का मंजर पैदा कर दिया। तमाम इलाकों से भूस्खलन और तबाही की खबरें आ रही हैं। राज्य ढहे पुलों और फंसे पर्यटकों के संकट से जूझ रहा है। इससे इस संवेदनशील पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था भी खतरे में पड़ गई है।
इसी तरह हरियाणा के अनेक गांव मुख्य भू-भाग से कट गए हैं। सड़कें नष्ट हुई हैं और मवेशी बह गए हैं। जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाओं और बाढ़ ने व्यापक जन-धन की हानि की है। बाढ़ ने हजारों लोगों को विस्थापित कर दिया है। जिसके चलते राज्य का नाजुक सामाजिक और आर्थिक ताना-बाना बिगड़ गया है। केंद्र सरकार आपदा राहत की अनुग्रह राशि के चेक देकर और राहत से जुड़े बयानों तक सीमित नहीं रह सकती। इन राज्यों में विनाश के स्तर को देखते हुए तत्काल और ठोस हस्तक्षेप करने की जरूरत है। वक्त की मांग है कि इन क्षेत्रों के लिये विशेष राहत पैकेज की घोषणा हो। आपदा राहत निधि का त्वरित वितरण किया जाए। इसके साथ ही जरूरी है कि पीड़ित परिवारों को तुरंत सीधा वित्तीय हस्तांतरण किया जाए। यदि समय रहते ऐसे कदम नहीं उठाए जाते तो जनाकांक्षाओं के साथ छल ही होगा। केंद्र सरकार को राज्य पर सिर्फ जिम्मेदारी थोपते हुए ऋण को केंद्रीयकृत करने की अपनी प्रवृत्ति को त्यागना होगा। बाढ़ से बेहाल हुए पंजाब को राहत देने के लिये पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्य के बकाया साठ हजार करोड़ रुपये की मांग की है। निस्संदेह, जब पंजाब बाढ़ के गंभीर संकट से जूझ रहा है तो केंद्र से तत्काल सहायता पाना उसका हक बनता है। इसके साथ ही यहां यह भी जरूरी है कि केंद्र व राज्य सरकार आपस में संवादहीनता की स्थिति को खत्म करें। दोनों सरकारें स्वीकार करें कि बाढ़ का संकट गंभीर है और लोगों को राहत पहुंचाना दोनों सरकारों की प्राथमिकता बने। इस संकट की घड़ी से उबरने के लिये राजनीतिक मतभेदों को तत्काल दूर करने की आवश्यकता है। निस्संदेह, केंद्र सरकार द्वारा बाढ़ प्रभावितों के लिये तत्काल मदद के रास्ते में आने वाली हर बाधा को दूर करने की जरूरत है। बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास, शीघ्र जल निकासी और राज्य सरकार और गैर सरकारी संगठनों के मजबूत समन्वय के लिए तत्काल आर्थिक सहायता की जरूरत है। इस संकट की घड़ी का मुकाबला सभी पक्षों के तालमेल व ईमानदार प्रयासों से ही संभव हो सकेगा।